Posts

Showing posts from July, 2021

कुछ पाने की ज़िद

तुझे मुझसे दूर जाने की ज़िद है पर मुझे तो तेरे पाने की ज़िद है। तेरी ज़िद के न टिक सकूंगा मैं यह भी मुझे बखूबी मालूम है। लेकिन इस बात का ग़म नहीं है कि तुम,मुझे मिलोगे या कि नहीं। मगर इतना तो मुझे तो यकीं है डूबके भी मैं तेरे पास ही आऊंगा। फासला मुझसे जितना बनाओगे उतना ही नज़दीक तेरे मैं आऊंगा। अगर इस जनम में नहीं मिलोगे अगले जनम में साथ तेरा पाऊंगा। तुम ये न समझना "अकेला"रहूंगा हर पल ही तेरी याद में बिताऊंगा। जमाना कहता है मुकद्दर का खेल है मैं तुझे मुकद्दर से भी छीन लाऊंगा। मेरी जिन्दगी का तो तूं ही मक़सद है अपने मक़सद में हद तक जाऊंगा। कोई लाख जतन करके भी देख ले तेरी हर ज़िद को मैं भी अपनाऊंगा।                    ---------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश

विश्वासघात

जिन्हें हम गले से लगाते रहे वही मुझे खंजर चुभाते गये। क्या कहें जमाने के लोगों का मेरा खाते रहे मुझे डुबाते गये। बात सच और झूठ की किये वो सच से फासला बढ़ाते रहे। जिसके लिए हम ही कुर्बां हुए उसके हाथों से हमीं कुर्बां हुए। जिसके अश्कों को पोछा मैंने मेरे अश्कों के वे मुलाज़िम हुए। क्या कहें कुछ हम कह ना सके आदत है सुनने की सुनते ही रहे। बड़े नाज़ो से हम मुखातिब भी थे अब"अकेला" मेरे ही क़ातिल हुए। मेरी आदत भी खानदानी ही है आग में जलकर उन्हें बचाते रहे। जिनके जख्मों पर मरहम लगाया ठीक होते ही अवकात देखने लगे। मेरी अवकात तो कुछ भी नहीं है सबकी सेवा करूं ये शिरोधार्य है। मेरी कोई चाह नहीं,कोई दाह नहीं मैं"अकेला"हूं कोई परवाह नहीं है।                  ------------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश

उलझला में दम ना बा-

उलझला में दम ना बा- ------------------------- अब त कहीं ना मनवो करेला कि केहू से उलझीं। हम केतनो ज्ञसही रहब तबो हमरे कहाई गलती। घूमन्तू जीव के बाटे चलती ओहनी ना रही गलती। हमहूं खूबे झगड़ा फरियाईं रात-रात के घरे आईं। एहू समय कर दिहनी गलती सही बोलल ह गलती। ममिला थाना में चलिए त गईल उहां चाही भरल थलती। दारोगा, पुलिस औरी ऊ मुंशी सब ओकरे ओर से बोले। ई त लोफर हईये है तब फिरो काहे तें कईला गलती। ई सब त पढल कम ही बाड़न एहनी के माफ ह गलती। अब त तोहार चोला शराफत ह कुछ देर में डंडा से उतरी। इज्जत भी त तोहरे बा ए बाबू फेंका पईसा भरल गगरी। ना त अईसन दफ़ा हम लगाईब लाल घर में रहब कगरी। ओहनी के जेलो में का ले जाईं करजा में बाड़े स दोबरी। खड़ा खड़ा गोड़ दुखाये लागल तब"अकेला"में सोचनी। एहि लफंगवन से माफी मांग लीं ना त चलि जाईब भीतरी। ए बाबू हमरा से गलती हो गईल क्षमा कर दजा अबरी। तोहने लोग अब सही बाड़जा इहां ना उलझब फिर दोबरी।                     ------------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश

सौदेबाज ही कामयाब

सिमट रहे हैं रिश्ते चाहे दिल के हों या जज्बातों के हों चाहे एहसास के हों। अब कामयाब वही जो सौदेबाज होगा रिश्तों के एहसास का मतलब सिर्फ भावनाओं से खेलना। कामयाब नहीं वह जो रिश्तों को समझे उसे तवज्जो देता है सबको जोड़ता है । यह कैसी दुनिया है यहां कैसे कैसे लोग जिसे मान दे दो वही वह उसे ही कर देता अलग-थलग"अकेला"। दुनिया एक दिखावा आज के इस जहां में उल्टी ही गंगा बहती है जो सूख गयी नदी है उसी में नाव चलती है। रिश्तों में भी व्यवसाय सच की राहें मुश्किल झूठ पे दुनिया चलती है जितना बड़ा फरेबी है उतना बड़ी कामयाबी           -------- राम बहादुर राय"अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

भेदभाव कैसा

बुराई वही करते हैं जो कुछ नहीं करते। यदि कुछ करते हैं तो बराबरी नहीं करते। दूसरों की तरक्की से स्वयं को जला देते हैं। पूरा समय दे देते हैं दूसरों की बुराई में ही। अगर तरक्की की राह स्वयं चलने लगते वह। यूं जाति - धर्म के नाम सरेराह आग न लगाते। सच्चा इंसान वो होता है जो सच के साथ होता है। प्रभु राम के साथ भी तो रीछ,वानर ,भालू सब थे। इक्ष्वाकु वंश के होकर भी शबरी के झूठे बेर खाये। भक्त वत्सल श्रीकृष्ण ने भी तो बहुतों को हैं तारे। क्षुद्र शकुनि के झूठी बातों ने महाभारत युद्ध करवाये। बुराई संसार की नाशक है इस बला से ईश्वर बचाये। दूसरों का खाना देखके वह पेट नहीं सहलाते। काश ! इन्हें समझ आये इनकी आदत सुधर जाये।             -------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

बेवजह चाहिए मित्रता

मैं बेवजह बदनाम हूं एक सच्चा इन्सान हूं। उसने मेरा हाल पूछा मैंने सोचा बेवजह है। जब गौर फ़रमाया तो कोई वजह प्रतीत हुई। मैंने सोचा ऐसा क्या है दोस्ती बेवजह होती है। फिर इनकी वजह कैसे वजह जानना चाहा तो। मुझे बेवजह नहीं लगी दोस्ती वजह से की है। फिर यह दोस्ती नहीं है जिसकी कोई वजह हो। तो हम बेवजह ठीक हैं वजह मेरी फितरत नहीं। हजारों दोस्त नहीं चाहिए बेवजह एक ही काफी है। मैं सच के साथ जीता हूं चाहे "अकेला"ही रह लूं । मुझे साथ रहना उसी के जो मेरे जैसा बेवजह हो। नहीं चाहिए मुझे शोहरत बेवजह मित्र ही काफी हैं।             -------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश,

नये युग में भी कैसी सोच???

नये युग में ये कैसी सोच--नारी हेतु-- ---------------------------------------- सबकी सोच तो अलग अलग है फिर भी सब एक ही तरह से हैं। सबकी पसन्द भी सुन्दर ही है वह चाहे उसके विपरीत हो । सब पढ़ी लिखी नारी चाहता है भले ही वो मार अक्षर क्यूं न हो‌। वह खुलकर बातचीत करती हो वह एकदम खुले विचार की हो। उसका रंग भी मिल्की व्हाईट हो भले ही वो सब काले कौए से हों। वस्त्र रैम्प पे कैटवॉक जैसा पहने वह भले ही ट्रेन पर भी न चढ़ें हों। वह फर्स्ट क्लास अंग्रेजी झारती हो खाना भी होटल में जाकर खाती हो। वह अपने घर की सेवा से दूर रहे बातें करते खिलखिलाके हंसती हो। केश घनेरे और घुटनों तक लहराये बिंदास बातें करते हुई चैट करती हो। नौकर चाकर घर पर काम करते हों और वो"अकेला"मौज करती रहती हो। लेकिन है कितने अफ़सोस की बात ऐसा दूसरे के घर में देखना चाहते हैं। अपनी बेटी की शादी कर सिखाते हैं गांव ठीक नहीं शहर में जाके रहते हैं। बहु यदि घर में सर्व गुण संपन्न आये उसे पुरातनपंथी चोले में सब रखते हैं। अपनी वीवी चाहे कितनी भी सुंदर हो दूसरी दिखे तो पंख लगा के उड

पापा के दिहल ह

पापा के दिहल--ह----त पहिरबे करब------ ----------------------------------------------- एगो लईकी हंसत खिलखिलाती आंख- मिचौली खेलत दिन रात। पावत रही पापा के प्यार दुलार पापा पर होखे प्यार के बरसात। एक दिन आवत रहली स्कूल से उनकर हाथ ऐंड़िये पर रहे जात। रोज रोज देखत रहनी करामात पूछि भईलीं बिटिया का है बात। तबो उ बिन कुछ कहे रही जात देखनी पीछे से पैर से लंगड़ात। हम समझ लिहलीं जूती से बाटे एह बिटिया के पैर रोज कटात। दूसरा दिन हम रोकि के पूछिलीं जूती से पैर जब होता लहूलुहान। तब एके तुहंवु फेंक दिहतू बिटिया फिरो सुघर नया जूती ना किनात ?? देखीं बात जूती के कटला के ना बा कतनो कुछ होखी एहिके पहिनब । रवुआ समझ में इ बात कबो ना आई हम एके काटेवाली जूती ना समझिले। एह जूती में पापा के प्यार छुपल बाटे एके पहिनब काहे कि पापा दिहले हवें। पापा के दिहल कुछवू रही उनके आज्ञा कटही जूती का जवन कहिहें उहे करब। हमहीं त पापा के मान हईं सम्मान हईं उनकर आशा, अरमान व विश्वास हईं।                      ------------- राम बहादुर राय

एगो स्त्री के त्याग---

एगो स्त्री के त्याग--- ----------+++++--- सब केहू जानेला केतना स्त्री के मानेला। जनमला से पहिलहीं ओकरा के कईसे मारेला। जनम केहूतरे ले लेली जनमते भेदभाव होला। बेटी बनिके बंधन में रहेली बहिन,पतनी आदि आदि.... वियाह में तिलक दहेज़ उ खूबे लेके ससुरा आवेली। केतनो नीमन से रहलेनी सास ननद के नाहीं भावेली। एतने से ना मानेली उ सब उनका मर्दों से लाई लगावेली। जेकरे के खूबे मानत रहली उहे दहेज बदे में जरावेली। शिव जी एक बेर विष पियले ई त रोजे ज़हर ढरकावेली। इनका नियन त नईखे त्यागी केहू के गलती के सजा पावेली। सब केहू रोके दुख काटि लेला ई त परगट रो भी ना पावेली। कहेके त रानी बेटी कहावेली बाकी जीवन भर दुखे पावेली। जेकरा के पाल पोश बड़ करेली ओही समाज के मने ना भावेली। सबका सामने मुसुकी देखावस "अकेला"रोईयो नाहीं पावेली। पुरुष प्रधान समाज बाटे इहंवा सबकर सेवा से मनसा पुरावेली। सबकुछ चुपचाप सहि के रहेली नाहीं त कवनो अपयश पावेली। एक दिन बात के ज़हर ना सहे ई बिना सुनले कहां सुति पावेली। जेतने जेकर सेवा भाव करेलीन ओतने भाव से ऊ इनके सतावेली। हमरा त इहे समझ में आवेला कि ई त्याग के मूरत एहिसे कहावेली।

एक स्त्री कैसी होती है

एक स्त्री का स्वभाव-- ------------------------ स्त्री कैसी होती है ?? वह किसके जैसी होती है। तो वह शिव जैसे होती है सब कुछ हज़म कर जाती है। अपनी निद्रा वह पी जाती है दूसरे को नहीं जगाती है। अपना सुख चैन सब कुछ तो दूसरों पर ही वह लुटाती है। चाहे उसकी गलती हो या नहीं वह चुपचाप सब सह जाती है। जन्म से पहले और बाद में भी लिंग भेद का शिकार होती है। पुरुष प्रधान समाज में रहती है पता नहीं कैसे एडजस्ट होती है। जिसको देखो कुछ भी कहता है फिर भी उफ़ नहीं कर पाती है। लाखों का तिलक दहेज लाती है ओह!!फिर क्यूं जला दी जाती है। बेटी के मान सम्मान खूब करते हैं फिर भी अस्मत क्यूं लुट जाती है। कहते हैं कि पुरुष के बराबर है वो फिर गर्भ में ही क्यूं मारी जाती है। मां,बहन,सास,ननद और बहुत से रुप में सबकी सेवा किये जाती है। मगर कितने अफ़सोस की बात है वह हम सबसे कितना दुख पाती है। शिव जी ने एकबार विष पी लिया था पर ये तो हर रोज ज़हर पिये जाती है। सबके साथ रहकर भेद नहीं करती है पर वो अपनों में ही"अकेला"रह जाती है।                      ---------------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिय

मुझे नहीं बदलना है

जैसा वो मेरे साथ कर रहे हैं मैं भी वही वर्ताव उनके साथ मैं भी तो कर सकता हूं परन्तु मैं ऐसा क्यों करूं अपनी उत्कृष्ट सोच मैं ताक पर क्यों रख दूं उन्हें जब कभी एहसास अपनी भूल चूक का होगा उन्हें अफ़सोस भी होगा रही बात कि मैं क्या करूं मेरा यही मानना है कि मैं छोटी सोच नहीं रखता क्षुद्रता तो सीखा ही नहीं रिश्तों की अहमियत देता हूं कभी धनी गरीब नहीं देखा किसी से भेदभाव नहीं रखा जिन रिश्ते नातों में बंधा हूं उसे मुझको खोना नहीं है मगर अपने सहज भाव से बिखरे मोती जोड़ना जानता हूं बिखरना बिखेरना रुह में नहीं एक एक मनके को माला में लड़ी बनाकर पिरोना चाहता हूं मुझे उनके जैसा नहीं बनना मैं हर खाई पाटना चाहता हूं अपनों को अपनाना जानता हूं सबके साथ रहना चाहता हूं अकेला भी चलना जानता हूं......             ---------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश

एगो लईकी जब लजाले त.....

एगो लईकी जब लजाले त....... ------------------------------------- बड़ा नीक लागेलू जब अपना द़ांतवा से ओठवा दबाके तुंहवू लजाईल खूबे देखावेलू माशाअल्लाह,माशा........ का कहीं कहाते नईखे जेवन कहर बरपावेलू  हम त चन्दा के नीचवा हो जाईले मदहोश हो का कहीं ए गोरिया तहके हमार तन मन सब कुछ केतना झनझनावेलू....... तोहके का जाने बुझाला कि कुछ समझ ना पावेलू दूरवे से खड़ा होके बस आधे ओठवा हिलावेलू कुछ कहि ना पावेलू... टुकुर टुकुर ताकलू बाकि हमरा दिलवा का बाटे तूं कहां जानि पावेलू.. केतनो लोगवन में रहिले बेरी बेरी याद ही आवेलू मृगा जईसन नैना बाटे जनि देखा कनखी पर काहें बिजुरी गिरावेलू "अकेला"भी रहे चाहिंले त आपन मुस्की देखावेलू रात दिन बुझाते नईखे कवन नशा तूं करावेलू का खता हमार बा ए बाची काहे अंखियां से नींदिया चुराके चैन सुख उड़ावेलू             ---------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

कोरोना के कुप्रभाव

अईसन बाटे कोरोनवा आईल खतम भई गईल बा कमाई। सब केहू बाटे अब बेमराईल चूलही में बाड़नजा लुकाईल। रोजगार धनधा मराई गईले मंहगाई भई गईली डाईन। सब केहू चलत बाटे अईसे जैसे बा कुजाति निकलाईल। अब का खईहन गरीबवा हो मजदूरियो त गईल मराई हो जे शहरियन में फंसि गईल रहे जियत मुवत कइसहूं आईल। ठेला ठेली लगावत रहल जे उ ठेलवो अब गईल ह बिकाई । तनियोमनी टुकटुकाये लगलन त फिरो दूसरो लहर आईल बा। अब बुझाता रहे कि सब ठीक ह त ई तिसरका लहर सुनाईल बा। लोगवन के लाश भईल बिछौना नेताजी के चुनाव भरभराईल बा। केहू ना बा सुनवईया गरीबन के वोटवे के बेरी सब पुछवईया बा। बड़ा नीमन नारा दिहलन नेता जी घरवे में रहिके सुरक्षित रहबिजा। केहू" अकेला" में आके ई ना पूछे बिन मजदूरी बैठल का खाईंजा। जेकरा धन संपत्ति भरल बा घरवा उ का जानी हाल हम गरीबवन के। लाल लहकार देखे पेट नाहीं भरी हो घरवा में नईखे कुछो एको छटाक जी। ए कोरोनवा तूं मर्की परू,उफर परू काहे खलल कईले बाड़े हमनी के । अब तूंही बताव कईसे जियल जाई सब कुछ

बदलता हुआ इंसान

हम तो एक खुली किताब हैं आज भी कहानी नहीं बन सके जैसा स्वभाव था हम वैसे ही रहे दुख में भी तो दुखी नहीं रहे। जो भी मेरे साथी थे अभी वही हैं पद बदला गया पर हम वही रहे। जिस पर हम आसरा लगाये थे वह तो एक कहानी बन गये‌। उनकी फितरत पर ही शक था कहानी जैसे बदलते चले गए। कभी हम गुमान करते थे उनपर आज हम बदजुबान हो गये। जब जरूरत पड़ी मुझे बुला लिया अब नफ़रत के काबिल हो गए। मैं तो जन्मजात ही समाजवादी हूं मुझे तो कोई खरीद नहीं सकता‌। तुम भी तो मेरेज्ञ जैसे ही रहे थे अवसर मिला तो राष्ट्रवादी हो गए। चलो अच्छा है फिर"अकेला"हुए तुम्हारे लिए हम पराया हो गए। जो कभी साथ नहीं छोड़ते थे आज हमारे रास्ते भी बदल गये। खैर हमें धन दौलत से मत तौलना मुझे किताब हूं कहानी न समझना। सनद रहे!इतिहास दुहराता है मित्र कभी दूसरे का भी समय आता है। जिसे तुम तिनका समझ दूर हुए हो तिनके ने ही तो आशियां बनाया है। ईश्वर सबको अवसर दे ही देता है हमें भी यकीं है वक्त लौट आयेगा। लेकिन चंद सिक्कों पे बदल गये हो हम बदले भी तो सेवक बन जायेंगे। तुम कहानी बनकर यूं बदलते

स्वार्थी लोग

आज सबको अपनी पड़ी है भले ही बाहर मौत खड़ी है। सुख में साथ बहुतेरे होते हैं दुख में "अकेला" छोड़ देते हैं। सब चाहते हैं भगत पैदा हों मगर घर वह पड़ोसी का हो । दुनिया की कैसी यह रीति है जहां सिर्फ़ दौलत से प्रीति है। जो बात करते हैं आजाद की उनके पास गांधी की नीति है। जिसे पढना नहीं आता है वह पैसे की बदौलतपर पढ़ रहा है। जो पढ़ने में अव्वल दर्जे का है वह जाहिलों का दर्द ढो रहा है। इमानदारी का उदाहरण जो था सलाखों में बेजुबान बोल रहा है। जिसपर जिसने भरोसा किया है वही उसे बाजारों में तोल रहा है। क्या कहा जायेगा इस जमाने को सही को ग़लत वह बोल रहा है। जो हमारी ही भाषा बोल रहा था वही विलायती बोली बोल रहा है। रिश्ते नातों की भी कोई कद्र नहीं सब कुछ पैसे से उसे तौल रहा है।                  ---------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश

हम त डेराईये गईनीं

हम त डेराईये गईलीं-- ------------------------- एगो हमरे संगवईया बाड़ेन भोजपुरी में बोलत रहलन। कुछ दिन उ शहर में रहलन गांवे अंग्रेजी झारे लगलन। हम त अब डेराईये गईलीं ई कवन बोल बोले लगलन। कुछ दिन पहिले ठीक रहले ई हमरे भाषा बोलत रहलन। सब लोग अब कहे लगलन कवनो डगडर के देखावेके। आखिर इनका का भईल ज्ञबा भाषा, परिभाषा बदलि गईल‌। जेह अदिमी रवुआ, आप कहे अब यू, तुम तड़ाक कहे लागल। अब गांव के सरपंच भेटईलन उ इनकर सब बात सुन लिहले। फिर अपन फईसला सुनवलन कि बड़ बने के बेमारी लगल बा। अब ई एह जोन्ही के ना हवुवन ई अब एडवांस हो गईल बाड़न। एडवांस लोगन के बात दोसर ह ई गिरगिट जईसन रंग बदलेलन‌। अब कल छपट से भरल बाड़न सलाई रिंच नियर फिट हो जाले। जब केहू के डेरवावे के होखेला त ई लोग अंग्रेजी बोले लागेलन। अब त भोजपुरियो ना अंग्रेजी में बोलिके परभाव जमावे लगलन। गांव घर से सब ले जाये लगलन गंवुवे के शिकाईत सुनावे लगले। हम पहिले के बात याद परवनीं हमके"अकेला"ही डेरवावे लगलन। हम

पत्नी की चिंता

पत्नी की चिंता- ----------------- पिया हो !! घरवे रहिता। चाहे केतनो दुःखवा होई। बाहरा जाके का कर लेबा। दुई पइसा के फेरा में परिके। हमार जिनिगी गोबर कर देबा। ढलि जाई जब हमरो उमरिया। ओकरा कइसे फिरू ले अइबा। पिया हो अब तूं गंवुए रहा। चाहे करिहा खेती मजदूरी। चाहे रेक्सा तूं इहवें चलईहा। चाहे ठेलागाड़ी पुअरा बहरिहा। चाहे कुछू करिहा घरहीं रहिहा !! केतनो दुखवा हम सहि लेहब। पिया हो हमके संगवे रखिहा। जिला जवार के में रहिके तूहूं। कवनो काम  चाहे करि लिहा। पाकल अमवा के मान रखिहा। तोहरे खातिर हम जनमल हईं। चुटुकी भर सेनुरा बनवले रहिहा। ए बलम जी!!! हमरे सोझा रहिहा। चाहे कुछो करिहा "अकेला"न छोड़िहा।           -------- रचना स्वरचित मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

धीरज और साहस जरूरी बा

साहस औरी धीरज जरुरी बा- ---------------------------------- अंखियां से आंसू जब बहेला लोग दिल के भाषा कहेलन। कुछु एकराके सही समझेलन कुछ लोग ढकोसला कहेलन। जे केहू आपन लोगवा होखेले लिलरा पे ओके चिंता झलकेला। काहे परेशानी में बाड़न लोगवा हम त सबका दिलवे में रहिले। बांटिए लिहल जाई दुखवा अपन मनवा हमन के हलुक होईये जाई। बतिया बा सांचे हमरो मति सोचा हम त अपन भावना के परोसीले। हम तोहन लोग के दिलवे में बानी आसरा के फूलवा लेके आईल हईं। साहस,धीरज से काम लिहल जाई एगो दूसरा के दिलवे में रहल जाई। एह दुनिया में आईल बा सब केहुवे "अकेला"कुछो ना हो पावेला इहंवा। साथ में रहिके दिल से दिल मिलाके सब होई हंसत रहा खिलखिलाके ।                --------------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश

कुछवू ना बदलल

ना बदलल कुछवू----------- ----------------------------------- छोटे पर से हमहूं देखतबानी बहुत कुछ त सुनलहूंबानी। अबकी बार ही हमके देखा हमहीं कर देहब बेड़ापार‌। खलसा एक बेरी हमरा के जिता के देख लेईंजा सभे। जवन जवन नईखे भईल उ सब कुछ हम कर देईब। पानी, बिजुरी औरु सड़क हम छने भर में सोझियाईब। जवन बा ओके ठीक करब जे नईखे भईल उ कर देब। इहे देखत अब उमीर बीतल उहे बा सब कुछो ना छूटल। जे जंहवां पवलस उ उहंवे से दूनो हाथे जम के खूब लूटल। हं इ जरूर भईल बा हर जगह केहू जुटल केहू के गांव छूटल। जइसन जेकर रहन रहल अब ठीक ओसहीं बा नाहिंये छूटल। जेकर पावे ओकर चुपे लूटल कमजोर जे होखे ओके कूटल। आपन खेतवा जोतातो नईखे दोसरा के देखिके ओपर टूटल। जेकर लरिकवा हूंफे ओहपर उ दोसरा शिकाइत में जुटल। जेकर कुख्यात बा सगरो चरितर उहे बनत फिरेला सबसे पवितर। जे जेतना फेंकेवाला फेंकवईया उहबा"अकेला"फसल कटवईया‌।                 -------------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश,

सावन के महीना------

सावन के महीना------ ------------++------- सावन के महिनवा में हो बरिसे बदरा घनघोर। चलेललन किसान भईया भोरहीं खेतवा के ओर। लहर लहर लहरातबाटे खेत में धनवा पुरजोर। हरियर हरियर कचनार बा   पनिया मारेला हिलोर। गीत गावेलिन बनिहरिनिया धनवा सोहत के बेर। सन सनन बहेले पुरवईया बिंहसेला तब मनवा मोर। हरियर हरियर धान पतईया जईसे धानी चुनर ह मोर। गावेले तब किसनवा भईया घटा घेरेला जब घनघोर। घरवा में बईठल बहुरिया देखेलि पिउ के चहुंओर। पियवा के देखेली आवत त हियवा में होखेला अंजोर। ओसरवा में बईठल उ ननदी मजा करेली हमसे पुरजोर। आवतरे भईया हमरो भऊजी होई जाई तोहरो मन मोर। ओरिया के पानी बड़ेरा धईलस खेतिहर के ना बा कौनो ठौर। सुतला पर टपर टपर चुवेतबा खपरैलवा से छावल घरवा। रहि रहि डर लागेलतबा ननदो काली बदरिया बाटे घनघोर। कहवां रहिहन गइया औरू बैला कइसे पाकी भोजन एहि ठौर। काका -काकी कहेले कहनियां खींचतारे गुड़गुड़वा भरिजोर । रतिया में मेघवा बरिसतबाड़न डर लगे"अकेला"होखे अंजोर। चाहे घटा घेरे चाहे बरिसे बदरिया किसनवा चलेले खेतवा के ओर। जहंवा देखा उहंवा हरियर हरियर सबकर हियरा

शब्दों का संसार

शब्दों का संसार-- ------------------- शब्द रचे जाते हैं, गढ़े जाते हैं शब्द मढ़े जाते हैं,लिखे जाते हैं। शब्द ही पढ़े और बोले जाते हैं शब्द तौले,टटोले,खंगाले जाते हैं। अन्ततः----- शब्द बनते हैं संवरते,सुधरते हैं शब्द निखरते, हंसाते, मनाते हैं। शब्द मुस्कुराते,खिलखिलाते हैं गुदगुदाते,मुखर,प्रखर,मधुर होते। किन्तु-------- शब्द मरते नहीं शब्द थकते नहीं शब्द रूकते नहीं शब्द चुकते नहीं। फिर भी--------- शब्द चुभते हैं,बिकते, रूठते भी हैं शब्द घाव,ताव देते हैं, लड़ते भी हैं झगड़ते,बिगड़ते, बिखरते,सिहरते हैं। अतएव------ शब्दों से नहीं खेलें सोचकर ही बोलें शब्दों को मान दें और सम्मान भी दें। शब्दों पर ध्यान दें इनको पहचान दें ऊंची उड़ान दें इनको आत्मसात करें। शब्दों से उनकी बात करें, विचार करें शब्दों को सुनके,समझकर ही उत्तर दें। क्योंकि ------- शब्द अनमोल हैं जुबां से निकले बोल हैं शब्दों में धार होती है, इनमें मार होती है। महिमा अपार, शब्दों का विशाल भंडार यह सब तो होता ही है---------- यह सच्चाई है कि------- शब्दों का अपना अलग ही संसार होता है                         ----------- राम बहादुर रा

बीती हुई रात

वह बीती हुई रात --------------------- उस रात तुम चली गयी चुपचाप इस"अकेला"को अकेला छोड़ कर देकर प्यार की ढेरों स्मृतियां मैंने अतीत के गुनाहों को आने वाले गुनाहों से शून्य को ताकते देर तक जिरह किया फिर फैसला अनिर्णित छोड़ कर देश के बारे में सोच रहा जहां मैं रहता हूं आते याद खिले हुए पुष्पों के अनगिनत रंग अंततः मैंने तय कर ही लिया सुबह किसी अपरिचित पुष्प के बारे में जानकारी लूंगा पूरी तरह से तुम पुनः लौटकर आओगी यह कि मात्र अंधेरा नहीं तुम बेहद उजली और धुली हुई सी प्यार की अनंत आवाजों से सजी सपनों की रंगीन दुनिया की धरातल जैसे प्रेम में डूबी हुई औरत की तरह राम बहादुर राय ( अकेला) भरौली नरहीं बलिया उत्तर प्रदेश

पत्नी की चिंता स्वाभाविक है

पत्नी की चिंता- ----------------- पिया हो !! घरवे रहिता। चाहे केतनो दुःखवा होई। बाहरा जाके का कर लेबा। दुई पइसा के फेरा में परिके। हमार जिनिगी गोबर कर देबा। ढलि जाई जब हमरो उमरिया। ओकरा कइसे फिरू ले अइबा। पिया हो अब तूं गंवुए रहा। चाहे करिहा खेती मजदूरी। चाहे रेक्सा तूं इहवें चलईहा। चाहे ठेलागाड़ी पुअरा बहरिहा। चाहे कुछू करिहा घरहीं रहिहा !! केतनो दुखवा हम सहि लेहब। पिया हो हमके संगवे रखिहा। जिला जवार के में रहिके तूहूं। कवनो काम  चाहे करि लिहा। पाकल अमवा के मान रखिहा। तोहरे खातिर हम जनमल हईं। चुटुकी भर सेनुरा बनवले रहिहा। ए बलम जी!!! हमरे सोझा रहिहा। चाहे कुछो करिहा "अकेला"न छोड़िहा।           -------- रचना स्वरचित मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

पढ़ि के का होई.....

पढ़ि के का होई--- ------------------- ए बबुआ ! का करबा रात दिन पढ़ि के। नेता बनि जइबा बिन पढ़ले लड़ि के। रातो दिन आंख गड़ाइबा तूं अड़ि के। क्लर्क , मस्टर, बनियो जइबा पढ़ि के। अधिकरियो बनिये जइबा तूं रगरि के। बाकिर नेताजी बिना पढ़लहीं मंत्री होइहें। उनकर लइका खेलइबा तूंहू जाई घरपे। ए बबुआ का करबा तुंहउ  पढ़ि के। मारा मारी करा झगरा लगावा रहि रहि के। फिरू जमानतियो करावत रहा चढ़ि बढ़ि के। लड़बा परधानी ,प्रमुखी मजे से गांव घर से। तनिक औरी लड़ि झगड़ि लेहबा बहरी तब। मिलिए जाई टिकटवा ए बबुआ बड़ पाटी से। फिर हो जइबा सांसद,विधायक कौनो लहर में। गाड़ी,बंगला,नौकरो भी मिलेला सरकार से‌ सब कर्मचारी लोगे पीछे घुमिहन हाथ जोड़िके। घूमे फिरे के चाहे जेवने करबा तूं मुफुत रही। लाखो करोड़ों के निधियो मिलेला विकास के। आई जब बुढ़ापा त पिंशिन पईबा खईबा बैइठि के। एहिसे त कहतानी न रहा"अकेला" घूमा गांव घर में।                      ----------- आप सब लोगन से विनती बा कि ई रचना एगो व्यंग के रूप में बा एकरा राजनीति औरी कौनो केहू के प्रति दुर्भावना से ना लिखले बा।एहिसे यदि कौनो गलती भ

सफल होना भी ईर्ष्या का कारण

जब आगे कुछ बढ़ जाओगे सफलता कुछ भी पाओगे। तुम ज़माने को समझ पाओगे अपनों को ही दुश्मन पाओगे। यदि तुम ऐरे गैरे से ही रह गये  फिर फ़र्क नहीं समझ पाओगे। सही लोगों की संख्या बहुत है कुछ ही लोग जलन रखते हैं। जीवन में आगे कुछ करना है ऐसे लोगों से बचकर रहना है। ज्यादे 94% सही लोग होते हैं सिर्फ़ 6% से बचकर रहना है। ये तो कुछ पर्सेंट ही लोग होते हैं अपना महत्व खुद ही वे बढ़ाते हैं। जब कोई उनपर ध्यान नहीं देता बस, अच्छों के पीछे पड़ जाते हैं। इस दुनिया में सब अपने लगते हैं "अकेला" पाकर चक्रव्यूह रचते हैं। कौन अपना, कौन है यहां पराया जो आगे बढ़ रहा वो समझ पाया। यहां अपना पराया का मतलब है यदि सफल हो गये तो सब अपने। रिश्ते नाते सब सामर्थ्यवान के संग पैसा नहीं तो कोई नहीं आपके संग।                     ----------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश

बागी बलिया देश की शान

बागी बलिया के बारे में दो शब्द---- ------------------------------------ देश की माटी देश की आन जिला बलिया देश की शान। बलिया के सपूत होते महान मंगल पाण्डेय है बड़ा नाम। चित्तू पांडेय"42"के शाहंशाह चन्द्रशेखर बलिया की शान। नीरज शेखर सा नहीं इन्सान हजारी प्रसाद व अमरकांत। केदारनाथ सिंह जी यहीं के हैं भगवती जी जीवित हैं विद्वान। भागवत शरण, विवेकी राय और"अकेला"का जन्म स्थान। शेरे हिन्द मंगल पाण्डेय का बागी बलिया ही जन्म स्थान। बैरकपुर में तोड़ दिया आपने फिरंगियों की आन बान शान। किया आपने प्राण न्यौछावर नहीं झुका बलियावी महान। बागी बलिया है शेरों की खान हैं यहां एक से एक वीर महान। यहीं तो हैं दरदर मुनि जी और भृगु मुनि बलिया की पहचान। अन्याय सहन नहीं करते हम चाहे कितना भी हो नुकसान। हिन्द के शेर चन्द्रशेखर जी ने शान से बढ़ाया देश का मान। पहले भी बागी रहा है बलिया आज भी वही बलियावी शान। देश का तिरंगा झुकने न देंगे बागीपन अपना मिटने न देंगे। भारत देश की ये उर्वरा भूमि है बलिया को जाने सकल जहान।                  ----------- राम बहादुर राय अकेला"

जय हो मुखिया बाबा जी

शहीद स्व बरमेश्वर मुखिया जी को समर्पित एगो रचना---- अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि!! शत् शत् नमन!!! देर हो गईल बा काहें कि बहुत संगठन बनल बा हमनी के बाकिर केहू एह रचना के एप्रूव ना कईल हा तब आज हमरा फिर से लिखे के परल हां🙏🙏🙏 गलती-सही, भूल-चूक क्षमा करब जा सभे 🙏🙏🙏                      ---------- बाबा हो कहां चलि गईला हमनी के त छोड़ि दिहला। हमनी के बड़ भगिया रहल इज्जतिया बचवले रहला। नक्सलियन के काल रहला हमनी के पूरा संसार रहला। बाबा हो !बरमेश्वरनाथ रहला हमनी खातिर भगवान रहला। तूंहंई त शेर व दिलेर रहला हमनी के पूरा अंजोर रहला। जब तक जियत रहला तब किसानन के परान रहला। जे भी ज़ोर जुल्म करत रहे ओकरा खातिर काल रहला। बाबा हो जबसे छोड़ि गईला दुश्मन आजाद भई गईलन । बाबा बरमेश्वरनाथ!के कृपा!! एकबेर फिर से आई जईता । बढ़ल जाता फिरू अत्याचार मिटावेके रहिया देखा जईता। हियरा छछनेला तोहरे बिना फिर से एकबेर आई जईता। बाबा हो ब्रह्मेश्वर मुखिया जी हमनी खातिर भगवान रहला। एगो अवतार में परशुराम जी दूजा"अकेला"अवतार रहला।               ---------- राम बहादुर राय "अकेला" भ

चिराग भी चिराग हुआ

जब चिराग  अपने ही घरां में होगा तब। कोई भी कारिंदा पारस बन सकता है। चिराग रखना कोई बुरी बात तो नहीं है। मगर उसे सही स्थान पे होना चाहिए। जब चिराग से घर जलेगा किसी का तब। उसकी लौ लौटकर आयेगी अपने पास। यदि चिराग सुरक्षित रखना होगा तब तो। उसको भी किसी को जलाना नहीं होगा। जब कोई विभीषण ही लंका में होगा। तो लंकापति भी कभी भी हार सकता है। "अकेला"तेरा ही नहीं जला है आशियाना। जो जैसा करेगा उसे फल वैसा मिल जाता है। शीशे के घर का जो महल बनाकर बैठा है। वो कंकड़ तो नहीं फेंका करते हैं साहब! गर वह कुछ कहीं भी कलाबाजियां करता है। उसी का घर कलाबाजियों में खत्म हो जायेगा।                 ------------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश

चीन से सावधान!!

मेरे हिन्द देश के जवान रहो सदा चीन से सावधान शुरू से ही वह है बेईमान चोरी करे सीनाजोरी करे झूठ बोलना उसकी शान पहले भी धोखा कर चुका आज भी वही है पहचान तिब्बत को हड़पकर बैठा ताईवान पर भी नजर है बनना चाहे वह शाहंशाह अरुणाचल अपना कहता लद्दाख में चल रहा चाल अपने देश में उडगरों का किया है हाल वह बेहाल याद करो कैसे कुचला वो सन् 91 में छात्र आन्दोलन लोकतंत्र की थी बस मांग पन्द्रह देशों से सीमा लगती सबको करता वह परेशान अमेरिका की चुनौती देता मित्र राष्ट्रों को नहीं समझा मिट गये हिटलर,मुसोलिनी फिर तेरी क्या है अवकात यह है देश हमारा भारतवर्ष जहां प्रतिभा की है भरमार तुम्हारा सामान बहिष्कार हो तो हो जायेगा तेरा बंटाधार 62 के धोखे से हम जान गये तेरा चाल,चरित्र और स्वभाव अबकी दाल नहीं गलने वाली जाग रहा देश,हिन्द का जवान वक्त रहते अब रहो सावधान कितने मोर्चों पे सामना करेगा समूचा विश्व कर रहा भारत के सिर्फ़ एक इशारे का इंतजार हो सकता है तेरा काम तमाम व्यर्थ नहीं हो सेना का बलिदान किया जा रहा ऐसा ही विधान अब"अकेला"तू क्या कर सकता समूचा विश्व भी भारत के है साथ अब भी शान्ति की राह चुन लो नहीं

आज के कवि एवं उनकी कविता

आज के कवि एवं कविता एअर कंडीशन में बैठकर जंक फूड खाते खूब। बागों के झुरमुट से रहे सदा अंजान से लिखते कविता जरूर मगर कविता होती गद्य। कभी खेतों में पांव न रखा रिश्तों से विरान। वो बैठकर लंदन में कविता करते नहीं है कोई ज्ञान। ये तो पैसे वाले हैं भला क्या जाने संवेदना का नाम।  रैंप पर कैटवॉक करना देखकर पहनने सीखा वस्त्र। इज्जत आबरू क्या पता केवल पैसा इनका अस्त्र। हंसकर चलते बड़े शान से क्योंकि खुले हैं अधोवस्त्र। वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान। हमने तो यही पढ़ा था रिश्तों का रहता था बहुत मान। अब ये परदेशी कविता लिखें जैसे चले हवाई जहाज। "मैं एक दिन जा रहा था, रास्ते में एक आदमी मिला। वह बीमार था रो भी रहा था। पता किया उसकी पत्नी नहीं थी। हमने उसे वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया। मैं भी NRI हूं मैं भी वहीं तो रहता हूं। एक और उदाहरण भी मेरे पास- वह उसे प्रेम करता था वो उससे प्रेम करती थी मैं उसे जानता ही था वो भी मुझे जानती थी वे अलग रहते थे मैं भी अलग रहती थी कभी कभी मिलते थे वो भी रेस्तरां में और भी ऐसा ही........... राम बहादुर राय"अकेला" भरौली नरही बलिया उत्तर प्

बचपन ही ठीक था

जब मैं बहुत छोटा सा था तब बड़ा होने की बड़ी चाहत थी। कुछ अपने पास था या नहीं लेकिन अपनी बादशाहत थी। दिन पर दिन अब बीतते गए आखिरकार हम बड़े हो गये‌ बड़े हुए तो एक जाति में फंसे एक खुश होता तो दूसरा हंसे। कुछ भी कर लेने की इच्छा थी अब कुछ कर लेना चाहता हूं। मैं शोध के विद्यार्थी जैसा ही हूं जाति- पांति, धर्म से गाइड मिले‌ दिन को अगर रात कहे तो कहो वर्ना अधूरी Ph.D लेके क्या करें। बात बात पर किसी से बात हो तो भला" अकेला" का पक्ष कौन धरे‌‌। अबला नारी की ब्यथा तो सब कहे लेकिन हम तो अपनों में ही उलझे। अब तो मन यही करता है बारम्बार फिर से हम छोटा बनकर ही रह लें। बड़ा होकर छोटा भी नहीं बन पाया अब तो सबकी आंखों में चुभने लगे‌। दूसरा आदमी हमें मालदार ही समझे हम तो "अकेला" ही यहां नंगे हैं खड़े। दूसरा तो दूसरा है उससे क्या उम्मीद पर अपने भी हैं दूसरी ओर ही खड़े। अब यही मन में अल्फाज़ रह गये हैं काश हम न आते, तो बड़े न होते। बचपन में जाति,अमीर गरीब,बड़े-छोटे इन सारे कटु स्वर-व्यंजनों से बचे रहते। 🙏🙏🙏             -----------

बड़ी सोच

बड़ी सोच ------------ एक बार की बात है जंगल में भीषण आग लग गई थी सभी जीव बड़े संकट में पड़े हुए थे। सभी जंगल में रहने वाले जीवधारियों की सभा में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि हम सभी मिलकर आग को शीघ्र बुझाने का प्रयास करें। कुछ ऐसे भी जीव थे जो तमाशा देख रहे थे तभी वे देखे कि एक छोटी सी चिड़िया अपना पंख फैलाए उपर जाती कभी नीचे आती तो उससे पूछा गया कि क्या कर रही तेरे तो उस नन्हीं चिड़िया ने कहा कि मैं भी आग बुझाने का प्रयास कर रही हूं। सभी ने उसका उपहास करते हुए कहा कि तेरे बस का नहीं है छोड़ जाने दे कुछ होने वाला नहीं है तेरे से। उस चिड़िया ने कहा कि मैं भी जानती हूं कि मेरेतेरे बस का नहीं लेकिन मेरे से जो भी सम्भव है मैं प्रयास कर रही हूं और जब आग किसी भी तरह से बुझ जायेगी तो जंगल का इतिहास लिखा जाएगा तो आग बुझाने वालों में मेरा भी लिखा जाएगा भले ही सबसे नीचे ही क्यों न हो। अर्थात प्रयास करना चाहिए इसमें छोटे बड़े का भेद भाव नहीं होना चाहिए तथा अपनी क्षमता के अनुसार पूरे मनोयोग से करना चाहिए न कि बैठकर तमाशा देखते रहें और दूसरे का उपहास करें। राम बहादुर राय"अकेला" एम.ए.(हिन

आज का जमाना

आज का जमाना--- --------------------- क्या गज़ब का यह भी दौर है होता कोई और दिखता और है। जब एक सामान्य परिवार में कोई भी संबंध विच्छेद होता है। पत्नी पति में तलाक होता तब दोनों ही परिवार नष्ट हो जाते हैं। हर आदमी चाहता है घर का  किसी को पता न चले ये बात। वही बड़े घरों की बातें कैसी हैं तलाक से पूर्व ही वायरल होता है। पति- पत्नी अब साथ न रहेंगे वह दूसरे से वो दूसरे साथ रहेंगे। लेकिन विडंबना तो देखिए भाई उन्हें बड़े इज्जत से देखा जाता है। खाते- पीते घरों के बच्चों शादियां बिल्कुल प्रथम शादी ही होती है। यदि गलती से भी तलाक शुदा की बात भी करे तो छुरी चल जाती है। वही जो अमीरजादे हैं तलाश में तलाक शुदा की रहते धन्नासेठों में। उन्हें कोई दिक्कत कभी न होती दूसरी वीवी के लिए कुछ भी करती। उनमें किसी जाति धर्म की बात नहीं उनका मजहब सिर्फ़ पैसा ही होता है। और गरीबों के नाज नखरे देखे होंगे सिर्फ़ अपने में परंपरागत ही रहते। दुनिया कहां से कहां चली गई है मगर ये लोग एक लीक पर ही चलते रहे हैं। हम जकड़

जन्म से पहले मृत्यु

जन्म से पूर्व मृत्यु --------------------- दहल जाता है हृदय मेरा जब भी सोचता हूं वह खौफनाक मंजर पाती है अंजाम पर जिसके किसी के जन्म से पूर्व मृत्यु जिंदगी की राहों में गुमनाम भटकते हुए एक अंश को करती है धारण अपने अन्दर स्वयं में फिर उसकी हत्या क्यों ? जो है निर्दोष, निरपराध हर चीज से वह अज्ञात फिर क्यों मिलती है उसे मृत्यु शेरनी शावक को,गाय बछड़े को जूझकर विषम परिस्थितियों में करते अपने बच्चों की रक्षा तो क्या हम सभ्य मानव की मर चुकी सारी संवेदनायें इतने भी वेस्टर्न कल्चर के अंधभक्त न बनो हे मानव! तुम हो कंस और दानव करते हो अजन्मे शिशु की हत्या दहल जाता है हृदय मेरा सोचता हूं वो खौफनाक मंजर जब मृत को जीवित नहीं कर सकते तो गर्भस्थ शिशु को तुम्हें किसने दिया है अधिकार कहें "अकेला" आखिर क्यों मिलता है किसी निरपराध को जन्म से पूर्व ही मृत्यु ??????? राम बहादुर राय "अकेला" भरौली नरहीं बलिया उत्तर

सच बोलुंगा तो

कहते हैं लोग  कि सच बोलो लेकिन जब सच बोलो सच में दंगा हो जाता है जहां देखो पंगा हो जाता है फिर झूठ बोल के देखो वो चंगा हो जाता है अज्ञानी को  ज्ञानी कह दो खुश‌ हो जाता है काले का काला कह दो हंगामा हो जाता है फेसबुक और व्हाट्स एप पर कैसी भी कविता हो कैसा भी चेहरा हो बहुत सुन्दर लिख दो वैसा पोस्ट अब तो बार बार आता है यदि हकीकत लिख दो तो अन्फ्रेंड व ब्लाक हो जाता है वो कोई काम करे या नहीं इन बातों का तो बहुत ख्याल रखता है सच है  एक अकेला सच कह दो सच में कहीं बवाल तो कहीं दंगा हो जाता है राम बहादुर राय "अकेला" भरौली, नरहीं ,बलिया ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड:२७७५०१

समझ जरूरी है

हम तो अदब से सिर झुकाए हुए थे। वो समझते थे कि हम डर खाये हुए हैं। हमारी फितरत है कि हम बनते नहीं हैं। मेरे पास क्या कुछ है हम कहते भी नहीं हैं। क्या लेकर आये हो क्या? कुछ ले जाओगे। जिस बात पर इतराते तुम सबके पास पाओगे। ज़रा जमीं पे आके देखो तुम अवकात भूल जाओगे। दरिया भी तो नहीं हो तुम क्या समंदर समझ पाओगे। इन्सान को इन्सान समझो वर्ना"अकेला" ही रह जाओगे।             ------------ राम बहादुर राय "अकेला" भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश

मेरी इल्तज़ा

हमें क्या दिक्कत है  कितने भी दोस्त बनाओ। बस एक इल्तज़ा है उन्हें मेरी तरह न सताओ। हमें क्या दिक्कत है तुम मुझे कितना तड़पाओ। सिर्फ यही इल्तज़ा है उन्हें मुझसा नहीं तड़पाओ। हमें क्या दिक्कत है तुम मुझ पर इल्ज़ाम लगाओ। सिर्फ यही इल्तज़ा है कि उन्हें बलि का बकरा न बनाओ। हमें क्या दिक्कत है कि तुम मेरे काम आओ न आओ। सिर्फ एक ही इल्तज़ा है उन्हें भी तो निकम्मा न बनाओ। हमें कोई दिक्कत नहीं क्या सोचती,कहती यह दुनिया। सिर्फ अब तुमसे इल्तज़ा है दिल तोड़ मुझे"अकेला"न बनाओ हमें कोई दिक्कत नहीं है तुम रिश्ता निभाओ या न निभाओ। सिर्फ यही इल्तज़ा है तुझसे रिश्तों को ज़हर व कलंक से बचाओ।                    ----------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश
पढ़ि के का होई--- ------------------- ए बबुआ का करबा रात दिन पढ़ि के। नेता बनि जइबा बिन पढ़ले लड़ि के। रातो दिन आंख गड़ाइबा तूं अड़ि के। क्लर्क ,मस्टर, बनियो जइबा पढ़ि के। अधिकरियो बनिये जइबा तूं रगरि के। बाकिर नेताजी बिना पढ़लहीं मंत्री होइहें। उनकर लइका खेलइबा तूंहू जाई घरपे। ए बबुआ का करबा तुंहउ  पढ़ि के। मारा मारी करा झगरा लगावा रहि रहि के। फिरू जमानतियो करावत रहा चढ़ि बढ़ि के। लड़बा परधानी,प्रमुखी मजे से गांव घर से। तनिक औरी लड़ि झगड़ि लेहबा बहरी तब। मिलिए जाई टिकटवा ए बबुआ बड़ पाटी से। फिर हो जइबा सांसद,विधायक कौनो लहर में। गाड़ी,बंगला,नौकरो भी मिलेला सरकार से‌ सब कर्मचारी लोगे पीछे घुमिहन हाथ जोड़िके। घूमे फिरे के चाहे जेवने करबा तूं मुफुत रही। लाखो करोड़ों के निधियो मिलेला विकास के। आई जब बुढ़ापा त पिंशिन पईबा खईबा बैइठि के। एहिसे त कहतानी न रहा"अकेला" घूमा गांव घर में।                      ----------- राम बहादुर राय "अकेला" भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

बाबू लहरी

बाबू लहरी तू शहरी। केहू से ना तोहरा प्रेम। खाली बा तोहरो फरेब।         ---- राम बहादुर राय अकेला