चिंता
हजारों उलझनें हैं लाखों समस्यायें हैं, जिंदगी ऐसी है कि हम मशीन हो गये हैं, हर कोई दंभ में है कि दूसरा कुछ भी नहीं है, लेकिन जी वही रहा है जो सुगर, प्रेशर फ्री है, सब कुछ खा ले रहा है परहेज से परहेज़ नहीं है, बिंदास होकर रह रहा है बेबाक कुछ कह रहा है, न प्लाट,न मकां की चिंता दो गज़ में नींद ले रहा है, समस्या को मसल दे रहा है मस्ती में अकेला जी रहा है, उलझनों से क्या वास्ता है खुदा के सहारे जी रहा है....... ------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश