बदरी लागल रही त बरिसबे करी

बदरी लागल रही त बरिसबे करी
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आकाश में बदरी जब लागल बा
कबो कहीं ना कहीं बरिसबे करी।

कवनो काम खातिर डंटल रहबऽ
आजु ना त काल्हू उ होखबे करी।

कब तक घरे छिपल रही जयद्रथ
सूरज ढ़लला पर त निकलबे करी।

बहुत जल्दी कृष्ण चक्र हटइहन
गांडीव के बाण से उ मरइबे करी।

अगर नारी के चीरहरण केहू करी
ओकर उ हाथ केहू उखङबे करी।

अगर कंस, जरासंध नियन करबऽ
कृष्ण के अवतार त लेबहीं के परी।

गलत करब , गलत के साथ देबऽ
तब कबो न कबो भोगहीं के परी।

जब तूं कवनो जघन्य पाप करबऽ
तोहरे लहू से पांचाली नहइबे करी।

अगर पापी के साथे खुलिके देबऽ
कर्ण अस विजय रथ फंसबे करी।

देख नारी का चिरहरण गूंग बनबऽ
अंग-प्रत्यंग बाणन से छेदइबे करी।

अगर सूतला में बाल हत्या करबऽ
घाव तोहरे ललाट पर रिसबे करी। 

अगर सवारथ में तूं धृतराष्ट्र बनबऽ
पछताइके अकेले  रोवहीं के परी। 

पाप के गगरी  लबालब भरि जाई
केतनो धन बल रहि कामे ना करी।

धन-बाहुबल पाके अति मत करऽ
नाहीं त समूल  नाश  होखबे करी।
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रचना स्वरचित अउरी मौलिक 
अप्रकाशित@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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