अब तो जागो पार्थ !!
हे पार्थ!! अब भी तो जाग जाओ। प्रश्न है अब अस्तित्व बचाने का। पुरानी पेंशन फिर से हमें पाने का। त्याग दो आपसी ईर्ष्या और द्वेश। नहीं तो अब नौकरी पर भी क्लेश। गांधी जी को पढ़कर कुछ तो सीख लो। एक मुठ्ठी नमक से नींद सबकी उड़ाई। अंग्रेजों को घर की राह दिखला दी। अब तो यहां "अकेला"गांधी नहीं खड़ा है। उठो!जागो!! स्वयं की शक्ति को पहचानो। हे पार्थ!उठो!! कोई नहीं जग में तेरा होगा। अगर बुढ़ापे में तेरी लाठी पेंशन नहीं होगी। अब स्वयं ही कृष्ण और अर्जुन बनना होगा। जो सो रहे हैं उन साथियों को जगना होगा। अकेला नहीं हो चलऽ कारवां तेरे साथ होगा। अब तो उन्हें पुरानी पेंशन देना ही होगा। अब न्याय होगा हक़ हमेंअब छीनना ही होगा। ---------रामबहादुर राय------ रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित ्