कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो
कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो !!! ---------------------------------------- कवनी नगरिया में बसि गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! बहुते जतनवा से तोहरा के हम जियवनीं घाम-शीत आ बरखा से हरदम बचवनीं! कवनी सवतिया में हेराई गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! सोचले रहीं सोनवा के महलिया बनाइब सभ नजर-गुजर से तोहके हम बचाइब! कवनी बृछिया पर बसि गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! तोहरे कारनवा हमार जिनिगी भुलाइल डिह-डिहुवार पूजववनी जहंवा सुनाइल! बिना कुछ बतवले बसि गइलऽ जाइके कइलऽ मोर जिनिगी अन्हार हो! अब दिने में राति लागे ना होखे विहानवा जिनिगी के आस टूटल उड़ि गइल मनवा! कवनी नगरिया में बसि गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! --------------------- रचना स्वरचित,मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers