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Showing posts from January, 2024

नवका जमाना बा आइल सब अपने में भुलाइल

नवका जमाना आइल,सब अपने में बाटे भुलाइल ------------------------------------------------------------ नवका जमाना बा आइल,सब केहू अपने में भुलाइल मसूरी,लतरी,जौ,लेतरी, सबसे अब नाहिंये चिन्हाइल। भरल दुपहरिया में लोगवा सतुवा-पियाज खात रहल हर-बैल खोले के बेरिया हरियर महादेव बोलात रहल। ठाढ़े घाम से डाढ़ा लेसे, भर दुपहरी में सब सोन्हाइल पिपरा के छांहा में निखहरे सुति के मजिगर उघांइल। सब केहू जेकर कुचराई करे,उहो काल्हुवे लगे आइल आपन खोरिया बहार ए बाबा से सब रहल बन्हाइल। काली माई बसेली सिवानवा ,सबका याद रहत रहल कवनो बेमारी-हेमारी आवे,कृपा से सभे बंचत रहल। केहू के लड़िकी पहिलंउठी नइहर से ससुरा से आइल पूरा गांव के आशीर्वाद लेइके, बेटियो रहसु अगराइल। पहुना जब आवसु सभ केहू उनसे हंसी करत रहल। होखे जब उनुके विदाई,अंखिया लउके ढ़बढ़ियाइल। वियाहे से पहिले संगे रहेलन , कइसन समय आइल लड़िकी पसन बा त ठीक ,नाहीं त दूसरो खोजाइल। अइसन आधुनिकता के ई बेमारी सभकरे के धराइल नेह-छोह छोड़ि के अपने में सब केहू बाटे अंझुराइल। ---------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश @followers

मोछिये अब पाके लागल

मोंछियो अब पाके लागल -------------------------------- झनर-झनर बुझाये लागल सरेहियो के भागि जागल। फूलवो झांवर होखे लागल चइतियो के भाग जागल। खेतवा अब झांके लागल ढ़ेंढ़ियो अंगिराये लागल। फसलियो पियराये लागल नीक दिन बुझाये लागल। ढ़ेंढ़ियो अधेड़ होखे लागल ओकर मोंछ पाके लागल। अंकरी लहलहाये लागल दूबियो फरफराये लागल। देहिंयो सोझियाये लागल खरिहान छिलाये लागल। गंहू-चनवा छंवुके लागल बाल रेंड़ा पर चढ़े लागल। जिया-जंतु फरके लागल मुंहें नया अनाज लागल। सरसो अब निहुरे लागल तीसी उपर ताके लागल। किसानो के भाग लागल मने खूब बिहंसे लागल। भिनुसारो लउके लागल कोइलरो कुहुंकू लागल। ----------- रचना स्वरचित,मौलिक राम बहादुर राय @followers भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

कबो कबो याद आवे लरिक॓इयां

बड़ा याद आवे लरिकइंया -------------------------------- कबो-कबो बड़ा मन परेला आपन लरिकइया। सावन के बरिसत बदरिया कागज के नइया। भादो के झपटी से टूट गिरे छप से छजनिया। छावल-छोपल रहत रहल मोटकी देवलिया। धरन-बड़ेंरा रखवारी करत घर के भितरिया। बांस के कोरो सुतले जागे ढ़ोवत खपरिया। सावन-भदवारी के झपसी भेंवे चारपयिया। भींजल खोतवा ताके माई टूटत सनेहिया। कबो-कबो बड़ा मन परेला पहिले के बतिया। सब केहू एकही संगे रहल एकही अंगनइया। रुखल सूखल खात रहिंजा निरोगित शरीरिया। भरल रहे चवुवन से दुवार मिले दूध-दहिया। लुटाई गइल रीति के गठरी नइखे उ पिरितिया। नवका से नीक पुरनके रहे मिले नेह मिठइया। -------------- रचना स्वरचित,मौलिक @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

जेकरे मनवा में टीस कवनो बा

जेकरा मनवा में टीस कवनो बा -------------------------------------- जेकरा मनवा में टीस कवनो बा बूझिहऽ उनका खीस कवनो बा। कहे के सब केहू नीमने कहाला काम परि जाई तबे सब बुझाला। जेकरा दिल में कशिश कवनो बा बूझिहऽ उनके से बीस कवनो बा। अइसे त सब केहू अपने बुझाला पाई जब मोका गिराई उहे खाला। जेकरा मिलल आशीष कवनो बा बूझिहऽ उनके ना हिस कवनो बा। जेकरा मनवा में टीस कवनो बा बूझिहऽ उनका खीस कवनो बा। -------------- रचना स्वरचित,मौलिक राम बहादुर राय @followers भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश

जेकरा मनवा में टीस कवनो बा

जेकरा मनवा में टीस कवनो बा -------------------------------------- जेकरा मनवा में टीस कवनो बा बूझिहऽ उनका खीस कवनो बा। कहे के सब केहू नीमने कहाला काम परि जाई तबे सब बुझाला। जेकरा दिल में कशिश कवनो बा बूझिहऽ उनके से बीस कवनो बा। अइसे त सब केहू अपने बुझाला पाई जब मोका गिराई उहे खाला। जेकरा मिलल आशीष कवनो बा बूझिहऽ उनके ना हिस कवनो बा। जेकरा मनवा में टीस कवनो बा बूझिहऽ उनका खीस कवनो बा।    -------------- रचना स्वरचित,मौलिक  राम बहादुर राय @followers  भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश

आईं सभे गणतंत्र दिवस मनाईंजा

आईं सभे गणतंत्र दिवस मनाईंजा ----------------------------------------- आज गणतंत्र दिवस मनाईंजा तिरंगा के गगन में फहराईंजा। जाति-धर्म से उपर होकर के शहीदन के मान के बढाईंजा। एक दूसरा के गले लगाईंजा आपस के मतभेद भुलाईंजा। सगरो संसार में ई देशवा महान आईं फेरु से परचम लहराईंजा। पूरा विश्व के शिक्षा देत रहिंजा फिर से ओईसने ही बनाईंजा। संविधान के रक्षा सगरो होखे। हमनी के शपथ अब ई लेईंजा आपस में केतनो लड़ाई करेके। दुश्मन खातिर एक हो जाईंजा एकबेर फेरू अलख जगाईंजा अपना मन में ही गठियाईंजा ई बहुत पावन पर्व ह हमनी के। आईं सभे तिरंगा फहराईंजा हमनी खातिर जे बलिया दिहल ओ शहीदन पर शीश झुकाईंजा। बहुत भईल छोट बड़ के बात। सबकर अधिकार समझाईंजा देशवे से त हमनी के बानी जा अबहूं से मतभेद त भुलाईंजा दुशुमनवा बइठल बाटे चहुंओर एक बार फिर से जाग जाईंजा ओके आपन एकता देखाईंजा आईं सभे तिरंगा के फहराईंजा। ----------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

हमार गांव भरौली के बारे में

हमार गांव भरौली के बारे में ----------------------------------- पूरब ओरिया गंगाजी के बहत बा अमृत धारा उत्तर ओरिया बुढ़वा महादेवजी के आसन बा! गंगाजी के लगहीं सब देवी -देवता के सहारा एक ओरिया माई मंगला भवानी के डेरा बा! पछिम में सड़क,बाग-बगइचा अउरी जाजरा गंवुआ के उत्तर में नाथ बाबाजी के बसेड़ बा। दखिन तरफ स्कूल-कालेज, पुलन के भंडारा मंगला भवानी के चीनी फाहियान लिखले बा। आजुवो तूं खूब चलते बाटे रामायनी परम्परा चीनी यात्री बुढ़वा महादेव धाम भी घूमले बा। भोर भरौली भये...बक्सर जाई ताड़िका मारा ओ पार बक्सर में रामरेखा,चरित्रवन धाम बा। डाॅ विवेकी राय जन्मले रामायन राय के घरवा साहित्यकारन के भरौली,लमही अस नाम बा। ---------------------- रचना स्वरचित,मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

गाँव के थाती श्रृंखला-39

गाँव के थाती-श्रृंखला नं-39 ---------------------------------- हमार गांव भरौली हवुए जिला बलिया, उत्तर प्रदेश में परेला एह गांव के विशेषता बाटे कि शहर-देहात दूनो के फायदा मिलेला...एक तरफ त गांव बटलहीं बाटे दूसरा तरह से देखल जाई त गांव के उत्तर गंगा जी उत्तरायण बहत बाड़ी...ठीक ओह पार बिहार के मशहूर पौराणिक स्थलीय बक्सर बाटे जवन अब जिला बनि चुकल बाटे..एहिजुगे प्रभु श्री राम जी भरौली होते हुए विश्वामित्र जी के तपोस्थली अइलल तब जाके ताड़िका अस राक्षसन के संहार कइलन तब जाके ऋषि-मुनि लोगन के धार्मिक कार्य धर्म के अनुसार चले लागल ,अहिल्या माई के स्थल, बावन महाराज....अइसहीं बहुत पौराणिक जगह बाटे....हमरा गाँव भरौली आ बक्सर में मात्र गंगा जी के एहपार-ओहपार के अन्तर बाटे...सैकड़ो लोग भरौली पुल से टहरत बक्सर तक जालन फिर लवटि के आराम से आवेलन..उत्तर प्रदेश आ बिहार के सीमा भी हवुए जहंवा से पुल पर जाये के चौरस्ता बाटे ओहिजुगा घुमावदार गोलम्बर बाटे ओकरे में गोलाकार पार्क बा जवना में सन 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष..स्वामी सहजानन्द जी के आदमकद प्रतिमा/मूर्ति बीच में स्थापित कइल गइ

इन्हे भी तो पापा जी ही लाये तो...

आप सभी को राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं🙏🙏🙏 इन्हे भी तो पापा जी ही लाये थे तो ?? ------------------------------------------------ वैसे तो मैं उसे बहुत दिनों से जानता था लेकिन उसे जाना था अपने बुरे दिनों में। आकर खामोश बैठे जाती थी मेरे पास कभी देखती ,कभी सिर पर हाथ फेरती। खाली होती तो अपने पांव को सहलाती पूछने पर वह बोली कि ,जूती काटती है। मैने कहा दूसरी ले लो ,तो उदास हो गई कातर दृष्टि से बोली जूती पापा लाये थे। लेकिन वर्षों के बाद अचानक मिल गई बड़ी हो गई थी,अतीव सुंदर पर शर्मीली। दुबली-पतली , मासूम सी प्यारी बिटिया छोटी-छोटी बातें भी मुझसे ही कहती थी। आज उसके साथ अन्जान सा युवक था मुझसे मिलवाकर कहा ये मेरे पतिदेव हैं। शहर में "मेरी आंखों में बहुतेरे से प्रश्न थे" मैं सोचने लगा; यह इसके योग्य तो नहीं " बिल्कुल ही वह बेमेल जोड़ी लग रही थी बेहद समझदार थी मेरे मन को ताड़ गयी। मेरे मन में उठते प्रश्न का उत्तर देना चाही मेरे कानों में धीरे से फुसफुसा कर बोली.... एक छोटी सी किराने की दूकान चलाते है क्या बोलूं इन्हे भी पापा ही लाये थे त

अकेले उड़े सिखावेले चिरइया

अकेले उड़े सिखावेली चिरइया ------------------------------------- घास के झुरमुट के झरोखा से देखते-सुनत बइठेली चिरइया। अपना बचन के चूं- चू के चीं से सरेहिया में निकलेली चिरइया। दूगहू दाना छुपालेली गलवा से फर्र उड़ि चलि आवेली चिरइया। बचवन के देखिलेली आहट से चोंचसे खूबे खियावेली चिरइया। चोंचवे खोलि कहेली बचवन से उड़े के राह देखावेली चिरइया। बचवन के निरेखेली अंखिये से उनके दुख से बचावेली चिरइया छोटीमुटी खोंतवे लटके झुर से थपकी देके सुतावेली चिरइया। भूख-पियास गरमी बरसात से ओहार के जियावेली चिरइया। लागेला कि जियेली बचवन से जान अपन लुटावेलि चिरइया। --------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

दिल में रहमत की हसरत लिए चलता हूं

दिल में रहमत की हसरत लिए चलते हैं ------------------------------------------------- हम तो बड़े अदब से सिर झुकाए हुए हैं वो समझते रहे कि ,हम डर खाये हुए हैं। हमारी फितरत है कि,हम बनते नहीं हैं मेरे पास क्या कुछ है, कहते भी नहीं हैं। क्या लेकर आये हो , क्या लेकर जाओगे जिस बात पर इतराते,वो सबके पास है। उतर कर जमीं पर देखो,समझ जाओगे तेरा वजूद दरिया क्या पोखर भी नहीं है। दिल में रहमत की,हसरत लिए चलते हैं तुम्हें लगता है हम कुछ नहीं समझते हैं। पर आप सिर्फ फायदे का सौदा करते हैं लेकिन हम जानबूझकर घाटे में रहते हैं। हम वो साहिल हैं जो,मझधार में जीते हैं मझधार में फंसे को साहिल पर लाते हैं। हमें दर-बदर के दिखावे में नहीं रहना है राम का नाम लेकर मुझे चलते जाना है। होगा वही जो जिसके भाग्य में लिखा है तो दिखावे की आपाधापी क्या करना है। ------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश @followers

प्रभु श्री राम के नाम पर भी तो एक हुआ जाये

श्री राम के नाम पर भी तो एक हुआ जाये ----------------------------------------------------- स्वार्थ से दूर , कुछ अलग भी सोचा जाये आइये कुछ पल आराम कर लिया जाये। कुछ तुम पास आओ, मिलकर बढ़ा जाये चौराहे पर मिलकर खाईं को पाटा जाये। अंधी दौड़ में कुछ उजाला खोजा जाये जो हुआ सो हुआ अब तो सुधारा जाये। आधुनिकता का दौर है , इसे समझा जाये अपने सुनहरे अतीत पर , गर्व किया जाये। अब भी वर्षों की गुलामी मुक्त हुआ जाये अब भी सभ्यता व संस्कृति बचाया जाये। भारत तो विश्वगुरू रहा है,ध्यान दिया जाये फिर भारत सोने की चिड़िया बनाया जाये। हमने क्या खोया, इससे सबक लिया जाये श्री राम के नाम पर भी तो एक हुआ जाये। हम सभी मिलकर ऐसा जतन किया जाये सबको देश की मुख्य धारा में लाया जाये। --------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

सब कुछ समझता हूं लेकिन नासमझ सा रहता हूं

सब कुछ समझता हूं,लेकिन नासमझ सा रहता हूं ------------------------------------------------------------- मैं साथ रहने का आदी हूं,मगर तन्हाई में ही रहता हूं कोई कुछ भी कह देता है,उसे हंस कर ही सहता हूं। जहां भी चला जाता हू,ढाल मैं अपने साथ रखता हूं खंजरों में ही जन्म लिया ,खंजरों से नहीं मैं डरता हूं। जिसके लिए सब करता हूं,उसी का मैं वार सहता हूं मैं तो कोई कवि नहीं हूं,आहत होकर मैं लिखता हूं। कितने बसन्त देखा हूं,लेकिन पतझड़ में ही जीता हूं जिसको मैंने सिखाया है ,अब मैं उसी से सीखता हूं। मैं सच के साथ रहा हूं, इसीलिए अकेले ही रहता हूं यह जाल फरेब़ की दुनिया है,मैं फिट कहां बैठता हूं। अब मैं किसे अपना कहूं ,अपनो से ही रंज रहता हूं कोई कुछ भी मुझे कह देता है,चुपचाप सुन लेता हूं। कोई मुझ पर व्यंग्य कसता है ,मैं हंसके चल देता हूं कभी हालात मेरे बदलेंगे,ये सोचकर जिंदा रहता हूं। यह सियासत का युग है,क्या कहूं कैसे मैं रहता हूं सब कुछ समझता हूं ,लेकिन नासमझ सा रहता हूं। ---------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश @followers

घरवा के दुख तूहूं याद रखिहऽ

घरवा के दुख तूहूं याद रखिहऽ -------------------------------------- जातड़ऽ तूं दिल्ली राजधनिया में गंवुआ- घरवा के धियान रखिहऽ। माई-बाबू सुतेलन पलनिया में एह बतिया के खियाल रखिहऽ। भइया खटेले खेत-खरिहनिया में उनकरो तूं मान-अरमान रखिहऽ। जियेता जिनिगी सब उधरिया में करजा काढ़ल, तूंहूं याद रखिहऽ। माई-मेहर रहेली एगो सड़िया में पेट काटिके जियल याद रखिहऽ। कबो-कबो लोर चुवे चुहनिया में माई के उपासल तूं याद करिहऽ। जिनिगी जियलका अन्हरिया में ए बबुआ नीमन से याद रखिहऽ। खेत - बधार धराइल रेहनिया में छोड़ाहूं के बाटे,धियान रखिहऽ। दुल्हिन बाड़ी तोहरे पिरितिया में उनको पर तनी खियाल रखिहऽ। सब आसरा,तोहरा नोकरिया में पइसा हरदम तूं भेजल करिहऽ। ताना मारेले लोगवा डहरिया में सब लोगवन के धियान रखिहऽ। दुश्मन बाड़न गंवुआ शहरिया में ए बाबू बुद्धि के सेयान रखिहऽ। नीमन तोहरे सब खनदनिया में इजतिया के तूंहूं उतान रखिहऽ। केतनो दुख सहिहऽ नोकरिया में घरवा के दुख तूहूं याद रखिहऽ। ----------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

अर्जुन युद्ध कर!युद्ध कर!!!

अर्जुन युद्ध कर!!युद्ध कर!! --------------------------------- एक अकेला पार्थ खड़ा है साथ ही पुरूषार्थ खड़ा है! मिलके साथ खड़े हो जाओ स्वर्णिम इतिहास खड़ा है! दु:शासन से समाज पटा है दुर्योधन चारों ओर खड़ा है! धरती पर अत्याचार बढ़ा है पाप का चक्रव्यूह बना है! दुश्मन तो चारों ओर डटा है केशव तुम्हारे साथ खड़ा है! कैसा यह खून तुम्हारा है जिसमें कोई उबाल नहीं है! उन शहीदों से प्यार नहीं है क्या उनका कर्जदार नहीं है! हमारा कोई कर्तव्य नहीं है तेरे जीने का अर्थ नहीं है?? उठ जाग ! उठ जाग ! जाग अब चिर - निद्रा से जाग तूं! जीवन व्यर्थ नहीं गंवाना है संकल्प में तेरा विकल्प है! दुश्मनों का संहार करना है स्वत्व अपना छीन लेना है! अब नहीं करना मनुहार है छीन लो , तेरा अधिकार है! नीति व नीयत की पुकार है अर्जुन युद्ध कर !युद्ध कर!! अब मोह में नहीं पड़ना है देश के लिए जीना-मरना है! -------------------- राम बहादुर राय भरौली ,बलिया उत्तरप्रदेश @followers

खेत अब लहलहा गइल

खेत अब लहलहा गइल ------------------------------ धान के बाल दवां गइल पुवरा के बिछावन गइल। साग चना के तइयार भइल गंहू के पौधा जवान भइल। सरसों पियर फूला गइल खेत अब लहलहा गइल। बादर से बून टपक गइल मोटनजा के सुतार भइल। रहिला भी कचनार भइल मटर पुरहर गदरा गइल। किसान के अंजोर भइल फसल गोटमोटार भइल। खेतन में उजियार भइल दिल बसंती बयार भइल। किसान खुशहाल भइल अनाज के आधार भइल। ------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

गंवुआ भइल बेजान

गंवुआ भइल बेजान ------------------------- डह डह डहकेला गंवुआ गिरवुंवा शहर भइल परधान! झन झन झनकेला किसान बेटवुवा गंवुआ भइल बेजान! खट खट खटकेला किसान चवुववा दुवार भइल सुनसान! चम चम चमकेला अबके बबुववा बेचले खेत खरिहान! चुप चुप अहकेला  फेंड़वा सुगवुवा दुश्मन भइल इंसान! डांड़े डांड़े लउकेला अबके भकंवुवा खेतवा बनल मकान! कुहूं कुहूं कुहुंकेला  अनजा मड़ुववा  मिटल अब पहचान! धम धम धमकेला  पढ़ल बेटवुवा बेचेला खेत खरिहान!       -------------- राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

घुटि-घुटि के नाहीं जियल जाई

घुटि-घुटि के नाहीं जियल जाई -------------------------------------- घुटि-घुटि के नाहीं जियल जाई मिलि बइठि के, पियल जाई। अपना मन वाली , कइल जाई जिनिगी छकि के, जियल जाई। जवन मन में, आई कइल जाई बात मन में नाहीं रखल जाई। जवन बाटे ,नीमन मानल जाई के जाने कब, चल दिहल जाई। हमनी के मिलिके , रहल जाई लुतरन-कुचरन , से बचल जाई। खूब मउज-मस्ती, कइल जाई जवन होई ओके, देखल जाई। -------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

श्री राम अइसन केहू भइबे ना कइल

श्री राम अइसन केहू भइले ना कइल --------------------------------------------- बहुत घूमनी बहुत घूमियो के देखनी श्रीराम अइसन केहू मिलबे ना कइल। प्रभु राम के सोचि के लिखहूं बइठनीं का बताईं कुछवू लिखइबे ना कइल। सोचत-सोचत हम सोचते रहि गइनीं राम के नाम कबो भूलइबे ना कइल। सुघराई के रावुर का का हम बखानी रवुंआ के जे देखल,देखते रहि गइल। बहुत देवी-देवता के गोहरवले बानी राम के आगे केहू सोहइबे ना कइल। हम लिखत-लिखत ना लिखि पवनी कलमो भी देखिके देखते रहि गइल। रवुंआ त दुष्ट रावनो के तारि दिहनी राम से रणहद केहू रहबे ना कइल। प्रेम सांच होखे राम जी कृपा कइनी राम से कृपालु केहू भइबे ना कइल। नेह-छोह अइसन श्रीराम से लगवनी नेह-छोह, विछोह जनइबे ना कइल। ----------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

राम नाम से मानुष तरि जाय

राम नाम से मानुष तरि जाय ---------------------------------- महिमा अइसन प्रभु राम के अनपढ़ भी ज्ञानी बन जाय। अधरमी विधर्मिन का कहे के सबकर बेड़ा पार लगि जाय। राम सभकर सभे बाटे राम के राम नाम से मानुष तरि जाय। राम हंईं सनातन संस्कृति के भारत राम से ही जानल जाय। अइसन बान चलल राघव के चहुंओर राम राम होई जाय। राम आयेंगे आयेंगे कहि के सबकर बेड़ा पार होई जाय। राम नाम सूचक बाटे धर्म के राम नाम से संकट टल जाय। --------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश  @followers

जियते खोंतवा उजारि गइलऽ बलमू

जियते खोंतवा उजारि गइलऽ बलमू --------------------------------------------- कवना नगरिया चलि गइलऽ बलमू खोजत-खोजत हेराई गइलऽ बलमू। हमरो जिनिगी अथेघा कइलऽ बलमू नेहिया के डोरिये भूला गइलऽ बलमू। हमके कउड़ी के तीन कइलऽ बलमू खोजत-खोजत हेराई गइलऽ बलमू। कवन कसूर हमरा से भइल बलमू सुखवा के दिन सरेह कइलऽ बलमू। आसरा के मनवा लुटा गइल बलमू कवना नगरिया हेराई गइलऽ बलमू। बिना पाता के नपाता भइलऽ बलमू कवना खोंतवा लुका गइलऽ बलमू। पानी हमार बेपानी कइलऽ बलमू जियते खोंता उजारि गइलऽ बलमू। हमार जियलो दुलुम कइलऽ बलमू कवना जहर में डूबा गइलऽ बलमू। ---------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश @followers

सत्य सनातन जीत गइल

शाश्वत सत्य के जीत भइल! ----------------------------------- युग राम राज के आइ गइल घर-घर भगवा फहरा गइल! सत्य सनातन जीत गइल फिर से राम राज आ गइल! मन्दिर-मस्जिद बहुत भइल विधर्मिन के अवसान भइल! चहुंओर राम के राज भइल प्रभु राम के अब राज भइल! नया युग के शुरुआत भइल रंग भगवा सगरो छा गइल!  मेघ- कुम्भकरन  भाग गइल  धरती के  बोझा  कम भइल!  बरिसन से  सब चाहत रहल  आज मनवुती पूरा हो गइल! हिन्दू-सनातन  शाश्वत रहल  फिर श्री राम के ताज भइल! पुराना वैभव  फिर आ गइल  श्री राम से अहोभाग्य भइल!  ई  शुभ दिन अब आइ गइल सत्य  सनातन  जीत  गइल!               ------------ रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

हे राम प्रतिक्षा है आपकी

हे राम प्रतीक्षा है आपकी!!! ---------------------------------- हुई जीत सत्य सनातन की पुष्पित हुई यह पावन धरा। हटी है कालिमा म्लेच्छों की वर्षों से श्री राम का आसरा। अयोध्या नगरी श्री राम की दुष्ट दानवों में सन्नाटा पसरा। जल रही थी आग पाप की नहीं रहेगी यह धरती बेसरा। यह सप्त सैंधव है उदधि की शाश्वत है अभिसिंचित धरा। जीत हुई विश्वास जगत की धर्म सनातन पताका फहरा। यह भारत भूमि श्री राम की राममय हुआ यह जग सारा। ऋषि-मुनि के और संतों की विश्वगुरू की यह शांति धरा। हे श्रीराम प्रतीक्षा है आपकी प्रतिपल आपका ही आसरा। -------------- रचना स्वरचित और मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

जाड़ों में ठिठुरे जैसे हिमशैल

जाड़ों में ठिठुरे जैसे हिमशैल ------------------------------------ वही खेत वही दिखते डांड़-मेढ़ वक्त का वक्त से नहीं तालमेल। कुछ के घर सब कुछ रेलमरेल कुछ के घर में चूल्हे तक फेल। भूख की तपिश में क्या मालूम नया-पुराना सब कुछ है बेमेल। धन्नासेठों की हो रही खरीदारी गरीब की रोटी की हो गई जेल। मुर्गा-दारू की चली ठेलमठेल वो क्या जाने कैसी है खपरैल। उस किसान के बच्चों से पूछो उसके हाथ लगी मिट्टी की मैल। कैसा पुराना कैसा है नया वर्ष खेतों में हल चलाता हुआ बैल। राम के नाम पर दुनिया चलती पर वह गरीबी का जैसे रखैल। दिन-रात खेत-खरिहानों में रहे मगर जीवन है उसका मटमैल। कौन पूछे हाले-ए-दिल उसका निर्मोही दौलत भी कसे नकेल। फुटपाथ का दृश्य रात में देखो कांपती जिंदगी का नंगा खेल। उन्हें क्या पता नव वर्ष क्या है जाड़ों में ठिठुरें जैसे हिमशैल। भूख की आग बेरहम होती है कैसे जीते हैं जेल भी है फेल। -------------- रचना स्वरचित और मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश