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Showing posts from August, 2023

कि निशां अभी वहीं पड़े हैं

....कि निशां अभी वहीं पड़े हैं:- -------------------------------------- यादों के कारवां से मैं जा रहा था यादों के कुछ निशान वहीं पड़े थे। डूबकर अतीत की गहराइयों में वे आप बीती दास्तान बयां कर रहे थे। पूछ लिया मैंने यहां कैसे हैं ये निशां बताया उसने लोग आते अनगिनत थे। रौंदते हुए फिर भी बचे हैं ये निशान शरीर पर मेरे हजारों निशान पड़े थे। क़ातिल, लुटेरे , कपटी करते रहे सैर दर्द बहुत होता था पर सहते रहे थे। मरहम भी लगा जाते तुम्हारे ही पैर पैरों की गर्माहट भी मुझे साल रहे थे। खुश था चलो कोई अपना साथ था तेरा अतीत क्या वर्तमान भी साफ थे। इसीलिए अब तेरी किस्मत साथ है तेरे जन्म का समय , स्थान ग़लत थे। तभी तेरी परेशानियों का जन्म हुआ किस्मत द्वारा हम अवश्य छले गये थे। तभी सभी सपने तेरे  चकनाचूर हुए आखिर परिश्रम तुमने भी तो किये थे।                      ---------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

तोहार पीर केहू नाहीं सुनी रे किसनवा

तोहार पीर केहू नाहीं सुने रे किसनवा ----------------------------------------------- अपने खेत जोति बोई के अउरी काटेला सबसे अभागा नियन जियले रे किसनवा। करजवो बढेला दिन दूना आ रात चौगुना तबो त नइखे कवनो अलम रे किसनवा। काम करत कुरता धोती भइल मटमइल महाजनो भइ गइले बेइमान रे किसनवा। चूल्ही के लवना घटला ठीक भदवरिया में कबो-कबो भूखे र हेला परान रे किसनवा। छटपटाके बेटा-बेटी के डहकेला करेजवा भादो से सुग्गा अस भूखे रहेला किसनवा। हाथे-माथे मेहरी रोवसु बाढ़ सूखा मरलस कपारे हाथ धइके खूबे सोचेलन किसनवा। आधा टांग में गमछा लपेट काटेले दिनवा मोट-मेंही आधा पेट खाके जिये किसनवा। बेटा-बेटी पेवन साटि के पहिरसु कपड़वा बिनु जूता चप्पल ना पहिरसु रे किसनवा। आवते चुनावुवा सब आछो आछो करेलन नेता बोलावस वोट पंचायत रे किसनवा। मंच पर बन्हाला अन्न देवता के पगरिया बीतते चुनाव दुरदुरावल जाले किसनवा। जे कबो खेत ,गांव, किसान देखले नइखे उहे ए.सी. में लिखे  इतिहास  रे किसनवा। असली  किसान के बेटा  लिखेला  हालत  ओ बेटवा  के  सब  बिलगावे रे किसनवा। असल में कइसे जिनिगी काटेले  किसान  करजा में डूबल र

एहघरी आ पहिले के खेती किसानी

एहघरी आ पहिले के खेती-किसानी -------------------------------------------- अब टैक्टर से खेत जोताता सीडरिल से खेत बोवाता। हर बैल अब कमे लउकता टाड़ियो कहीं कहीं नधाता। तीसी-बरे कहंवा बोवाता यूरिया-डाई खेत में डालाता। जनसंख्या ढ़ेर हो गईल बा एहिसे डंकल बिया बोवाता। ढ़ेर अन्न उपज करे खातिर खेतन में खूबे ज़हर फेंकाता। कीटनाशक डालला से खेत के उर्वरा उसर भइल जाता। देशी गाय सब राखत रहल अब जर्सी गाय राखल जाता। खेती-किसानी में मित्र जीव सब बिलुप्त होखल जाता । अब नया पीढ़ी के लोग के खेती-बारी से दूरे भागता। पहिले कमे मिलावटी रहल शुद्ध घीवो केकरा भेंटाता। देशी आम के अमावट बने अब लंगड़ा दशहरी चलता। आदमी भी डंकले भइल नीमन-बाउर कहां बुझाता। गिद्ध,मैना आ गौरैया,चोंचा चिल्होर अब केने लउकता। रोपनी-सोहनी होखत रहे एकरे बदले दवाई फेंकाता। बांस-बंसहट,मचिया सब अब बहुत कमे लउकता। खेत-खरिहान कहां बाटे बेचि-बेचि फ्लैट खरीदाता। ओखर-मूसर से चलत रहे अब त मिक्सर में पिसाता। जांत-सील-लोढ़ा,ढ़ेंकुली छपटी के मशीन नापाता। लेकिन ढ़ेर लोग रोगी बा डॉ कूटहीं पीसे के कहता। झोरी में भूजा खात रहलें अब खदोनी से सब खाता। पानी सब

पापा ही लाये थे!!!

पापा ही लाये थे !!! ---------------------- वर्षों पहले मैं बाहर नौकरी करता था नौकरी छोड़ मैं पढ़ाना शुरू कर दिया एक बिटिया को वर्षों से पढ़ा रहा था और फिर धीरे धीरे जान गया उसको आकर चुपचाप बैठी ,कभी बालों में उंगलियां फेरती ,कभी यूं ही शर्माती अकेली होती तो पांव स्वयं सहलाती पूछा तो बोली कि"जूतियां काटती हैं मैने कहा उससे बदल क्यों नहीं लेती बड़े प्यार से बोली"पापा इसे लाये थे" पुनःआठ वर्ष बाद मिल गयी मुझसे वैसी ही-गोरी,तीखे नयन, दुबली सी लेकिन इस बार उसके साथ कोई था उसने मिलवाया अजनबी आदमी से बताई किराने की दूकान है शहर में मेरे मन में बहुत से सवाल उठने लगे यह शख्स बिटिया के योग्य तो नहीं है मगर उसने मेरे मन को पढ़ ही लिया आके मुझसे बोली-"पापा ही लाये थे" पापा का लाया सब कुछ शिरोधार्य है ----------------------- राम बहादुर राय भरौली ,बलिया, उत्तर प्रदेश

भोजपुरी के बने लगलन विधाता

भोजपुरी के बने लगलन विधाता ------------------------------------------ जे भोजपुरी से आगे बढि जाता हो भोजपुरिये के विधाता बनि जाता! भोजपुरिये से जियता आ खाता हो बंगला गाड़ी के मालिक बन जाता! सोना के सिकरियो रोजे गढ़ाता हो भोजपुरी उनके से जानल जाता! नव गायकन के साफ करे पता हो उहे भोजपुरी के धरोहर कहाता! फूहर गाना से वायरल हो जाता हो यू टयूब पर साक्षात्कार दियाता! कवि,गीतकार से बड़ समझता हो उहो संस्कार के बात बघारता! पइसा खूबे भोजपुरी से कमाता हो कहे भोजपुरी के उहे बढ़ावता! भोजपुरी के मान्यता ना दियता हो भोजपुरी के ही भंजावल जाता! धरोहर भोजपुरी मेटावल जाता हो भोजपुरी बदनाम कइल जाता! जे केहू नीक लिखत गावत बाटे हो ओकरे के इहां दबावल जाता! अइसन लोग के देखेलेन विधाता हो भोजपुरी से कइसन तोहरे नाता! भोजपुरी से इनके जानल जाता हो बनताड़ें भोजपुरिये के करमदाता! भाषा भोजपुरी सबकर महतारी हो महतरियो के मालिक बनल जाता! -------------------- रचना स्वरचित अउर मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

अब रणभेरी बजबे करी

अब रणभेरी बजबे करी!!! --------------------------------- हे भोजपुरी भाषा के श्रीमन! भोजपुरी क्षेत्र के भाषा भाषी। अब रावुरो भाषा भोजपुरी हऽ पीड़ा में रहत बाड़ी उ उदासी। भोजपुरिया जनप्रतिनिधि लोग तोहरे क्षेत्रन के सब बाटे वासी। भोजपुरी के मान्यता के बात सदन में काहें ना होई काशी। लाखन भैया लोग लागल बा तबो भोजपुरी बा उलटबांसी। याद करऽ मंगल, चित्तू पांडेय खांटी भोजपुरी रहलन भाषी। गोरन के सूरज अस्त ना होखे धो दिहली एकही रानी झांसी। हम भोजपुरियन के  समझऽ  ना डरी जेल होई  चाहे फांसी।  सन्  2024  बाटे सीमा  रेखा  हम कहतानी भोजपुरी वासी।  चांद पर जब पहुंच गइनीं सऽ ओहूमें बाड़न भोजपुरी भाषी।  जब जम्मू  से 370 हट गइल  भोजपुरी में का झांसा-झांसी।              --------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

चालाकियां सब समझते हैं

चालाकियां सब समझते हैं !!! ------------------------------------ चालाकियां हम तो नहीं करते हैं मगर सबलोग समझता बखूबी है ।। लोग यही समझते हैं कि दूसरे आपकी बात समझ नहीं रहा है।। सच में सच तो यही होता है कि जो ये समझे. वह ही.नासमझ है।। जो नहीं बोलते हैं शालीन होते हैं उचक्का समझते कि वो मूर्ख है।। दरअसल चालाक क्या बोलेगा वह तो अपनी विधा में संपूर्ण है।। उसके पास तो  गहरा अध्ययन है नहीं छिछली नदी जैसा उफान है।। अगर उसके  जैसा ही  मिल जाता  तो  वह खुश होता बातें करता है।। समंदर कभी  कहां कुछ  कहता है  अच्छे-बुरे सबको ढ़क के बैठा है।। लेकिन थोड़े  से  जल में ही उफ़ान थोड़े समय में हो जाता कंगाल है।। किसी से  कुछ मांगकर न लौटाना बहाने बनाकर साइड हो जाना है।। ऐसा आज चालाकी का है ज़माना  काम नहीं बटरिंग से जीत जाना है।। जो  कर्तव्य-परायण  होता  है उसे सीधा कहकर वजन घटा देता है।। क्या  यही है चालाकी का  पैमाना नहीं प्रभु के पास मुख्य पैमाना है।। गफलतों  में  आकर खुश  न होना ईश्वर भी कसौटी  पर परखता है।। सबके  कर्मों  का  लेखा-जोखा तो चित्रगुप्त के पास संचित होता है।। कोई अगर 

सच भी झूठ के साथ है

सच भी झूठ के साथ है!!! --------------------------------- जब राजा कह रहा है अभी जाड़े की रात है!!        प्रजा भी  कहे सही बात है                  ये नहीं  कोई  इत्तफाक है!!                   आज  रात  की  ही  बात है                 जहां देखो ऐसी ही बात है!!                 नहीं मैं  ही  हूं  हामी भरता                पूरी-पूरी  खड़ी  जमात  है!!                 सच  की  क्या अवकात है                 सच  भी  झूठ  के साथ है!!                 ---------- @राम बहादुर राय भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

पूछता है अवकात क्या तेरी

पूछता है अवकात क्या तेरी --------------------------------- वह हर बात पर बोलता है बता तेरी है क्या अवकात। जब भी कुछ मैं बोलता हूं तू क्या है तेरी क्या है बात। मैंने उससे अन्त में बोला मैं भी तो एक इन्सान ही हूं। परन्तु    तुम   कौन   हो  भाई क्यों   कुरेदते  रहते  जज्बात।  इन्सान  तो   नहीं  हो   सकते  ये  अवकात  तूने  कब बनाई। हम  समझते  थे  तुमको भाई समझ  नहीं  आती  मेरी बात।  जिसकी  होती  नहीं अवकात वही करता  है ऐसी खुराफात। देखा  नहीं है  अभी  तक रात फिर क्या जाने  दिन की बात। करता रहता घात व प्रतिघात मगर नहीं बनती उसकी बात। इसीलिए करता है  ऐसी बात तू कौन तेरी क्या है अवकात। करता रहता हैअनर्गल प्रलाप आदमी से पूछो दिल की बात। जाके श्मशानों देख लोगे तब भूल जाओगे अपनी अवकात।              ---------------- राम बहादुर राय  भरौली नरहीं बलिया उत्तर प्रदेश

कब तक रोक सकोगे

कब तक रोक सकोगे ?? ------------------------------ बैठ कुंडली मार शान्त मन तप्त को अभिशप्त करता नहीं कुलीन लगता मलिन देखता कातर दृष्टि कुलीन कुदृष्टि,कुपित रखे जलन राह कुराह से करे भ्रमित धवल धूसरित श्वेत बसन प्राक्तन स्याह अंत:करण स्वयंप्रभा कहां देखे नयन ऐसे भरे पड़े यहां विशिष्ट मृग धरा रूप कृत्रिम तन करता प्रयास हरण वह्रि गभस्ति कहां रोका गगन कहां रोके उदधि प्रवर्षण कब तक रोकोगे सरासन वृहन्नला उठा ली गांडीव!! -------------- रचना स्वरचित और मौलिक @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

इतिहास यूं ही नहीं बनता

इतिहास यूं ही नहीं बनता --------------------------------- इतिहास बनाने के लिए इतिहास में जाना पड़ता है पीला मतलब सोना नहीं है सोना को तपना पड़ता है हवा के विरुद्ध चल सके हिम्मत जुटाना पड़ता है अगर अर्जुन बनना है तो अपनों से लड़ना पड़ता है अगर नाम कुछ करना है कांटों से जूझना पड़ता है यूं ही भगत सिंह नहीं होते फांसी पर चढ़ना पड़ता है दीवारों में सुराख नहीं होती हथौड़ा से मारना पड़ता है कब तक सूरज ढंका रहेगा सुबह अवश्य ही उगता है जो हाथ बढ़ते मर्यादा पर तो उसे उखाड़ना पड़ता है दिल में अगर इमान है तो चिर बचाने कृष्ण को आना....... तेरी विजय होकर ही रहेगी कृष्ण के साथ होना पड़ता है .... . .......... रचना स्वरचित और मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित।। @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

जो झुककर खड़ा वही बड़ा

जो झुकता है वही बड़ा है --------------------------------- जो भी झुककर खड़ा है उसी का कद भी बढ़ा है। चाहे कुछ भी खेलना हो लक्ष्य पर ही ध्यान रखना है। जो भी पहले पीछे हटा है वही जीत का दांव चला है। जो सीधे तन कर खड़ा है वह पहले ही हार गया है। चढ़ने के लिए  झुकना है तभी ऊंचाई पर पहुंचता है। आगे  बढ़ने  हेतु  रूकना है पीछे मुड़के नहीं  देखना है। जो  झुकते नहीं  वह  कभी पथ पर आगे नहीं बढ़ता है। जब  कभी तूफ़ान आता है समन्दर शान्त  हो जाता है। मिलकर ही  साथ चलें हम इसके लिए हमें  झुकना है। वास्तव में  बड़ा तो  वही है जितना  अधिक  सहता है। यदि उभय पक्ष में  है भरम चुप होके वहम तोड़ देना है।             -------------   राम बहादुर राय   भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

कवियों की मर्यादा

कवियों की मर्यादा- ----------------------- कवियों की भी एक मर्यादा है देशभक्ति का ही इरादा है। गीत , ग़ज़लों , नज़्मों से तो है पर दिलों से भी नाता है। लेकिन जुबां खोलने से पहले राष्ट्र ही प्रथम मर्यादा है। याद रहे ! दफ़न होगा यही पर या कहीं और ठिकाना है??? जाति-धर्म अलग-अलग होगा पर राष्ट्र हित ही प्यारा है नाम और शोहरत पाने के लिए राष्ट्र धर्म ध्यान रखना है इस देश ने इतना सम्मान दिया कवि का भी कर्तव्य है चन्द ओछी बातों को लिखकर सिर्फ़ टीआरपी बढाना है वह कवि लेखक का क्या मान? देश का नहीं करे सम्मान सारे गीत-ग़ज़ल बेकार समझो जिसमें राष्ट्र सम्मान नही है देश की रक्षा इन दो के हाथ है राष्ट्र हित में ही चलाना है नाम ,शोहरत पाने के चक्कर में देशहित में ही लिखना -------------- @राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

आजकल की सच्चाई

आजकल की सच्चाई ---------------------------- नहीं खुशी है न तो रुसवाई है मेरे जीवन की यही सच्चाई है आजकल कैसी ऋतु आई है सावन में जेठ की धूप आई है बताते विकास की तुरपाई है रिश्ते-नातों में बढती खाई है रेत की आशियां बन पाई है अब समझो कितनी स्थाई है कागज की कश्ती बनवाई है किसने इससे किनारा पाई है आजकल की जो सच्चाई है समझने में बहुत कठिनाई है  ------------ @ राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

जीवन तो समर्पण है

जीवन तो समर्पण है -------------------------- यह जीवन क्या है ? समाज से कट जाना! अकेला होकर सिर्फ एक नौकरी पा जाना! मां बाप की कमाई पढ़ाई में  खपा जाना! फिर  स्टेट्स   दिखाना अपने  ज़मीर भुलाना! कुलीन   बनकर  स्वयं मां-बाप  से भी कटना! पैसे वाले  लोगों से ही अपना  संबंध बनाना! अपना घर  पराया लगे  ससुराल  में रह  जाना! जी नहीं  ! ऐसा नहीं है जीवन  तो  समर्पण  है कोई एक कदम चलता हम कदम साथ चलना कुछ हम बन  जायें तो पहले से  विनम्र  होना! भाई-बहन, मां सबका अच्छे से  ध्यान रखना! साथ जो रहा  है अपने उनका  भी  साथ देना! रहें सबके साथ मिलके  सद्भावना बनाये रखना! अपने  को  समझना है  अहंकार से  है  बचना! मित्रों  को  मित्र  समझें सादगी से  पेश है आना जीवन को प्रेम से जियें  पैसे से कभी न तौलना! सबका मालिक ईश्वर है तो क्यों हमें है इतराना! जीवन को जीवन ही रहे अहंकार नहीं है करना!                ------------ ------राम बहादुर राय------- भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

धियान तूहूं दिहल करऽ

धियान तूहूं दिहल करऽ! ------------------------------ मां भारती के ललनवा हो खतरा में परल बा वतनवा धियान तूहूं दिहल करऽ! सीमा पर लड़ें जवनवा हो घरवो में बाड़न दुशुमनवा धियान तूहूं दिहल करऽ! पइसे प लोगवा बेचाता हो मेटावेला धरोहर निसनवा धियान तूहूं दिहल करऽ! मां भारती के ललनवा हो खतरा में परल बा वतनवा धियान तूहूं दिहल करऽ! धरम से लड़ावल जाता हो बिगड़ता देश के विधानवा धियान तूहूं दिहल करऽ! अपने में भेदभाव होता हो बचावे के बा संविधानवा धियान तूहूं दिहल करऽ! चीन-पाक मिलल बाड़ें हो धोखा से हतेला जानवा धियान तूहूं दिहल करऽ! केतना भइले कुरबान हो देश खातिर दिहले जानवा धियान तूहूं दिहल करऽ! भइले अनाथ ललनवा हो चढ़ावा सरधा के सुमनवा धियान तूहूं दिहल करऽ! मां भारती के ललनवा हो खतरे में परल बा वतनवा धियान तूहूं दिहल करऽ! हिमालय बाड़ें पहरुआ हो पंवुआ पखारेलन सगरवा धियान तूहूं दिहल करऽ! रक्षा में बाड़न जवनवा हो उहे बाड़े असली ललनवा उनके इज्जत कइल करऽ! मां भारती के ललनवा हो खतरे में परल बा वतनवा धियान तूहूं दिहल कराऽ! भारत पहिले वाला नइखे हो बा आधुनिक अस्त्र शस्त्रवा अब नाहीं तूहूं छेड़ल करऽ! मां भारती क

निर्गुण नाहीं सगुण चाहीं

हमरा के निर्गुण नाहीं सगुण चाहीं ------------------------------------------ जबले पियवू गइलन परदेशवा बुझाते नइखे हमरा के का चाहीं। विरह में मतिया हेराइ गइल बा केतना रोईं, रोवहूं बदे लोर चाहीं। हित नात सब आइके समझावेला धीर धइके तोहरे अब रहेके चाहीं। हम उनका विरह में जरत बानी आ घर के लोगन के रुपये चाहीं। हम धन - सम्पदा के का करब हमके बस उनकर साथ चाहीं। हमके ना त कवनो आस चाहीं ना केहूवे के अब  विश्वास  चाहीं। बइरकंटी  के  कांट  में  बानी  हम हमके प्यार  वाली  बरसात चाहीं। ना बंगला गाड़ी न राजपाट  चाहीं उ  जहां रहिहें  उनके  साथ चाहीं।  शापित जिनिगी जी  के का करब  रहब वन-बिझ में बस साथ चाहीं। आडियो,वर्चुअल भरमावन  हवुवे हमरा के परगट आ साक्षात चाहीं। बइठल लोर  बहावत रहीं  हरदम  ना  एइसन  हमके आघात  चाहीं। एइसन जिनगी जियला से नीमन एगो हलाहल के अब शीशी चाहीं।  रोवल धोवल हमरा वश के नइखे  हमरा के त उद्धव ना स्याम चाहीं। जेवन देखलहीं नइखीं उ का सुनीं हमरा परगटे जवन  बा  उहे चाहीं। युग युगान्तर के  दलदल  ना चाहीं  जहां श्री चरन बाटे उ स्थान चाहीं।             -------------

पढ़ि लिख ल ए बबुआ

पढ़ लिख ल ए बबुआ:-- --------------------------- काम धाम त लागले रही पढ़ - लिख के तूं हो जा सही। पइसा रुपिया में का दम बा पढ़ले -लिखला में सब बा चाहे खायेके चिकन मिली चाहे केतनो रुखर सूखर मिली पहिरे के कपड़ा एगो दूगो होखे पढ़िहा ललनवा दिलो जान से नाहीं त कइसे जनबा तूंहवू अमरित महोत्सव के नाम के पढ़लके के कारन अम्बेडकर जी रचि दिहलन देशवा के संबिधान ज्योतिबाफुले, सावित्री बाई फुले जानल जालें पढ़इये के नाम से नरेन्द्र नाथ विवेकानंद कहइलन जाइके शिकागो में U.S.के हराइ के देशवा जब गुलाम रहृल हमनी के राममोहन,विद्यासागर,गांधी बाबा लड़त रहलन पढ़इये के बल पर ना त देशवा में करोड़न रहलन खाइ पीही के रहस बिना गम के भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद जनलन अधिकार अपन पढ़ि के ओइसहीं अबो झंख मारतबानीजा करोड़न भोजपुरी बिना भाषा के छोटे छोटे भाषा पवलस जगह संविधान के आठवीं अनुसूची में हमनी के भोजपुरिया समाज बाटे तरसत अपन अधिकार भाषा के आईं सब केहू मिलि जुलि के साथे लिहिंजा भोजपुरी के अधिकार शामिल करवाके आठवीं अनुसूची में एहिसे कहिले हमहूं अबो ले पढ़िहा एकरा खातिर कतनो दुख सहिहा ना त बचाइ पइबा अपन अधिकारवा घू

सावन के बदरिया

सावन के बदरिया:-- ----------------------- सावन के महिनवा में बरिसेला बदरवा हो !! चलले किसनवा      अब खेतवा के ओर !! लहर  -   लहर     लहरातबाटे खेतवा में धानवा !! हरियर       कचनार     भइल   मारे पनिया हिलोर!! गीत    गावेली    बनिहरिनिया धनवा सोहत बेर!! बहेले     पुरवईया    सन  सन बिहंसे मनवा मोर!! हरियर     बा    धान   पतइया जैसे धानी चुनरिया!! गावेले  किसान   भईया   जब घटा घेरले घनघोर!! घरवा  में     बइठल   बहुरिया देखे पियू के रहिया!! देखेली   उनके   खूबे   मन से  हियवा में होला अंजोर!! बहेला पुरवइया   त  अंग-अंग टूटेला हमरो पुरजोर!! पनिया  बरिसे  अइसे होखेला  जइसे  नाचेला मोर!! सन् सननन चलल पुरवइया त चलिंजा खेतवा ओर!! देखिके फसलिया किसनवा के खिलेला पोरे पोर!! अब त उठा हो किसान भइया  लगावा सोहनी प जोर!! झम-झम बरिसेला बा सावनवा चला चलीं खेतवा के ओर!       ------------------ रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।।    ------राम बहादुर राय------ भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश