चालाकियां सब समझते हैं

चालाकियां सब समझते हैं !!!
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चालाकियां हम तो नहीं करते हैं
मगर सबलोग समझता बखूबी है ।।

लोग यही समझते हैं कि दूसरे
आपकी बात समझ नहीं रहा है।।

सच में सच तो यही होता है कि
जो ये समझे. वह ही.नासमझ है।।

जो नहीं बोलते हैं शालीन होते हैं
उचक्का समझते कि वो मूर्ख है।।

दरअसल चालाक क्या बोलेगा
वह तो अपनी विधा में संपूर्ण है।।

उसके पास तो  गहरा अध्ययन है
नहीं छिछली नदी जैसा उफान है।।

अगर उसके  जैसा ही  मिल जाता 
तो  वह खुश होता बातें करता है।।

समंदर कभी  कहां कुछ  कहता है 
अच्छे-बुरे सबको ढ़क के बैठा है।।

लेकिन थोड़े  से  जल में ही उफ़ान
थोड़े समय में हो जाता कंगाल है।।

किसी से  कुछ मांगकर न लौटाना
बहाने बनाकर साइड हो जाना है।।

ऐसा आज चालाकी का है ज़माना 
काम नहीं बटरिंग से जीत जाना है।।

जो  कर्तव्य-परायण  होता  है उसे
सीधा कहकर वजन घटा देता है।।

क्या  यही है चालाकी का  पैमाना
नहीं प्रभु के पास मुख्य पैमाना है।।

गफलतों  में  आकर खुश  न होना
ईश्वर भी कसौटी  पर परखता है।।

सबके  कर्मों  का  लेखा-जोखा तो
चित्रगुप्त के पास संचित होता है।।

कोई अगर  कुछ  नहीं बोलता तो
मतलब सब कुछ वो समझता है।।
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रचना स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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