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Showing posts from September, 2023

असली मजा गांवे में बा

असली मजा बाटे गांवे में -------------------------------- जवन मजा मिलेला किसानी में उ मजा नइखे शहरी कहानी में। केतनो रहबऽ एसी कूलर में असली मजा त टूटही पलानी में। पिज्जा-बर्गर,चाउ-माउ खातड़ऽ मजा बाटे गांव के चुहानी में। वाल-पुट्टी,टाइल्स में रोग के घर मजा बाटे माटी हिन्दुस्तानी में। हाय-हल्लो टाटा-बाय बाय करबऽ मजा बाटे नेह-छोह के छानी में। दीवार पलंग डनलप पर सूतऽ असली मजा आवेला खटानी में। हवाई जहाज रोवर कार देखऽ असली मजा बा खेत हेंगानी में। केतनो बाथरूम महंगा बनावऽ असली मजा बाटे बहत पानी में। शहर में एगो फ्लैट बनववलऽ नीक लागे गंवुआ के दलानी में। कागज,प्लास्टिक के फूल देखऽ असली फूल पइबऽ तूं बागानी में। नदी-नाव शहर में देखत होखब कागज के नाव बरखा क पानी में। रिश्ता-नाता शहर में ना निभेला रिश्ता बचल गांव के निशानी में। ----------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

हम जैसे हैं वैसे ही ठीक ह्

हम जैसे हैं,जहां हैं, वहीं ठीक हैं:- ------------------------------------------------ समझो हम अपने गांव में ठीक-ठाक हैं तेरे शहर में देखो जीने की शर्तें बहुत हैं। अब हम अपनी सरजमीं पर ही ठीक हैं दूसरों की सरजमीं पर दुश्वारियां बहुत हैं। अब हम अपने घर चाहे जैसे हों ठीक हैं झूठी आधुनिकता में नहीं जी सकते हैं। हम कम पढ़े हैं तो भी लिखे भी ठीक हैं देखो पढ़ाकू लोगों में इफ-बट बहुत हैं। हम गांव के किसान-मजदूर ही ठीक हैं तेरे पैसे वाले VIP'S में नखरे बहुत हैं। हम तो हर हाल में खुलकर ही हंसते हैं तेरे शहर-सेल्फी में हंस भी नहीं पाते हैं। जनाब हम झोपड़ी ,खपरैल में ठीक हैं तेरे शहरी टाईल्सों में रोग ही रोग भरे हैं। मानो मेरे यहां जीने के रास्ते भी बहुत हैं तेरे शहर में तो सिर्फ घुटन ही घुटन हैं।  -------------- रचना स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

काहें हमके जनमवलऽ

काहें हमके जनमवल ए बाबूजी!! ----------------------------------------- काहें हमके जनमवल ए बाबूजी का रहल एकरा में हमरो कसूर। काहें हमके जनमवलू ए मइया काहें हम भइनी पतलो के झूर। होते जनमवा सब मुंह मोड़लस काहें हमहीं भइनी सबके नासूर। होते बबुववा बाजेला बधइया हमरे बेरी सब चुप होखे जरूर। भेदभाव जनमते काहें होखेला बाबूजी कवन बाटे हमरो कसूर। हमरे भइयवा के कान्हीं ढ़ोवाला हमके राखेलऽ अपनहूं से दूर। बबुआ घूमेलन खेत-खरिहनिया हमके सिखावेलऽ रहेके सहूर। सब केहू देखिके जरेला हमके लड़िकी भइनी हमार का कसूर। देशे-देशे हमार दूलहा खोजाई दुनिया समाज तिलक लेई जरुर। अउरी बबुनी पानी के बुला हई बचावे परी नाहीं त फूटिहें जरुर। कवन कसूर हमरो बाटे बाबूजी काहें के हमहीं कहाइला मजबूर। कबो-कबो हमरा के इहे बुझाला लड़की के जीवन श्राप बा जरूर।               ------------ रचना स्वरचित,मौलिक अउरी अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

ये वक्त भी बदल जायेगा

यह वक्त कब बदल जायेगा --------------------------------- अगर संकल्प ले ही लिया है तो विकल्प भी मिल जायेगा। उन्हें आज मेरी जरूरत नहीं है हमारा वक्त कभी तो आयेगा। मगरूर होती है क्यूं दुनिया जाने कौन मशहूर हो जायेगा। जिसमें कोई भी हुनर होता है भला उसे क्यूं बुलाया जायेगा। मैं अपना कर्म करता ही रहूंगा फल एक दिन मिल जायेगा। माया फरेब कब तक चलेंगे यह तिलिस्म भी टूट जायेगा। सबको तो अपनी ही पड़ी है दूसरा कैसे इन्हें याद आयेगा। जब मुझमें खासियत नहीं है तब कैसे मुझे बुलाया जायेगा। पर कर्म पथ  पर चल रहा हूं मेरा कर्म  ही वहां ले  जायेगा आज जिसे  मवाली जानते हैं वही कल सवाली बन जायेगा। मुझे किसी से शिकवा नहीं है शिव का सहारा मिल जायेगा। आज मुझसे नजरें छुपा रहे हैं एक दिन मुझे ढूंढता आयेगा। किसी को दरकिनार मत करो  न जाने कब क्या हो जायेगा।              -------------- रचना स्वरचित और मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। व राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

नेह के डोर में बन्हा गइनीं

नेह के डोर में बन्हा गइनी -------------------------------- हम त सनेहिया के डोर से बन्हाते गइनी डोर जेतने उ खींचत रहन पास आवत गइनी सनेहिया तार जुटत गइल हम खिंचात गइनी प्यार में हम अइसन डूबनी सुध-बुध भूला गइनी भरि गगरी में रखाये लगनी त हम उतरा गइनी मिलन के आस हमरा रहल धोखा खाई गइनी आंख त हमरो लोराइल रहे तबो ना भुला पवनी नेह के डोर त लमहर रहल अइसही ढ़रक गइनी उ समझलन हम हंसत हंई मगर हम रोवत रहनी नेह में बान्ह के चलि दिहलें हम राह देखत रहनी हम अपनहूं से दूर हो गइनी उनहीं में समा गइनी जवन जिनिगी आपन रहल उ गिरवी धइ दिहनी का कहीं हम,हम ना रहनी नेह से हम नथा गइनी ------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिक सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

लागता गदर मचावहीं के परी

लागता गदर मचावहीं के परी ------------------------------------ काहें भुलइलऽ भोजपुरिया हो भोजपुरी अपनावे के परी। ना कामे आई भाषा फिरंगी हो फिरंगी कवनो काम ना करी। कवना लोभ में परल बाड़ऽ हो अन्त में काम आपने करी। हमनी के महतारी भोजपुरी हो माई के धियान रखे के परी। दूई-दिन के नवकी बहुरिया हो महतारी अस केहू ना करी। नेता बनिके जवन माकताड़ऽ हो वोट खातिर घरे आवे के परी। हर देश अपने भाषा के बोले हो भोजपुरी अब बोले के परी। भोजपुरी के गोदी में बढ़लऽ हो भोजपुरी के बढ़ावे के परी। काहें माई-माटी के भुलइलऽ हो कबो माटी में जाये के परी। भाषा भोजपुरी से जियलऽ हो फर्ज तोहरो निभावे के परी। भोजपुरी के मान्यता नइखे हो बात संसद में बोले के परी। तोहरा बोले के हिम्मत नइखे हो फेरू चित्तू पाण्डे बने के परी। अगर एहूसे बात नाहीं बनी हो आजाद,भगत से कहेके परी। धरती भोजपुरिया बीरन के हो बोलावा तोहरा देबे के परी। खुसुर-फुसुर ना करे आवेला हो लागता गदरे मचावे के परी। ---------------- रचना स्वरचित,मौलिक अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

भगवान विश्वकर्मा जी का जन्मोत्सव

भगवान विश्वकर्मा ----------------------- १७ सितम्बर/ जन्मोत्सव --------------------------------- भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं. माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्ग लोक, लंका आदि का निर्माण किया था. इस दिन विशेष रुप से औजार, मशीन तथा सभी औद्योगिक कंपनियों, दुकानों आदि पूजा करने का विधान है. हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार हर वर्ष विश्वकर्मा पूजा "कन्या संक्रांति" को होती है. कहते हैं कि इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा पूजा के विषय में कई मत हैं. कई लोग भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विश्वकर्मा पूजा करते हैं, कुछ कन्या संक्रांति को करते हैं जो इस वर्ष १७ सितम्बर, २०२३ को है, तो कुछ लोग इसे दीपावली के अगले दिन मनाते हैं। एक कथा के अनुसार संसार की रंचना के आरंभ में भगवान विष्णु सागर में प्रकट हुए. विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र "धर्म" का विवाह "वस्तु" से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम 'वास्तु'

