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Showing posts from February, 2024

कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो

कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो !!! ---------------------------------------- कवनी नगरिया में बसि गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! बहुते जतनवा से तोहरा के हम जियवनीं घाम-शीत आ बरखा से हरदम बचवनीं! कवनी सवतिया में हेराई गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! सोचले रहीं सोनवा के महलिया बनाइब सभ नजर-गुजर से तोहके हम बचाइब! कवनी बृछिया पर बसि गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो! तोहरे कारनवा हमार जिनिगी भुलाइल डिह-डिहुवार पूजववनी जहंवा सुनाइल! बिना कुछ बतवले बसि गइलऽ जाइके कइलऽ मोर जिनिगी अन्हार हो! अब दिने में राति लागे ना होखे विहानवा जिनिगी के आस टूटल उड़ि गइल मनवा! कवनी नगरिया में बसि गइलऽ जाइके कई दिहलऽ सगरी अन्हार हो!         --------------------- रचना स्वरचित,मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

गाँव के थाती श्रृंखला नं-41

गाँव के थाती-श्रृंखला नं -41 ------------------------------------ पहिले जब परम्परागत खेती खूब मजिगर होखत रहल तब लगभग-लगभग सभे गांव में रहत रहल आ संजोगन केहू पढ़वइया रहल..जेकरा घरे कवनो लड़िका पढ़े लागे ओकर नाम से केहू ना बोलावे,कहल जाव कि पढ़कुआ चाहे पढ़निहारवा से कवनो काम नइखे करावे के चाहे कहे के आ कई गांवन में हल्ला मचि जात रहल। ओहू में जिनकर लड़िका राम अगर बनारस पढ़े चलि जासु त जवन देखजरना होखसु जवन आजुओ त बटलहीं बाड़न लोग, कहसु कि राजा बनारस हवुए ओहिजा त बिगड़बे करिहन बबुआ अब गइल भंइस पानी में। खैर बिगरल-बनल त भगवान जी के हाथ में बाटे केहू के कहला से ना होखेला अगर अइसन बात रहित तब केहू के केहू रहहीं ना देइत। ओहघरी सरकारी स्कूल रहल परवेट त केनियो रहबे ना कइल एहिसे सबकर लड़िका-लड़िकी एकही संगे पढ़त रहलन आ खूबे पढ़ाई होखे बिलायती दूधो पिये के मिलत रहे।सुबह के दस बजे से चार बजे तक स्कूल चलत रहल..साढ़े नौ बजे तक त कसहूं चोंहप जाये के रहे। स्कूल में पहुंचला के बाद अपनहीं साफ-सफाई करल जाव फिर सब बच्चा लोग एकही संगे पूरा स्कूल के कागज चाहे कवनो खराब सामान्य बिनि के एक जगह ले जाके फेंकत रह

उनके लिए शिकार हैं हम

उनके लिए शिकार हैं हम! -------------------------------- उनके लिए तो खार हैं हम सारे रिश्ते हम ही निभायेंगे! क्यों नहीं बड़े साहब जो हैं हम उनके गुनाहगार जो हैं! एकतरफा प्रेम हम ही करें उनके तो तलबगार हैं हम! वो नजर अंदाज करते रहें उनके लिए शिकार हैं हम! जुबां पर शहद लिए घूमते हम बार-बार चले आते हैं! वे बार-बार खंजर चुभाते समझें कि बेजुबान हैं हम! ऐसी सोच जेहन में रखते प्यार में बिकना जानते हैं! मैं निस्पृह होके साथ देता तो भी शिकार होते हैं हम! -------------- रचना स्वरचित और मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

ऐसा यह संसार है

ऐसा यह संसार है....... ----------------------------------------- इस संसार में किसे कौन पूछता है जब काम कोई हो, तभी पूछता है। सभी हैं अपनी आरती करवाने में चिन्तन छोड़ ,हैं दूसरे की चिंता में। सामर्थ्यवान को तो सभी पूजते हैं और निरीहों का अश्रु भी रोकते हैं। जगह-जगह अपने ही अलाप लेते आप बोलें,वज्र  से कड़क हो जाते। छोटे हैं,उचक कर बड़े  बन जाते हैं किन्तु दूसरे को कलंकित बताते हैं। विजय की उम्मीद किसी की देखते  दबी चीख वे ग्लानि में माथा पीटते। सोने के छत्र से आसमां दिखाते हैं  दूसरे को जमीं पे देख डर जाते हैं।               ----------------- रचना स्वरचित और मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरैली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

सब समझ रहे हैं कपट,प्रपंच,ताल

सब समझ रहे हैं कपट,प्रपंच,ताल ----------------------------------------- कलंक का उन्माद अब नहीं सहेंगे चाहे कुछ भी होगा अब नहीं सहेंगे अरि मस्तक का अट्टहास नहीं सहेंगे जियेंगे तो कई बार मृत्यु नहीं सहेंगे। जो सुरसा जैसे मुंह बाये यहां खड़े हैं ये मत समझ ! हम हाथ बांधे खड़े हैं मैं अभी सो रहा हूं तब दुश्मन खड़े हैं पीठ पीछे वार के तेरे धोखे खड़े हैं। सब समझ रहे हैं कपट ,प्रपंच,ताल देखते खड़ग झुक जाते हैं तेरे भाल अपने अवगुण का नहीं तुझे मलाल हाय अपने पापों का घड़ा तूं संभाल। ------------------- रचना स्वरचित और कमेंट @सर्वाधिकार सुरक्षित @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

अब किससे उम्मीद रखें

अब किससे उम्मीद रखें ------------------------------ संसार बदलेगा कैसे क्या बदलने का समय यही है या कि फिर कभी नहीं अब यही समय है सही समय है पर सभी सोच रहे चलने दो जैसे चल रहा है हमें क्या,दूसरे करेंगे मिल्क बूथ पर बिक रहा लिखा है मदर मिल्क इसके लिए भी तरस रहे लोग धोखेबाज हो गये धंधेबाज धंधेबाज होते अंधे चश्मे की दूकानों पर भी मिलने लगी पत्थर की आंखें भला उन बनावटी आंखों से कैसे दिखेगा यह संसार फिर कैसे बदलेगा संसार मुझे भी तो अपने काम पर जाना है मुझे भी फुर्सत नहीं है गांव में सामंजस्य भी बनाना है नेताओं के साथ नारे भी लगाने हैं चलो जैसे चल रहा है चलेगा सब ईश्वर करता है हम क्या कर सकते हैं इसी तरह की सोच रखते हैं सभी फिर हम‌ कैसे उम्मीद करें कि संसार बदलेगा दूसरा कुछ करे तो गलत वो करते तो सही भीतर से कुछ और होते हैं बाहर से कुटिल मुस्कान रखते कहते कि बदलाव हो रहा जरूर हो रहा है हमने देख लिया समझ लिया कौन अपने कौन पराये हैं एहसास करा दिया गया अब अपने काम पर लगना है अपनों से सावधान रहना है स्वयं को ही बदलना है अतः इसके लिए स्वयं को स्वयं से उपर उठकर चलना होगा पहले हमें अपने को बदलना होगा

खेतिहर के मन के बात

खेतिहर के मन के बात ! ------------------------------ गोड़वा में फाटल बेवाई खेतवा में आगि लागल माटी करइली अंइठाइल कंटवो से ढ़ेर बवुराइल ! सोकना बरधा मेंहीं चले खुरिया में चभ-चभ धंसे करइली माटी खोभाइल खून से खुरिया सनाइल ! पलिहर खेतवा हेंगवनी दूई चास के बाद बोवनी आधा डिभी भरभराइल आधा भीतरे ततहराइल ! का करीं हालियो नइखे पइसा-कवुड़ी भी नइखे जियरा मोरा अफनाइल फिकिरी निनियो हेराइल ! सेठ महाजन खुश बाटे सूद पर रुपया देले बाटे जब खेतियो जहुआइल पइसा लेबे चढ़ि आइल ! खेतिये के रहल आसरा बबुआ पढ़े गइले बहरा अब फीस नाहीं भराइल माथवो हमार चकराइल ! का कहीं कुछ सूझे नाहीं हमार बात केहू बूझे नाहीं काम करत हाथ घठाइल खेतिये वाला बा भठाइल !         --------------- रचना स्वरचित,मौलिक  सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

कुंडली मार भुजंग मृदु बोल रहे

लक्ष्य मिलकर रहेगा अगर दृढ़ संकल्प हो -------------------------------------------------- चल पड़ा है पथिक अपने कर्तव्य पथ पर चलते ही जाना अपने लक्ष्य की राहों पर। लक्ष्य मिलकर रहेगा अगर दृढ़ संकल्प हो जो चलते हैं मंजिल पाने दूर होंगी बाधायें। दुनिया में ऐसा क्या जो नहीं मिल सकता निष्काम कर्म किया फिर फल भी मिलेगा। चलने वाले सोचते नहीं हैं उठने गिरने पर सफलता भी कदम चूमेगी कर्म करने पर। जरूर पुष्पित होंगी मन की अभिलाषाएं पथिक का काम है चलना बस चलते रहो। प्रभु श्री राम भी चलते रहे कर्तव्य पथ पर जिस हाल में रहे वे चले नेकी की राह पर। कठिनाइयों से जूझेंगे तो जीत मिलेगी ही जब संघर्ष करेंगे फिर जीत भी होगी ही। लक्ष्य तयकर चल पड़ेंगे कर्तव्य पथ पर नेक इरादे हैं तो पहुंचेंगे विजय पथ पर। -------- रचना स्वरचित और मौलिक @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश @followers

आजकल आदमी में ही आदमी ढ़ूढ रहा है

आदमी की खोज में आजकल आदमी चल रहा है ------------------------------------------------------------- आदमी की खोज में आजकल आदमी चल रहा है जिसको जख्म देता है उससे ही मरहम खोज रहा है। हर वक्त वह राजनीति करता है पर दूसरा बोलता है तब कहने लगता है कि ही वह राजनीति कर रहा है। वह एक आदमी खोजता है पर वही आदमी नहीं है सब उसके काम आयें वो किसी के काम का नहीं है। दूसरे की नीयत देखता अपनी नीयत में खोट रखता किसी का नहीं होता पर वही सबको उपदेश देता है। सबको ललकार कर वह पतली गली से निकल लेता सारे फसाद खत्म होते वह सहसा प्रकट हो जाता है। वह शब्दों का जादूगर है शब्द जाल में है बांध लेता जो जैसा सोचता वह पल भर में वैसा बन जाता है। आधुनिक बहेलिया है,पंछी नहीं वो आदमी फंसाता नये तरीके इजाद कर भरोसे का कत्ल कर जाता है। हमने भी भरोसा किया हम चोंचलेबाजी नहीं जानते सब लुटाके देखकर पाया कि मेरा जमीर जिन्दा है। ----------------------- रचना स्वरचित और मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

अब ना सहाला आवऽ मोर सजनवा

अब ना सहाला आवऽ मोर सजनवा ------------------------------------------- तिल-तिल झुलसेला विरह में मनवा अब ना सहाला आवऽ मोर सजनवा। हमसे सहात नइखे अब अकेले रहल मने में रोवत हम करीं सबकर कहल। दिन-रात रोवले कटात नइखे दुखवा बिन तोहरे निकलतो नइखे परानवा। तनिको अलसाईं , गरहन तोहरे लागे रवुंआ लागत रहीं डगडर केहें भागे। हरदम जगावत रहनीं हमरो सपनवा दुख ना आवे देत रहीं हमरा पंजरवा। देहियों पहाड़ भइल बोझा नाहीं उठे दिन के का कहीं रतियो बुझाव झूठे। बिहंसे बिहान हंसेला होते बिहानवा छछनत हिया के आस धरावे मनवा। निरदई भइल निर्मोहिया उफर परो एक दिन अपने बिरहे वियोगे जरो। तिल-तिल झुलसेला विरह में मनवा अब ना सहाई आवऽ मोर सजनवा। गंगा जी के पानी अस हमार मनवा अंसुवन के धार से भिंजल अंगनवा। --------------- रचना स्वरचित,मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

कुहूं-कुहूं बोले कोइलर कि नीक दिन आइल

कुहूं-कुहूं बोले कोइलिया कि नीक दिन आइल -------------------------------------------------------- कुहूं-कुहूं बोले कोइलिया कि नीक दिन आइल उड़ि-उड़ि बइठेली कुछ कहेली हमरा बुझाइल। मन रहल उजास हियरा लागत रहे बहुत भारी मन मसोसत रहल कि चोट कहंवा बा लागल। बात जवन कचोटत रहे बाहर निकली आइल कोइलि के बोलिया सुनला पर मन अगराइल। लहकत जिनिगी भइल रहल, कुरूख मिताई तीत-मीठ होखेलसन हित-मित केतना बताई। कुहूं-कुहूं बोले कोइलिया कि मनवा फुलाइल मन भइल गुलाल सूखल मन फेरू अगराइल। रूप-रंग लेके उड़ि गइल रहे जवन चुहेड़पन तीत लागत रहे मीठ बोलियो के अल्हड़पन। धनि बाड़ू कोइल तोहरे से नीक दिन आइल मन के पंछी तोहरे सुमगुम पाके चहचहाइल। --------------------- रचना स्वरचित,मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

रिश्ते सिर्फ दो-चार शब्द नहीं हें

रिश्ते सिर्फ दो-चार शब्द नहीं ----------------------------------- रिश्ते सिर्फ़ दो-चार शब्द नहीं अपनी संस्कृति एवं संस्कार हैं। अपने वजूद के एहसास का है अपनत्व के पूर्ण विश्वास का है। अपनों से सुखमय आस का है सुख-दुख में साथ चलने का है। अपने पास भले ही दम नहीं है मगर किसी से कम भी नहीं हैं। चार शब्दों में ही परिलक्षित है हम ही हैं यह तो कोरा वहम है। मगर तेरा वहम एक अहम है कि हम हैं हमसे तेरा वजूद है। --------- रचना स्वरचित और मौलिक राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश @followers

एक विरासत हो पर सौगात न हो

एक विरासत हो पर सौगात न हो ----------------------------------------- रू-ब-रू हो कोई साथ न हो बन्द खामोशी पर बात न हो । मिलन की शामें सब  हों  तन्हा अश्क  घिरें   पर  बरसात   न  हो। वैसे  सहारे  की  तारीफ  भी करूं सिर  कभी  कन्धा  या हाथ न हो। हर अफसाने भी  मायूस  हुए लगे बेवजह जज्बों की गर बात न हो। ज़िन्दगी  यूं उलझी  व सांस कहीं एक विरासत हो पर सौगात न‌ हो। जीवन में  मज़ा भी तभी आता है संघर्ष में कोई अपना  साथ न हो।               ----------------- @राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्तर प्रदेश

जुल्फें मर्यादा भूलीं, पत्ते भी आशिक हो रहे हैं

जुल्फें मर्यादा भूलीं,पत्ते भी आशिक हो रहे हैं -------------------------------------------------------- मौसम साफ़ हो रहा ,हवाएं बेख़ौफ़ हो रही हैं। जुल्फें मर्यादा भूलीं, पत्ते भी आशिक हो रहे हैं मिलन की चाह में पत्ते गिरकर चले आ रहे हैं। मौसम सरस हो रहा है आमों में बौर लग रहे हैं। भौंरे कुलांचे मार रहे हैं वो भी गिरने आ रहे हैं। बिरहनियां जल रही हैं कोयलें ताने मार रही हैं। किसी की याद में पत्ते गिरकर खुश हो रहे हैं। मौसम फ़ाग हुए हैं,फूल मदमस्त हो झूम रहे हैं मौसम भी बदल चुके हैं बूढ़े पेंड़ नये हो रहे हैं। पुराने पत्तों की जगह कोमल पत्ते झांक रहे हैं। इन पत्तों को देखो झुलसकर भी मुस्कुरा रहे हैं हम हैं कि आग लगाकर भी खुश हुए जा रहे हैं। ------------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली बलिया उत्तरप्रदेश

सूखल नदी-नाला फिर से बढ़ियाइल

सूखल नदी-नाला फिर से बढ़ियाइल!! --------------------------------------------- अमवा मोजराइल, महुओ कोचाइल कोइलर के कूंक से फागुन बुझाइल! बुझातबा कि आइल उखमजल फ़ाग सरसो फूलल भंवरा छेड़े लागल राग! धरती माई बाड़ी धानी रंग में रंगाइल सब केहूवे खुशी से बाटे लहलहाइल! सन-सन चले लागल पूरबी बयरिया केसे कहीं गतरे-गतर बेधता देहिया! सभकर मनवा बिहंसल ,चहचहाइल चेहरा गुलाब नियन खिलखिलाइल! लाल-पियर होके बहकल मोर जियरा नाचे मन-मयूरा सावन भइल हियरा! हरियर कचनार देखिके मन गदराइल सूखल नदी-नाला फिर से बढ़ियाइल!            ------------------ रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

मन का सन्नाटा अविरल

मन का सन्नाटा अविरल!!! -------------------------------- मन का सन्नाटा अविरल देख रहा नित नए साल! रोजाना नई उठती तरंगें तब भी मन है अविकल! आशीष कपोल-कल्पित हर्षित मन नहीं हलचल! रहता मन से अति शुभ हृदय नहीं भाव-विह्वल! छद्म धूप की पीली छांव कलुषित है मन निर्मल! दाड़िम फल है प्रतिपल संतृप्त नहीं होता अनल! आकाश से बड़े  दिखते प्रतिमान  जैसे क्षुद्र तल! आरूढ़  है  मन  में सत्ता  हृदय  अकुलित  निर्बल!  देखे दृग  सजाकर जिसे उर खंजर से काटे भाल!            ------------ रचना स्वरचित,मौलिक  राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

कब अइहन मोरे संवरिया

कब अइहन मोरे संवरिया ------------------------------- कब अइहन मोरे संवरिया घर से झांकी हम दुवरिया! पूरबी बयार बहे लहकार मनवा में मचल हाहाकार! कोइल बोलेले कुबोलिया काटे धावे हमके सेजरिया! चन्दा अगिया बरिसावसु पपीहा हमके तरसावसु! डहकत बा हमरो परनवा कब होई हमरो बिहनवा! सुनसान लागे अंगनइया काहें सतावेल मोर संइया! -------------- @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

एक खुशी टंगी है दीवार पर

एक खुशी टंगी है दीवार पर ---------------------------------- जब भी दिल भर आता है मेरा देखता हूं अपलक दीवार को। सोचता हूं क्या देखता हूं रोज लेकिन वही दीवार मैं भी वही। अन्तत: दीवार भी सोच में थी मेरे पास ऐसा क्या देखने को। उमड़ते-घुमड़ते बादलों जैसे लेकिन वही अनुत्तरित प्रश्न। दोनों का मौन व्रत टूटे कैसे आखिर साधना की चुप्पी थी। मुझे ज्ञात था कि मैं चेतन हूं मेरा दीवार जैसा रूतबा नहीं। आखिर देख तो मैं ही रहा हूं तो नीरवता मुझे ही तोड़ना है। दीवार तो जमाना जैसी ही है मुझे अपने को वैसा बनना है। मैं जब कभी हारने लगता हूं दीवार ही ढ़ाल बन रोकती है। मेरी खुशी टंगी है दीवार पर तभी देखता हूं अपलक उसे। वह निस्पृह मिसाल होती है मुझ वंचित को सहारा देकर। वह मेरे दुख-सुख की सारथी मुझे सान्त्वना देकर सुलाती।       ----------- रचना स्वरचित और कमेंट  @सर्वाधिकार सुरक्षित।।  राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ

एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ ------------------------------------ रोटी जनि बेला ए मोरे सुगना रोटी बेले में पार नाहीं पइबऽ। संगे रहि लोग रोटियो बेलवाई लहका के अगिया भागि जाई। गाड़ी फंस जाई ए मोरे सुगना फिर तूहूं निकलि नाहीं पइबऽ। तोहार सेंकल रोटी सभे खाई उहे तोहरा के चित्त करि जाई। बाति के बटोरऽ ए मोरे सुगना अपने तूहंई उखेला हो जइबऽ। फल्लड़ में जनि परऽ ए सुगना एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ। ढ़ाहि देईंजा अहं के सवतिया मिलि के रोटी खा ए संहतिया। बतिया बूझऽ ए मोरे सुगनवा ना त हाथे मलत रहि जइबऽ। सब एहघरी हुंड़ारे बनल बाटे कुछवू बोलऽ, दवुरत बा काटे। कांट जनि बोवऽ ए मोर सुगना धंसि त कइसे निकालि पइबऽ। --------------- रचना स्वरचित,मौलिक राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

निर्मोहिया अइबे ना कइल

निर्मोहिया ना आइल!!! ----------------------------- असरा में मन अंझुराइल , निर्मोहिया ना आइल जोहत अंखिया पथराइल,निर्मोहिया ना आइल मनवा के ललसा मनवे में मुरझात बा। मनवा के बतिया मनवे में रहि जात बा देहिंया हमार पियराइल, निर्मोहिया ना आइल सरधा हमार ना पुराइल, निर्मोहिया ना आइल  अब हमरो उमिरिया ढ़रकल जात बा                       पुरकस  शरीरिया  लरकल  जात बा। सरधा हमार ना पुराइल,निर्मोहिया ना आइल  देहिंया हमार पियराइल,निर्मोहिया ना आइल                       हमरो  जिनिगिया  बहकल जात बा।                       असरा  के फुलवारी सूखल जात बा याद में बानी सुखाइल ,निर्मोहिया ना आइल मन हमार अकुलाइल ,निर्मोहिया ना आइल                       ----------------- रचना स्वरचित,मौलिक  राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

आंसुओ को मुस्कान समझिये

का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल ------------------------------------------------- का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल बनला में शहर, गंवुओ बेकार हो गइल। झुरूकत नइखे इहंवो नेहि के बयरिया गंवुओ धुंआइल, रहि रहि घेरे बदरिया। मिलत रहे जहां प्यार , तकरार हो गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल। तनी-तनी बात में महाभारत होई जाता कइके रगड़ा अब झगड़ा खोजल जाता। देखा - देखी में गंवुओ बाजार हो गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल। गंवुओ के शहर अब बनावल जात बा गांव के पहचान अब मेटावल जात बा। इहंवो शहरन के सब विचार आ गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल। सवारथ में चले लागल राहि से कुरहिया नइखे चिन्हात बाबू हवुवन कि भइया। जाने कवन चनरगत के शिकर हो गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल।                 --------------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल

का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल ------------------------------------------------- का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल बनला में शहर, गंवुओ बेकार हो गइल। झुरूकत नइखे इहंवो नेहि के बयरिया गंवुओ धुंआइल, रहि रहि घेरे बदरिया। मिलत रहे जहां प्यार , तकरार हो गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल। तनी-तनी बात में महाभारत होई जाता कइके रगड़ा अब झगड़ा खोजल जाता। देखा - देखी में गंवुओ बाजार हो गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल। गंवुओ के शहर अब बनावल जात बा गांव के पहचान अब मेटावल जात बा। इहंवो शहरन के सब विचार आ गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल। सवारथ में चले लागल राहि से कुरहिया नइखे चिन्हात बाबू हवुवन कि भइया। जाने कवन चनरगत के शिकर हो गइल का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल।     --------------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

जन्म से पहले ही मृत्यु

जन्म से पूर्व मृत्यु --------------------- दहल जाता है हृदय मेरा जब भी सोचता हूं वह खौफनाक मंजर पाती है अंजाम पर जिसके किसी के जन्म से पूर्व मृत्यु जिंदगी की राहों में गुमनाम भटकते हुए एक अंश को करती है धारण अपने अन्दर स्वयं में फिर उसकी हत्या क्यों ? जो है निर्दोष, निरपराध हर चीज से वह अज्ञात फिर क्यों मिलती है उसे मृत्यु शेरनी शावक को,गाय बछड़े को जूझकर विषम परिस्थितियों में करते अपने बच्चों की रक्षा तो क्या हम सभ्य मानव की मर चुकी सारी संवेदनायें इतने भी वेस्टर्न कल्चर के अंधभक्त न बनो हे मानव! तुम हो कंस और दानव करते हो अजन्मे शिशु की हत्या दहल जाता है हृदय मेरा सोचता हूं वो खौफनाक मंजर जब मृत को जीवित नहीं कर सकते तो गर्भस्थ शिशु को तुम्हें किसने दिया है अधिकार गंभीर विषय है, आखिर क्यों मिलता है किसी निरपराध को जन्म से पूर्व ही मृत्यु ??????? ------------------ राम बहादुर राय भरौली ,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

बइठल सोचेली चिरइया

बइठल सोचेली चिरइया ------------------------------ बोलेली चिरइया कइसे बनइबो खोंतवा आसरा के सूखल सरेहिया सगरो लउके उजास उजड़ल दूबिया के झोंझवा मोथवा के टूटल सनेहिया टुकुर-टुकुर ताकेली निरखेली खेत-खरिहान एहिजुगो आइल सहरिया बबूरा पर बइठल सोच में बइठल चिरइया लउकेला सगरो अन्हरिया उजड़त बा बगइचा खेतो में भइल बा अगोर चारा चुगब कवने ओरिया हमरो बइठता जियरा मनवा भइल जाता थोर सेइब केकर हम दुवरिया --------------- रचना स्वरचित,मौलिक राम बहादुर राय भरैली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

गाँव के थाती-श्रृंखला-40

गाँव के थाती-श्रृंखला-40 --------------------------------- चइती के खेती के समय निगिचाइल रहल तब सभे अपना-अपना काम-धाम में अंझुराइले रहल काहें से कल-पुरजा वाला युग-जमाना ओह समय ना रहल। सबसे बड़ बात रहे कि पइसा कमाये के कवनो साधन ना रहे आ कुछ लोग के पास ही आपार धन-सम्पदा, खैत-बारी रहल...त अब बाकी लोक करसु कवन काम, आज के अइसन त रहबे ना कइल कि कहीं ठेला-ठूली चाहे दर-दोकान लगा के फुटपाथो पर कमा लिहित लोग। गाड़ी-छेकड़ा भी ना रहल आज के समय लेखा कि कहीं माल उतरत होखे कि मोटिहाई कइके चाहे ड्राइवर, कंडक्टर, खलासी, मिस्त्रियांव से दू पइसा भेंटाइत.....फिर विकल्प सीमित रहल बहुत कम लोग पढ़बो करे...खाहीं के कवनो नीमन व्यवस्था ना रहल ढ़ंग के तब उ पढ़ाई- लिखाई का करितन। अब ओह समय होखत इहे रहल कि चरवाही, हरवाही, मेहनत, मजूरी के बाद लगभग-लगभग कवनो दूसर उपाय ना रहल....जमाना उ बहुत सस्ता रहल लेकिन पइसा केहू के लगवा रहबे ना कइल...आज लाख मंहगाई बाटे लेकिन सबका लगे आधुनिक व्यव्स्था बटलहीं बाटे कुछ अपवाद हो सकेला ओकरा के छोड़ि दिहल जाव त। सबकर संयुक्त परिवार रहल आ खेती कमाये खाये खातिर मुख्य काम रहल जवना