रिश्ते
कैसे रिश्ते---????
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स्वार्थ की दुनिया में, रिश्ते कहां??
प्यार मोहब्बत जाने गुम हो गये।
प्यार मोहब्बत की दौलत सच थी
जाति-धर्म बोलकर विष घोल गये।
वह तो समय- समय की बात है
जो भी झूठ फरेब किये निखर गये।
जब चमन का माली"अकेला"हुआ
हर डाल बेजान हुई पत्ते सूख गये।
जो दो जून की रोटी की तलाश रहे
वो रोटी- रोटी व रोटी को तरस गये।
हम भी सियासत व नज़्म जानते थे
ये बड़े छोटे-छोटे के बीच फंस गये।
जिस किसी को अपना समझ बैठे
वही ही मेरा सब कुछ मेरा ऐंठ लिये।
हमें शिकवा है ईश्वर से यदि वो हैं तो
आदमी था ही तो इंसा क्यों हो लिये???
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रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश
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