भारत की बिंदी है हिन्दी

भारत की बिंदी है हिन्दी ------------------------------- देश की खांटी माटी है हिन्दी भारत मां की बिंदी है हिन्दी! हमारे लिए अभिमान हिन्दी युद्ध के लिए प्रयाण हिन्दी ! सबको को हिन्दी आती है हमारे देश की थाती हिन्दी! यहां कण-कण में है हिन्दी सबकी जुबान भी हिन्दी! हमारी राजभाषा हिन्दी है राष्ट्र गान व गीत भी हिन्दी! फिर क्यूं नहीं राष्ट्रभाषा है चारों ओर हिन्दी ही हिन्दी! न्यायालय की भाषा अंग्रेजी वैकल्पिक ही क्यों है हिन्दी! क्या हिन्दी सम्मान नहीं है राष्ट्र भाषा क्यों नहीं हिन्दी! निज गौरव अभिमान हिन्दी भारत का श्रृंगार है हिन्दी! एक अमिट आवाज हिन्दी आओ शान से बोलें हिन्दी! जवानों की प्राण है हिन्दी सबकी की आवाज़ हिन्दी! भाषाओं की ताज़ है हिन्दी संस्कृत की सहोदर हिन्दी! एकता की पहचान है हिन्दी ईश्वर की वरदान है हिन्दी! ----------------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश 9102331513

झूठने के बोलबाला बा

झूठन के ही बोलबाला बा --------------------------------- सब केहूवे अफनाइल बा लागता कुछवू हेराइल बा। झूठन के ही बोलबाला बा सांच हेने तेने फेंकाइल बा। सब अपने में भुलाइल बा झूठन के लहलहाइल बा। जेकर काम सेंगरा पर बा उहो जबरिये उतराइल बा। जे संचहीं इमानवाला बा उ कामे में अंझुराइल बा। मायाजाल फइलवले बा सब माया में भुलाइल बा। सोना थीर -पूर बइठल बा पितरे के लहलहाइल बा। अब के नीमन के बाउर बा अब कठिन चिन्हाइल बा। जे जेतने नीमन बुझात बा उ ओतने ढ़ेर बिलाइल बा। जवना नेंव पर जे ठाड़ा बा ओही के उ अब काटत बा। अजब-गजब जमाना बा सबकेहू दूसरे के देखत बा। -------------- राम बहादुर राय भरौली बलिया उत्तर प्रदेश

गाँव के थाती-श्रृंखला-19

गाँव के थाती-श्रृंखला-19 ------------------------------- एगो समय रहल कि गांव के घर के आंगन में छान्हीं पर कुछ ना कुछ सब केहू बोवले रहे जवना में गंगवट माटी, गोबर के खाद डालल जात रहे...फसल एकदम करिया भंवरा अस करंगा बन्हले आवे लहलहात रहे...उहे फल-फूल,तरकारी, अनाज खाके सब अदिमियो लहलहात रहे..लहसत रहे। अधिकतर अइसन हमरा लेखा गरीब परिवार के सवांग रहलन उ खाहीं-पिये के जोगाड़ बान्हे में अंझुराइल रहसु त..उनकर लड़िका-बच्चा केतरे पढ़सु....ओही में हमरा याद परता कि कातिक महिना में मोटहन अनाज, चना,मसूरी, लतरी...जौ-गोजई...सरसों,तीसी, बरे....बहुत कुछ बोवात रहे लेकिन सबकरा घरे रोज तरकारी..सब्जी के जोगाड़ ना बनि पावे त रोटी-अंचार,नून-तेल घंसल रोटी भा पियाज काटि के ओहमें तनी नून-सरसों तेल आ अंचार के मसाला मिला के खाये में जवन सवाद मिले उ मजा कुछवू में ना आयी...शरीर भी चंगा-निरोगित रहल करे सबकर..हालांकि ई गरीबन के भोजन के इंतजाम रहे...एगो अउरी इंतजाम झटपट वाला रहल...अरवा चाहे उसिना चावुर तसला में रिन्हात रहल काहें से कि कुकर चाहे कुकुर,गैस महाराज केहू के घर में घुसल ना रहलन तब जब भात पाकि जात रहे त माड़ प

बदरी लागल रही त बरिसबे करी

बदरी लागल रही त बरिसबे करी ---------------------------------------- आकाश में बदरी जब लागल बा कबो कहीं ना कहीं बरिसबे करी। कवनो काम खातिर डंटल रहबऽ आजु ना त काल्हू उ होखबे करी। कब तक घरे छिपल रही जयद्रथ सूरज ढ़लला पर त निकलबे करी। बहुत जल्दी कृष्ण चक्र हटइहन गांडीव के बाण से उ मरइबे करी। अगर नारी के चीरहरण केहू करी ओकर उ हाथ केहू उखङबे करी। अगर कंस, जरासंध नियन करबऽ कृष्ण के अवतार त लेबहीं के परी। गलत करब , गलत के साथ देबऽ तब कबो न कबो भोगहीं के परी। जब तूं कवनो जघन्य पाप करबऽ तोहरे लहू से पांचाली नहइबे करी। अगर पापी के साथे खुलिके देबऽ कर्ण अस विजय रथ फंसबे करी। देख नारी का चिरहरण गूंग बनबऽ अंग-प्रत्यंग बाणन से छेदइबे करी। अगर सूतला में बाल हत्या करबऽ घाव तोहरे ललाट पर रिसबे करी।  अगर सवारथ में तूं धृतराष्ट्र बनबऽ पछताइके अकेले  रोवहीं के परी।  पाप के गगरी  लबालब भरि जाई केतनो धन बल रहि कामे ना करी। धन-बाहुबल पाके अति मत करऽ नाहीं त समूल  नाश  होखबे करी।                  ------------ रचना स्वरचित अउरी मौलिक  अप्रकाशित@सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय भरौली

मुझे कोई अहम-वहम नहीं

मुझे कोई अहम-वहम नहीं ---------------------------------- जैसा तुम सोचते हो वैसे हम नहीं मैं जो भी हूं ठीक कोई वहम ही नहीं। मेरे बारे में वो लोग क्या सोचते हैं उनकी सोच पर हमें कोई ग़म नहीं। हम सबका भला सोचते रहते हैं हम ठहरे इंसान कोई नेता तो नहीं। हर बुराई की काट अच्छाई होती है दुश्मनी, धोखा हमने सीखा ही नहीं। हम मेहनतकश और जिंदादिल हैं हम निन्यानबे के फेर में रहते ही नहीं। पैसों का संसार होगा किसी के पास लेकिन सिर्फ पैसे से जी सकते नहीं। हम कभी भी कहीं पर भी चल देते हैं गाड़ी,सुरक्षा,डर कहीं दिखता ही नहीं। दिल में ईश्वर लेकर हम चला करते हैं हमें रहम व धन की जरूरत ही नहीं। दुनिया में हर व्यक्ति अकेला होता है तो मैं भी अकेला कोई भ्रम ही नहीं। ------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

गाँव के थाती-श्रृंखला-18

गाँव के थाती-श्रृंखला-18 ---------------------------------- बहुत पहिले जब खेत बोवल जात रहल तब आपस में बहुत तालमेल रहल करे कि कवना मउजा में कवन फसल बोवल जाव..एह बात खातिर गांव के एगो बहुत नीमन अनुभवी किसान जे भी रहे उनकरा से जाके निहोरा कइल जात रहे..तब उहां के पूरा तइयारी के साथे पगरी बान्हि के एगो चउतरा पर बइठसु जवन तनी उंचा होखे जमीन से आ बाकी लोग में कुछ जमीन पर बिछावल दरी पर बइले त कुछ लोग खड़ा भी रहल करत रहे..ओहिजे सब अपन-अपन विचार रखे फिर मुख्य अनुभव वाला किसान अपन राय सबके बतावे फिर त उहे फसल बोवल जात रहे...जइसे बांण के खेतन में पियरी माटी रहेला तब ओमें बाजरा-अगहनिया, अरहर, मकई...वगैरह-वगैरह बोवल जाव..जवना खेत में बरसात के पानी ना लागत रहे ओकरा में अरहर के संगे अगहनिया, पटुवा, मूंग, उरदी बोवात रहल। अब जवना मउजा में मकई,कांकर, खीरा बोवात रहे त तमाम तरह के जंगली जनावर जइसे हरना, बनसुवरा, लिलगाइ..घड़रोज,झुंड में धावा बोलि के सब फसल के तहस-नहस. ..बर्बाद कर देत रहलन एहि कुल से बचे खातिर लखत के लखत खेतन में एकही फसल बोवल रहे आ सब अपना-अपना मचान पर पूरा इंतजाम करके रहत रहे जवना में खा

