एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ
एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ
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रोटी जनि बेला ए मोरे सुगना
रोटी बेले में पार नाहीं पइबऽ।
संगे रहि लोग रोटियो बेलवाई
लहका के अगिया भागि जाई।
गाड़ी फंस जाई ए मोरे सुगना
फिर तूहूं निकलि नाहीं पइबऽ।
तोहार सेंकल रोटी सभे खाई
उहे तोहरा के चित्त करि जाई।
बाति के बटोरऽ ए मोरे सुगना
अपने तूहंई उखेला हो जइबऽ।
फल्लड़ में जनि परऽ ए सुगना
एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ।
ढ़ाहि देईंजा अहं के सवतिया
मिलि के रोटी खा ए संहतिया।
बतिया बूझऽ ए मोरे सुगनवा
ना त हाथे मलत रहि जइबऽ।
सब एहघरी हुंड़ारे बनल बाटे
कुछवू बोलऽ, दवुरत बा काटे।
कांट जनि बोवऽ ए मोर सुगना
धंसि त कइसे निकालि पइबऽ।
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रचना स्वरचित,मौलिक
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
@followers
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रोटी जनि बेला ए मोरे सुगना
रोटी बेले में पार नाहीं पइबऽ।
संगे रहि लोग रोटियो बेलवाई
लहका के अगिया भागि जाई।
गाड़ी फंस जाई ए मोरे सुगना
फिर तूहूं निकलि नाहीं पइबऽ।
तोहार सेंकल रोटी सभे खाई
उहे तोहरा के चित्त करि जाई।
बाति के बटोरऽ ए मोरे सुगना
अपने तूहंई उखेला हो जइबऽ।
फल्लड़ में जनि परऽ ए सुगना
एहिकुल में फंसल रहि जइबऽ।
ढ़ाहि देईंजा अहं के सवतिया
मिलि के रोटी खा ए संहतिया।
बतिया बूझऽ ए मोरे सुगनवा
ना त हाथे मलत रहि जइबऽ।
सब एहघरी हुंड़ारे बनल बाटे
कुछवू बोलऽ, दवुरत बा काटे।
कांट जनि बोवऽ ए मोर सुगना
धंसि त कइसे निकालि पइबऽ।
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रचना स्वरचित,मौलिक
राम बहादुर राय
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