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अब तो जागो पार्थ !!

हे पार्थ!! अब भी तो जाग जाओ। प्रश्न है अब अस्तित्व बचाने का। पुरानी पेंशन फिर  से   हमें  पाने  का। त्याग दो आपसी  ईर्ष्या और  द्वेश। नहीं तो अब नौकरी पर भी क्लेश। गांधी जी को पढ़कर कुछ तो सीख लो। एक मुठ्ठी नमक से नींद सबकी उड़ाई। अंग्रेजों को घर  की  राह   दिखला  दी। अब तो यहां "अकेला"गांधी नहीं खड़ा है। उठो!जागो!! स्वयं की शक्ति को पहचानो। हे पार्थ!उठो!! कोई नहीं जग में तेरा होगा। अगर बुढ़ापे में तेरी लाठी पेंशन नहीं होगी। अब स्वयं ही कृष्ण और अर्जुन बनना होगा। जो सो रहे हैं उन साथियों को जगना होगा। अकेला नहीं हो चलऽ कारवां तेरे साथ होगा। अब तो उन्हें पुरानी  पेंशन देना ही होगा। अब न्याय होगा हक़ हमेंअब छीनना ही होगा। ---------रामबहादुर राय------ रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित  ् ‌

मिटना नहीं है

मिटना नहीं है भेदभाव  जो   है  मिटा   दो। सब मानव ही हैं इस  धरती   पर  एकसमान। फिर क्यूं कोई लेता यहां  पुरानी  पेंशन  व्यवस्था। और वहीं कोई है बिन  पुरानी  पेंशन  बदहाल। क्या ऐसा है विधान नहीं  ऐसा  नहीं  है संविधान । सबको बराबर ही संविधान  ने दिया  अधिकार। अब जाति-धर्म से उपर  उठकर डट  जाओ सब। नहीं तो सोच लो जो कुछ है वह भी नहीं रहेगा। आज का भारत है अब और भेदभाव नहीं सहेगा। एकसाथ आना होगा जीने के लिए हमें लड़ना होगा‌। अकेला कुछ नहीं होगा एकसाथ ही समर उतरना होगा। अब हमें फिर एकबार अपना अधिकार छीनना ही होगा।        ---------रामबहादुर राय------ रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित @ सर्वाधिकार सुरक्षित