एक दिन सुखों की सुबह जरूर होगी

एक दिन सुखों की सुबह जरूर होगी ---------------------------------------------- बुरे वक्त को गुजरने में देर तो होगी ही वो काली रात के ढलने में देर होगी ही! क्यूं थोड़े से कष्ट से घबराती है दुनिया सुख के दिन आने में देर तो होगी ही! सहकर दुनिया के रंजोगम तूफां से भी लड़कर भी संभलने में देर तो होगी ही! जिसका सिर्फ़ आसरा ही खुदा का हो मंजिल उन्हें मिलने में देर तो होगी ही! धैर्य रख! होगी सुखों की सुबह जरूर लेकिन उसके आने में तो देर होगी ही! मैं अकेले ही दामन बचाकर रहता हूं सच की राह चलने में देर तो होगी ही! चलते रहने पर मंजिल मिलेगी जरूर मगर मंजिल मिलने में देर तो होगी ही! दर्द के बिस्तर पर नींद आ ही जाती है उनके आगोश में सर नहीं,देर होगी ही!  ----------------------- रचना स्वरचित और मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित  राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

कबीरदास:कवि, संत अउरी समाज सुधारक

कबीरदास:कवि,संत अउरी समाज सुधारक ----------------------------------------------------- 15वीं सदी में भारत के आध्यात्मिक क्षितिज पर 'कबीरदास' के रूप में एगो अइसन रहस्यवादी कवि, विचारक, सुधारक, दार्शनिक और संत के उदय भइल जे भक्तिकाल में भी निर्गुण-धारा प्रवाहित कइलन, कवनो धर्म विशेष के ना मनलन उहां के एगही सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास जतवनी आ समाज में फइलल कुरीति कर्मकांड, भेदभाव, अंधविश्वास अउरी सामाजिक बुराईयन पर चोट कइके सामाजिक समरसता ,साम्प्रदायिक सद्भाव के मार्ग देखवनीं। संक्षिप्त जीवन परिचय : कबीरदास जी के जनम लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी (1398 ई.) में काशी, उत्तर प्रदेश में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के भइल रहे। मान्यता बा कि कबीर बालक रूप में 'नीरु-नीमा' के काशी के लहरतारा तालाब में एगो कमल के पुष्प के ऊपर मिललरहलन। उनकर लालन-पालन जुलाहा परिवार में रहल अउरी स्वामी रामानंद उनकर गुरू रहनीं (काशी में परगट भये, रामानंद चेताये)। औपचारिक शिक्षा त ना मिलल रहे (मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ), एहिसे उनकर चेला लोग उनकरे वाणी के लिपिबद्ध कइलनजा। उनकर विचारधारा के 'कबीरपंथ

वक्त है..गुजर जायेगा

वक्त है : गुजर ही जाएगा:-- -------------------------------- ये वक्त भी तो गुजर ही जाएगा हवा का रूख भी बदल ही जायेगा। वक्त बुरा,अच्छा होगा कट जायेगा कोई बढ़ेगा या कोई सिमट जायेगा। साध लो स्वयं को वरना यह भी बालू के रेत सा फिसल जायेगा। हर मुमकिन कोशिश कर ही डालो आया संकट भी जरूर टल जायेगा। यदि बढ़ती रही ऐसी और रंजिश आपस का प्रेम भी बिखर जायेगा। मुश्किल हालात  का  सामना करो वो भी  वक्त  के जैसे  कट  जायेगा। वक्त  दिखाता  अपनों  गैरों में फर्क अपना तो  वही है जो काम आयेगा। गैर अपना वक्त पर रुख दिखाता है वक्त तो  वक्त है यूं  निकल जाता है। हमें क्या हम  तुरुप के पत्ते जैसे हैं कोई भी आके उसको चल जाएगा।                     ------------------- रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली नरहीं बलिया उत्तर प्रदेश

गाँव के थाती-श्रृंखला-17

गाँव के थाती-श्रृंखला-17 -------------------------------- सावन-भादो के महीना बरसात से लबालब भरल रहल करे..हम बहुत पहिले के बात करतानी...हमार आंखों देखी जवन जियले बानी..हम एगो सीमांत कृषक के लड़िका बानी खेती बारी नामे खातिर बाटे लेकिन मजबूरी ई रहे कि मजदूरी वगैरह कर ना सकत रहनीं आ खेती से काम चलबे ना करे ओहि में घर-दुवार भी माटी के रहल बइठका के नाम पर एगो लमहर पलानी कुश-राढ़ी-पतलो ,उखी के झूर, हरेठा जवन रहर-अरहर के ढ़ांढ़ के टाटी..बांस, आम के गांछ के छटकल डाढ़ि के थुन्हीं-थेघुनी लगावल रहत रहे...कबो-कबो त अइसन होखे कि थुन्हीं लागले रहे आ मड़ई उलटि जाव कारन कि थुन्हीं के हिस्सा जमीन में गाड़ल रहे ओके भीतरे-भीतर देंवका महाराज लोग चट कर जात रहलन आ उपर से सोगहग नीमने लउकत रहे उहे दशा एहघरी के अदिमिन के बाटे लेकिन लोगन के कमी ना रहे तुरन्त एगो चलावा पर सैकड़ जुटि जासु..मड़ई हाथे-पाथे लागि के सब उठवा देत रहे...केहू गड़हा खने केहू जेंवर बरे केहू माटी निकाले ...माने बुझइबे ना करे कि केकर मड़ई हवुए। जब अस्हार के बुनि बाजे तबे सब लोग तइयारी शुरु कर देत रहल कि अब सावन-भादो आवे वाला बाटे ओकरा खातिर अ

कुछ तुहंई देखावऽ

कुछ तुहंई देखावऽ ------------------------ कुछ करहीं के बा तऽ कइके देखावऽ बहुत नीमन बाड़ऽ त आदत सुधारऽ बनल, बोलल छोड़ऽ सबके अपनावऽ बहुत ज्ञानी बाड़ऽ त दूसरो के सिखावऽ सबकेहू आपने हवुए जनि बिलगावऽ अदिमी के जात हवऽ अदिमिये रहऽ अगर कर सकल तऽ ज्ञान फइलावऽ सबकर खून लाले बा जनि अंझुरावऽ वाद-विवाद हो जावऽ ओके संझुरावऽ सबकर राहि एके बाऽ  जनि भटकावऽ  जिनिगी के का भरोसा प्यार बरसावऽ  केहू कुछवू कहत रहे  तूंहई निभावऽ          ------ रचना स्वरचित अउरी मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

शिक्षक बनना आसान नहीं

शिक्षक बनना आसान नहीं --------------------------------- शिक्षक होना आसान नहीं है जब कठिन समय हो तब भी वो कभी भी घबराता नहीं है सबकी राहें सुगम करता है अहर्निश साधक वह होता है निस्पृह भी वही हो सकता है सभी की उलाहना झेलता है स्वयं जलकर खरा होता है जाहिलों के बीच भी सीखता ज्ञान,अज्ञानी से भी लेता है सब जानके भी चुप रहता है वही विष्णु  गुप्त  चाणक्य है वह चन्द्रगुप्त बना सकता  है  समंदर सा  स्वभाव  रखता है उछलकूद  वह नहीं  करता है नौकरी पाना  ही शिक्षक नहीं ताउम्र  ज्ञान बोता काटता  है सहन करने की सीमा होता है वह समाज की जीवन रेखा है  मान अपमान से दूर साधक है वो योगी-मुनि एवं  संन्यासी है शिक्षक पद  पाना  आसान है एक शिक्षक  बनना कठिन है शिक्षक समाज की संजीवनी  संजीवनी को ढ़ूंढ़ना कठिन है              ---------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित  राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

आदमी से ढ़ेर कुकुरे पसन बा

आदमी से ढ़ेर कुकुरे पसन बा (व्यंग्य हऽ) --------------------------------------------------- आदमी के आदमी से कहां प्यार बा लोगन के कुकुरे जिये के आधार बा। आपन घर के लोगन से का मतलब कुकुरे खातिर त किनाइल कार बा। गाँव-समाज से कटल रहत बाड़न कुकुरे भाई-बिरादर आ सरकार बा। आदमी भुंकत-भोंकत थकि जइहें उनके के पूछला के का दरकार बा। कुकुर जी के मुंह देखल जरूरी बा घर में त मैडमे जी के सरकार बा। अपने नित्य क्रिया करत चाहे ना कुकुर जी के 4 बजे टहलान बा। सार,सरहज,साढ़ू के ढ़लल समय अब कुकुर जी के एकक्ष राज बा। सब रिश्ता-नाता कोना में धराइल कुकुरे अब सबकर माई-बाप बा। अगर गलती से कुकुर कहा गइल उनकर उहां से खेदाई भी तय बा। कुकुर मीट-मुर्गा खालें दूध पियसु डभ साबुन शैम्पू उनके लागत बा। अदिमी से त केहूके लगावे नइखे  कुकुरे एघरी अदिमी के सवांग बा।                  --------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश