Posts

Showing posts from November, 2021

चिंता

हजारों उलझनें हैं लाखों समस्यायें हैं, जिंदगी ऐसी है कि हम मशीन हो गये हैं, हर कोई दंभ में है कि दूसरा कुछ भी नहीं है, लेकिन जी वही रहा है जो सुगर, प्रेशर फ्री है, सब कुछ खा ले रहा है परहेज से परहेज़ नहीं है, बिंदास होकर रह रहा है बेबाक कुछ कह रहा है, न प्लाट,न मकां की चिंता दो गज़ में नींद ले रहा है, समस्या को मसल दे रहा है  मस्ती में अकेला जी रहा है, उलझनों से क्या वास्ता है खुदा के सहारे जी रहा है.......              ------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश

किसान

किसान ही... भगवान......... ---------------------------------- भोजन देता हमारा किसान फसल उगाता है गेहूं धान। सबको देता है जीवन दान किसान ही सच्चा भगवान। सीधे साधे हमारे हैं किसान सबसे सच्चे, अच्छे इन्सान। चरण स्पर्श करके प्रणाम मुखमें रहे श्री कृष्ण व राम। प्रातः उठकर करते हैं काम खेतों से काम कर लौटें शाम। खूब उपजाते पाते आधे दाम लगे रहते कभी न करें आराम। नहीं देखते हैं वर्षा है या घाम खेतों में चलते वे लाठी थाम। फटी पुरानी होती धोती लपेट नहीं करते "अकेला"पर चपेट। बदन पर दिखे धूप की निशानी नहीं समझे वे बुढापा-जवानी। इनके उपजाये अन्न सब खाते सारे लोग इनको चपत लगाते। ईश्वर को तो हमने देखा नहीं है हम तो किसान को ईश्वर मानें। जितनी प्रशंसा करेंगे कम होगा इन्हें प्रसन्न करें ईश्वर प्रसन्न होगा।                 ----------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

रिश्ते

कैसे रिश्ते---???? ------------------------ स्वार्थ की दुनिया में, रिश्ते कहां?? प्यार मोहब्बत जाने गुम हो गये। प्यार मोहब्बत की दौलत सच थी जाति-धर्म बोलकर विष घोल गये। वह तो समय- समय की बात है जो भी झूठ फरेब किये निखर गये। जब चमन का माली"अकेला"हुआ हर डाल बेजान हुई पत्ते सूख गये। जो दो जून की रोटी की तलाश रहे वो रोटी- रोटी व रोटी को तरस गये। हम भी सियासत व नज़्म जानते थे ये बड़े छोटे-छोटे के बीच फंस गये। जिस किसी को अपना समझ बैठे वही ही मेरा सब कुछ मेरा ऐंठ लिये। हमें शिकवा है ईश्वर से यदि वो हैं तो आदमी था ही तो इंसा क्यों हो लिये???                     ------------ रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित। राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

राम बहादुर राय "अकेला"

चुनाव पर नजर

चुनाव पर विशेष--- ----------------------------- भैया मजदूर तू घरे जब अईह! सब दुःख दर्द बतईह रहिया में जवन भयल ! ऊ कबो ना भुलईहा घरे आके कुछ दिन! "अकेला"ही काम चलईह चुनाव जब आई तब! गिन गिन के बदला तूहूं वोट देके चुकईहा! ए बेरी सबक तू सिखईहा फिर फिर कौनो झांसा में! मति तूहूं परि जईहा ई लोकतंत्र में आपन! वजन सबके देखईहा आधा पेट खाके बाबू! ललनवन के जरूर पढईहा वोटवा के बेरी खूबे तू! नीमन कहावेला वोटवा बीत जाला त! केहू पूछहू ना आवेला रोज़ जे करेला मज़दूरी! वोही पैसा से काम होला घरवे में रहिके कैसे कैसे! मजदूर काम चलावेला ई बात केहू ना समझेला! मजदूर के ही सब केहू दोषियो भी ठहरियावेला! मति घबरईहा ए बाबू तूं वक़्त सबके सिखावेला! गरीबन के ताकत वोट हा जब तूहूं बटन दबईहा! पैदल चलल याद करिहा दबे पांव जाके पहिलहीं! बूथवा पे लाईन लगईहा औरू सूद समेत आपन! बदला जरूर चुकईहा याद करिहा दुखवा आपन! जब वोट देबे तूं जईहा उनसे बदला जरूर चुकईहा!          ------------- रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित  ----------राम बहादुर राय----                    "अकेला"

दीपोत्सव

कहीं दीप महोत्सव जाता खूब मनावल। लाखों दीप खूबे बा हर जगह जलावल। ओह गरीबवन के त केहू ना पूछवईया बा। जेकरा घर में चूल्हा एक बेरा ना जरत बा। ओकरा का बुझाई ई... भूख से दिया बुताता। दीप महोत्सव सही से तबे मानल जाई जब। हर घर में नाहीं केहुवो भूख से रहे अकुलाईल। प्रभुजी दीनानाथ बाड़न दीनन में रहेले लुकाईल। करोड़न रुपिया का होई जब अदिमी बा भुखाईल। दीपावली तबे ठीक कहाई सभकर छुधा जब जुड़ाई। कवनो तिहुवार नीक लागी सभके चूल्हा जरावल जाई। छोटे-बड़े के भेद मिटी तबे सबके दिल में दीवाली होई। बिना भेद के सब साथे रही ना केहू भी"अकेला"पछताई। ई नीमन कईसे हो सकेला... कहीं जगमग जगमग होखे.... केहू कोना अंतरा में रहेला दरिद्रनारायन सुसुके भुखाईल.....                    ------------ रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित @ सर्वाधिकार सुरक्षित। राम बहादुर राय"अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश