बड़ी सोच

बड़ी सोच
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एक बार की बात है जंगल में भीषण आग लग गई थी सभी जीव बड़े संकट में पड़े हुए थे। सभी जंगल में रहने वाले जीवधारियों की सभा में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि हम सभी मिलकर आग को शीघ्र बुझाने का प्रयास करें।
कुछ ऐसे भी जीव थे जो तमाशा देख रहे थे तभी वे देखे कि एक छोटी सी चिड़िया अपना पंख फैलाए उपर जाती कभी नीचे आती तो उससे पूछा गया कि क्या कर रही तेरे तो उस नन्हीं चिड़िया ने कहा कि मैं भी आग बुझाने का प्रयास कर रही हूं। सभी ने उसका उपहास करते हुए कहा कि तेरे बस का नहीं है छोड़ जाने दे कुछ होने वाला नहीं है तेरे से।
उस चिड़िया ने कहा कि मैं भी जानती हूं कि मेरेतेरे बस का नहीं लेकिन मेरे से जो भी सम्भव है मैं प्रयास कर रही हूं और जब आग किसी भी तरह से बुझ जायेगी तो जंगल का इतिहास लिखा जाएगा तो आग बुझाने वालों में मेरा भी लिखा जाएगा भले ही सबसे नीचे ही क्यों न हो।

अर्थात प्रयास करना चाहिए इसमें छोटे बड़े का भेद भाव नहीं होना चाहिए तथा अपनी क्षमता के अनुसार पूरे मनोयोग से करना चाहिए न कि बैठकर तमाशा देखते रहें और दूसरे का उपहास करें।

राम बहादुर राय"अकेला"
एम.ए.(हिन्दी, इतिहास ,मानवाधिकार, पत्रकारिता)
बी.एड.
मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार (स्वतंत्र)

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