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आज का परिवेश

जो अनफिट था वही फिट है। जो फिट था वही अनफिट है।      ----- राम बहादुर राय     "अकेला"                 

आनलाइन जमाना

जमाना आनलाईन भईल सब चाहत रहे शहर गईल गंऊवा के याद ना आईल रिश्ता नाता रहे लुकाईल शहरी रहे चालाक भईल गंऊवा से सब लेले गईल जब से कोरोनवा आईल शहरी तब होश में आईल रिश्ता नाता याद आईल गंऊवा सुरक्षित बुझाईल शहरी के हवा गुम भईल काका-बाबा याद आईल शहर से ई बीमारी फईलल सबके ई अछूत बनवलस शहर से अब भागे लगलन गंऊवे में शरणागत भईलन जेकरा ऊ ना समझत रहले उहे लोग अब कामे अईलन खेत बारी सब बेचते रहलन बाकी अब सचेत हो गईलन शहर के घर चमकावला बदे गंऊवा अब उहो ना बेचिहन  काहे कि शहर में संकट होई गंऊवे त हमनी के रक्षा करी गांव ह त गढ़ ह औरू इहवां सबकर ही कुलदेवता हउन गंऊवे से एक बाबू शहर बा एह बात के कबो न भूलईहा शहरी चूमचाम आ धंधा पानी कबो धड़ाम से गिरियो सकेला त जिये के आधार गंऊवे रही तनिको भार शहरिया ना सही शहर में एको अदमी भारी होला गंऊवा शौक से रखिये लेबेला  शहर में जब केहू ना पूछेला तब गंऊवा में'अकेला'भी रखिये लेला आनलाईन कुछे दिन चल सकेला किताब आ क्लास ही ठीक होला त शहरी लोगन सुना बात हमारे गांव के इज्ज़त देबे सीखा तू लोग गांव समझला कि सबके माई ह शहर में देखला केकर के भाई ह!!!              ---