प्रेम से उपर कुछ भइबे ना कइल
प्रेम से उपर कुछ भइबे ना कइल ----------------------------------------- बहुत घूमनी बहुत घूमि के देखनी तहरे जइसन केहू मिलबे ना कइल। तोहरा के देखि के लिखे बइठलीं का कहीं कुछवू बुझइबे ना कइल। सोचत-सोचत त सोचते रहि गइनीं तोहार याद कबो भूलइबे ना कइल। सुघराई के तोहरा का बखान करीं तोहरा के देखे के महसूसे ना भइल। हम परियन के कहनी सुनत रहनीं तोहरा आगे परी सोहइबे ना कइल। कलम लिखत-लिखत का लिखत कलम भी देखिके देखते रहि गइल। तोहरा बारे में सोचले से सोच बाटे एकरा आगे कुछ बुझइबे ना कइल। प्रेम सांच होखे ईश्वर के वास होला अब एसे उपर केहू गइबे ना कइल। नेह-छोह अइसन लागल तोहसे कि नेह-छोह, विछोह जनइबे ना कइल। ----------------- रचना स्वरचित,मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश