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Showing posts from July, 2023

आजा रे बदरिया अबो ले बरिस जा

आजा रे बदरिया अबो बरिस जा ---------------------------------------- केहू धाने के खेती कइले बा केहू मकई बोवले बा। केहू अगहनिया रहर बोवले बा केहू मूंग उरद बोवले बा। केहू के घरे में नोकरी वाला बा केहू कर्जा लिहले बा। केहूके घरे के खेत - खरिहान बा केहू पोतवू लिहले बा। केहू खेतिये के बल पर जियतबा केहूके इहे जियका बा। आवा अबहूं बरिस जा बदरिया सब आसरा धइले बा। जइसे खेतके फसलिया सूखता वइसे करेजा कुंहुंकतबा। धरती माई में खूब दरार फाटता वोहितरे करेजा टूटतबा। सब केहू उपर असमानवे ताकता लुकु लुकु करजा झांकतबा। सब किसनवन के अरजी सुनिके बदरी के बचनी भेजि दा। अब त गोड़वा में बेवाइ फाटतबा सब केहूवे माथा पिटतबा। केहू हड़परवुरी गावे केहू अर्घा भरता केहू सोमारिये भूखतबा। हमनी के हंईजा खांटी भोजपुरिया खेतिये से काम चलतबा। अबहियों ले सुनिला अरजी बदरिया सब केहू तोहरे के देखतबा। नाहीं त सुनिला मति जड़ होखा तूंहू शिव के अर्घा सब भरतबा। फाटताटे खेतवन में बड़ -बड़ दरार बदरी के राह सब देखतबा। का बैर साधेलू नइखू मानत बतिया मुंहें में ला

का कइलू ए बदरी!!!

ए बदरी का कइलू!! ----------------------- का कइलू ए बदरी तूंहूंवू का कइलू! बरिसे के रहे कहंवा कहंवा बरिस गइलू! का कइलू ए बदरी तुहवूं का कइलू! केनियो पानी पानी कहीं सुखार कइलू का कइलू ए बदरी तूंहूंवू ई का कइलू! केहू के तूं डूबवलू केहू के जारि दिहलू का कइलू ए बदरी तूंहूंवू ई का कइलू! कहीं फसले बहवलू कहीं धूरे उड़ववलू का कइलू ए बदरी तूंहूंवू का कइलू! तूहूं बड़े के चिन्हलू गरीबवो के भूलइलू का कइलू ए बदरी तूंहूंवू ई का कइलू! तोहरे सब केहू हवे काहें भेदभाव कइलू का कइलू ए बदरी तूंहूंवू ई का कइलू! जवन भइल त भइल तूहूं अइसन ना रहलू का कइलू ए बदरी तूंहूंवू ई का कइलू! किसान खुश हो जइहें अबो ले बरिस गइलू का कइलू ए बदरी अबो त बरिस जइतू! ---------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

देवों के देव महादेव जी!!!

देवों के देव महादेव हो!!! ------------------------------- जटवा में गंगा जी बहसु लिलारा चनरमा हो! जूड़ा केतना बड़ होइहें गंगा रहि गइली हो! जेकर संहतिया बिषहा किरा-बिच्छी प्रेत हो! जटा-जूटा टेढ़ मेढ़ बा लिलारा त्रिनेत्र हो! छाला मृगछाला सोहेला हथवा में त्रिशूल हो! जेकर आदि न अंत बाटे उहे हवुंए महादेव हो! रहेलन जहंवा शिव जी भूतवन के बसेड़ हो! शिव जी डमरू बजावसु खालें भांग-धतूर हो! कवनो ना भेदभाव करसु हवुंए अवघड़दानी हो! गरवा में किरवा शोभेला देखेला सब ओर हो! भैरो नन्दी रखवारी करसु उहे हवुंए महादेव हो! मांई गवुरा डेराइ गइली कइसे रहबि संग हो! शिवजी कहाले अड़भंगी होलें सबके सहाय हो! जब ना चले कवनो चारा सहारा देले महादेव हो! सृष्टि के साधक हवुंए शिव पी गइलें हलाहल हो! कंठ नीलकंठ महादेव जी करेलें पाप के नाश हो! जेकरा में सृष्टि समाहित हर हर महादेव हो! केतनो केहू बखान करेला महादेव जी अनन्त हो! ------------ रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

याद आवे लरिकइयां

याद आवे लरिकइयां -------------------------- बड़ा याद आवेला बचपन के दिनवा कागज के नइया झिझिरी खेलइया बड़ा याद आवेला बचपन के दिनवा उ पइसा चोरावल गायब दिन भरवा खूब खेलत रहिंजा चकवा चकइया अउरी हम तूं भइया झोरा पटरी लेइके खेलिंजा लटूइया तास,गोली अउरी चोरवा सिपहिया लड़िंजा अपने में तबो रहिंजा संगिया बड़ा याद आवेला बचपन के बतिया कानी-कुट्टी होईंजा फेर खेलिंजा संगिया अब नाहीं होखतबा पहिले अस बतिया मन पछिताला अब सुनिके प्यारी बतिया ------------ रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

हमार गंवुआ स्वर्ग लागे!!!

हमार गंवुआ स्वर्ग लागे ------------------------------- मोरे गंवुआ के पिपरा के छांव ए गोरी बड़ा नीक लागे! जहां नदिया किनारे छलके पांव भीजे बदनवा नीक लागे! जहां पनघट पर नवहन के दांव कनखी ताकल नीक लागे! जहंवा ना कवनो रुम ,बाथरूम माई के अंचरा नीक लागे! जहां होखेला आरती,मंगल गान समझा हमार उहे गांव लागे! जहंवा पेंड के गोरिया धागे बान्हे घरवट के पूजल नीक लागे! मोरे गंवुआ में भाई-बहन के प्यार नेह-छोह,दुलार नीक लागे! जहंवा कउवा उचेरलन ओरियान बहुरिया के उहो शुभ लागे! जहंवा गौरैया आंगन चले उतान उनके चांव-चांव नीक लागे! मैनी गइया पर बइठेला नन्हका सिंहिया झोरल नीक लागे! घूघ निकाल के झांकसु कनिया घुंघट में मुंहवा चान लागे! मोरे गंवुआ छम छम करत पांव छैगल के धुन नीक लागे! झांकेली बहुरानी जइसे चकोर भरि आंगना अंजोर लागे! जहंवा मुर्गा बोले त होखे बिहान कोयल के तान नीक लागे! जहां सब पहिरे पूरहर परिधान धरती के चादर धानी लागे! मोरे गंवुआ के सब ताल पोखर भरल सगरे पानी पानी लागे! जहां छान्हीं पर नेनुआ के डाढ़ लटकत लउकी नीक लागे! होखे बरसात त भरल रहे मड़ई सबकर हंसल चानी लागे! मोरे गंवुआ के संस्कृति संस्कार म

मैं चींखता रहा वह हंसता रहा!!!

मैं चींखता रहा वह हंसता रहा -------------------------------------- रो-रोकर तुझे मैं याद करता रहा हर किसी से फरियाद करता रहा। तुम मुझे अपने इशारे नचाते रहे मैं तेरे इशारे पर ही नाचता रहा। हम तो वफ़ा तेरे साथ करते रहे तेरी बनायी  राह पर  ही चलते रहे। लड़खड़ाते रहा,अश्क  छुपाता रहा दिल रोता रहा पर  गुनगुनाता रहा। ज़ख्म  बढ़ता रहा , मैं छुपाता  रहा कुछ न किया मैं कहर सहता  रहा। अब  जान गये  तेरी  वफ़ा  को हम  तेरी याद में क्यूं अश्क बहाता रहा। बेवफ़ाई में तेरी  अब  नहीं है  शक तेरी आदतों में  शुमार सताना रहा। मैं  भरोसे  पर भरोसा  करता गया और वह मुझे आहिस्ता रेतता रहा। मैं  दर्द  से  चींखता  चिल्लाता रहा  वह  था  कि  अट्टहास   करता रहा  हर शख्स को  अपना समझता था आस्तीन में रहकर वही डंसता रहा। क्या कहें  ज़माने को क्या हो गया अपना  बनकर ज़हर पिलाता रहा।            ----------------------- स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

आप ही अब मुझे हौसला दीजिए

आप ही अब मुझे हौसला दीजिए ----------------------------------------- मुझे इस तरह न सजा दीजिए पहलू में अपने छुपा  लीजिए! आखिर  मैंने   क्या   गुनाह  किया  कम से  कम   मुझे   बता  दीजिए! जिंदगी  में   तो  बहुत   मुश्किलें हैं हंस कर   मुझे    हौसला   दीजिए! तिरछी   नजरें    तो   चला  दीजिए मेरे  दर्दे  गम   को    बढ़ा   दीजिए! मेरी  तरफ   देख   मुस्कुरा  दीजिए मेरी उम्र को  यूं   ही  बढ़ा  दीजिए! एक  उफनती   हुई   छुद्र   नदी को  बड़े  समन्दर   में    मिला   दीजिए! एक प्यासे  को पानी  पिला दीजिए बेमौत मरने  से  उसे  बचा  लीजिए! कत्ल के  इल्जाम  तो  मत  लीजिए मुझे अपने से अब न  जुदा कीजिए! लेकिन जब  अपने  से जुदा कीजिए एकबार मुझसे से मशविरा लीजिए!                 -------------- स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्तर प्रदेश

एकबेर आजमा के तूं देखा

एकबेर आजमा के तूं देखा --------------------------------- एकबेर कुछ कहि के त देखा ना आ जाइब तब कहिहा। मनवे में तूं याद करिके देखा ना आ जाइब तब कहिहा। सपनवे में सोचि के तूं देखा ना आ जाइब तब कहिहा। झूठहियों आजमा के तूं देखा ना आ जाइब तब कहिहा। एकबेर नजरिए उठा के देखा ना आ जाइब तब कहिहा। एकबेर रिसियाइ के तूं देखा ना आ जाइब तब कहिहा। एकबेर कनखिये से तूं देखा ना आ जाइब तब कहिहा। एकबेर पलटिये के तूं देखा ना आ जाइब तब कहिहा। कवनो शिवाला जाइके देखा ना आ जाइब तब कहिहा। कबो मुस्कियाइ के भी देखा ना आ जाइब तब कहिहा। कबो अथेघा परिहा त देखा ना आ जाइब तब कहिहा। कबो खूख-पइया होके देखा ना आ जाइब तब कहिहा। जब सब तोहके छोड़ि दिही तब ना आइब तब कहिहा। एक ना सातो जनम तूं देखा ना दुख हरब तब कहिहा। जमाना खिलाफ करके देखा ना आ जाइब तब कहिहा। एक बेर जह़र भी देके देखा ना पी जाईब तब कहिहा। कबो सत्यवान बनिके देखा सावित्री ना बनीं त कहिहा। कुछ करे से पहिले तूं देखा साथ ना देहब तब कहिहा।             ----------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश

कुरसिये से पहचान उहे बनावे विद्वान

कुरसिये से पहचान उहे बनावे विद्वान ---------------------------------------------- कुरसिये से विद्या मिलेला,कुरसिये से मिलेला ज्ञान । कुरसिये पर जब बइठी,तभिये त मिलेला पहिचान ।। कुरसी के महिमा एतना बड़ ,कि बन जालन विद्वान । आसन बइठल अकेले उ व्यास के ,खालें पकवान ।। कुरसिये पकड़ि के राजा भइलन ,भइलन उ महान। उनकर लड़िका विदेशे पढ़े,बांटस भोजपुरिया ज्ञान।। असली कवि त झंख मारताड़न ,नकली बने विद्वान। ए सी में बइठिके लिखताड़ें,का जानसु गांव -गिरांव।। उमस,डाढ़ा-लेसल,भकुवाइल, भकसावन का जाने। जे कबो ना देखलें गांव-गिरांव,अउर खेत खरिहान।। असली भोजपुरी, भोजपुरियन के उहे जान सकेले। जे गांव में रहिके धूर-माटी, गरदा में कइले विहान।। दहदह पियर भइल बा जइसे ,होखे पियर  मेंढक। जियते बेमारी में बा उहे  समझेला अपने के महान।। त कुरसी के अइसन  परभाव देखेके मिलतबा अब। उ कहंवा समझा पावेला,का होखेला दुनिया जहान।।                           --------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तरप्रदेश

ई का कर रहल बा अदिमी

ई का कर रहल बाटे अदिमी??? ----------------------------------------- जेकरा तन से जनमल बाटे अदिमी ओही तन के बेपर्दा करता अदिमी। लजियो ना लागेला चीर के हरत जवन ना करेके उहे करता अदिमी। जेकरे ही गोदी में खेलला कूदला ओही गोदी के लतियावता अदिमी। बच्चा ,बूढ़,नारी के बचावे के चाहीं ओही पर अत्याचार करता अदिमी। अपन जाति-बिरादरी के ज़हर काहें बेटी-बहिन पर ही उतारता अदिमी। का कहल जाव आधुनिक युग में इवेंट मैनेजमेंट इहे पढ़ता अदिमी। 2-3-4-5 जी अब त चल रहल बा चांद पर अब पहुंच गईल अदिमी। आदिम युग में भी अइसन ना होई जवन कुकृत्य करता अब आदिमी। मानवता  के  शर्मसार कइल जाता भींड़  में दु:शासन बनतबा अदिमी। लड़हीं  के  बाटे  त खूब लड़ि लिहा एहिजा  जाति-धर्म खातिर अदिमी। तनिको लाज नइखे  लागत इनका स्त्री के निर्वस्त्र काहें करता अदिमी। अब लोकतंत्र में नियम बनेके चाहीं केहू स्त्री पर जुलुम ना करे अदिमी। कहल गईल बा हमनी के देशवा में जहंवा स्त्री पूजाली रहेली लक्षिमी। अब अइसन  समय आ  गईल बाटे लक्षिमी के  नीलाम करता अदिमी। इहे  सीखावल  गइल  बा एहिजुगा निरीह स्त्री के निर्वस्त्र करी अदिमी। अपने में

स्वयं लड़ो, स्त्री का चीरहरण क्यों???

स्वयं लड़ो,स्त्री का चीरहरण क्यों??? --------------------------------------------- पहले एक ही महाभारत हुआ था आज तो हर रोज ही महाभारत है। पहले तो एक ही धृतराष्ट्र हुए थे आज तो हर जगह धृतराष्ट्र खड़ा है। महाभारत में एक ही शकुनी थे आज शकुनी की बड़ी संख्या है। धृष्ट दुर्योधन भी तो एक ही था आज के तो सारा दुर्योधन धृष्ट है। महाभारत में जयद्रथ ही एक था आज जयद्रथों  की  पूरी फौज है। भीष्म  का  काल एक शिखंडी था आज तो  शिखंडियों  की लिस्ट है। महाभारत  में दु:शासन एक ही था आज तो  दु:शासनों की भरमार है। उन दिनों चीरहरण  किया गया था चीर की रक्षा  करने  वाले कृष्ण हैं‌ आज तो  ऐसा  लगता है क्या कहें कृष्ण की जगह  सब  दु:शासन है। एक नहीं  दो नहीं  बहुत  हो रहा है लगता नहीं  कोई भी अब कृष्ण है। प्रश्न  सीधा  है..झगड़ा  कोई भी हो भुगतती  क्यों  सिर्फ एक स्त्री ही है। चाहे धर्म, जाति ,बिरादरी हेतु लड़ो निर्वस्त्र  होती  हर  जगह स्त्री ही है। शर्म करो  पुरुषों ,यही  मर्दानगी है स्त्री,बच्चे, बूढ़े,पर ज़ुल्म मनाही है। फिर चाहे  किसी भी जगह क्यों है ऐसा कृत्य  पुरुष,स्त्री पर

भाग्य की लकीरें

भाग्य की लकीरें ---------------------- कहते हैं बहुत लोग किस्मत ही सब है हाथों की लकीरें ही बताती हैं भविष्य किसे कहां जाना है किसे कहां रहना है किसे दुख भोगना है किसे मजे करना है फिर मैंने भी दिखाई अपनी भी लकीरें ज्योतिषी बोल पड़े तेरी लकीरें नहीं हैं मैंने कहा सही बात घिस गई हैं काम से तो क्या मैं रह गया पूरा वंचित भाग्य से हम भी सोचने लगे जो ज्यादे मेहनत करे उसकी लकीरें नहीं है जो नहीं करे कुछ भी सही मायने में वही लकीरों का मालिक वही तो भाग्यशाली है हम तो ठहरे कामगार हमें तो फुर्सत ही नहीं ये सब बातें करने की बस कोल्हू के बैल जैसे सिर्फ चलना जानते हैं हमारी किस्मत में तो दो जून की नून रोटी है काम करते हैं मन से लुढ़क जाते आराम से बिना लकीर लिए हम भी कम भाग्यशाली नहीं हैं उन अमीरों जैसे नहीं हैं ये मत खाओ वो मत खाओ एम्स में दिखाओ और तो और लाइलाज है यह रोग फिर होमियो, आयुर्वेद में थक हार कर चले जाओ हमारी ग़रीबी ही अमीरी है वो अमीरी मुफलिसी है फिर हम ठीक हैं क्योंकि भाग्य की लकीरें नहीं हमें ----------- -------राम बहादुर राय---

मेरी मंजिल तो कहीं और है

मेरी मंजिल तो कहीं और है ------------------------------------ न तो ईर्ष्या है नहीं कोई होड़ है मंजिल मेरी तो कहीं और है बहाना मिल गया है ये ठिकाना पर अफसाना तो कोई और है शमा पर जलते दिखते परवाने मगर निशाना तो कोई और है अच्छी थीं शमशीरें दिखती थीं अब तो ईर्ष्या भी रहती मौन है नहीं पता चलता अपना कौन है मुझे न ईर्ष्या है न कोई होड़ है अभी चुपचाप काम में लगा हूं मेरी तो मंजिल कहीं और है मत परेशान हो कुछ समय ठहर अभी मेरी मुफलिसी का दौर है आयेगा मेरा भी वक़्त एक दिन सोचोगे तुम कि ये कोई और है -_----------- स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित राम बहादुर राय भरौली ,बलिया, उत्तर प्रदेश

मनोज भावुक होना आसान नहीं होता

मनोज भावुक होना आसान नहीं:- ----------------------------------------- मैं भी सन् 2001 से ही हिन्दी और भोजपुरी दोनों भाषाओं में लिख रहा हूं जिसकी वजह मेरा सिविल सेवा में चयन होने से वंचित रह जाना हो सकता है.. क्योंकि मेरे मुख्य परीक्षा का विषय इतिहास और हिन्दी रहा तो भारतीय इतिहास हो या विश्व इतिहास हो लगभग कंठस्थ ही था और हिन्दी तो बहुत पसंदीदा विषय है मेरा जबकि साइंस बैकग्राउंड से रहा हूं यह तो बाद में इन विषयों पर आया।। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे ही घर प्रख्यात साहित्यकार डॉ श्री विवेकी राय जी का ननिहाल है और यहीं मेरे घर जन्म भी हुआ था तो छोटे थे तभी से साहित्यकार लोगों का सेवा करने का अवसर मिलता रहा....बड़ी लम्बी कहानी है साहित्य क्षेत्र की तरफ झुकाव मेरे मन-मस्तिष्क में आदरणीय डॉ श्री नामवर सिंह जी से मिलने पर प्रस्फुटित हुआ उन्होंने आशीर्वाद भी दिया डॉ श्री विवेकी राय जी के माध्यम से तो कुछ लिखना शुरू कर दिया लिखता रहा लेकिन उन दिनों मोजो (मोबाइल जर्नलिज्म) तकनीकी का इतना प्रादुर्भाव नहीं हुआ था... खैर मैंने पत्रकारिता एवं जनसंचार से स्नातकोत्तर भी कर लिया,फिर मानवाधिकार

अबहियों से बरिसू रे बदरिया!!!

अबहियों से बरिसू रे बदरिया !!! --------------------------------------- आवा - आवा हो बदरिया तुहंवू भुवरको। बिया - बालि सूखतबाटे करेजो टूटत बाटे। बड़ा धोखमार बाड़ी इ त कारी रे बदरिया। रोजे - रोजे लउकत बाड़ी घर के उपरिया। हड़ - हड़, गड़ - गड़ कइके  ना बरिसे बदरिया। ताल-तलइया सूखि  गइले सूझे ना उपइया।  घाघ- घाघिन से पूछतबाड़े किसनवा भइया। खेती बारी कुछ नाहीं  होइ कपारे हाथ धके बैठल। का करीं कइसे होइ अब त  बेटिया के बिदइया। अइसन अचरज देखतानी सावन में धूर उड़इया। सवतिन भइली कारी बदरी भागि जो दोसरो ठइयां। आ जा हो भुवरको तोहके एगो चुनरी चढ़ाउब। धानवा के  खेतवा  में बाटे फाटल दररिया। आ जा रहे भुवरको हमार सुनिके अरजिया। नेह छोह लागल बाटे तोसे दिल मति तुरिहा। ठुमुकि -ठुमुकि के भुवरको  खेतवा में बरिसिहा पशु-पक्षी,दादुर रोवताड़न बुझाइहा पियसिया। बाटे किसनवा तोहरे असरा देखताड़न उपरिया। छाक -छकवलस  करिकी सवतिन बदरिया। हमार कसम आजा बहिनी भुवरको रे बदरिया।  हमार कसम आ जा भुवरको.... बचावा अपनो इजतिया।                  -------- रचना स्वरचित मौलिक अउरी अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित। राम बहादु

मंगल पांडे की जयंती 19/07/2023 को

शेर-ए-बलिया मंगल पांडे जी की जयंती आज 19/07/23 को ------------------------------------------------------------------------------ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बलिया की माटी में जन्मे सन् 1857 की क्रान्ति के नायक मंगल पांडेय जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन !!! वीरों की धरती जवानों का देश यही है बाग़ी बलिया उत्तरप्रदेश ।। ------------ देश की माटी देश की आन जिला बलिया देश की शान! बलिया के होते सपूत महान मंगल पांडे का नाम महान! चित्तू पांडेय -42 के शाहंशाह चन्द्रशेखर बलिया की शान! नीरज शेखर सा नहीं इंसान हजारी प्रसाद व अमरकांत! भागवत शरण , विवेकी राय मेरा भी है बलिया जन्मस्थान! चतुरी चाचा रहते थे बेसुध झड़प जी होते थे  उनके प्रान! कितनों का नाम  लिखूं यहां पे भगवती जी एक नयी पहचान! शेरे  हिन्द  मंगल  पाण्डेय  का जन्म  हुआ  आज ही  के दिन! बैरकपुर में  तोड़  दिया आपने फिरंगियों  की आन बान शान! किया अपना  प्राण  न्यौछावर नहीं  झुका  बलियावी  महान! बागी बलिया है शेरों  की खान हैं यहां एक से एक वीर महान! यहीं  तो  है  दरदर   मुनि और हमारे  भृगु  मुनि  की

घर की लक्ष्मी बेटियां

घर की लक्ष्मी -बेटियां-- ---------------------------- मेरे घर आने की आहट वह पहले जान लेती है वह हंसती है इतराती है हर वक्त मेरे पास रहती है। मेरी आंखों को देखकर सब कुछ समझ जाती है बहुत ही सुन्दर लगती है जब मेरा लाया पहनती है। गपशप करना आदत में है वह चिकनी बातें करती है सबसे मिल जुल रहती है पूरे मोहल्ले  की  नानी है। जहां कोई दुखी इन्सान हो वह  झट से  पहुंच जाती है इतनी छोटी  होकर भी वह बढ़िया पकवान बनाती है। मैं काम करके वापस आऊं पहले पानी लेकर आती हैं  मेरे सोने पर सिर दबाती हैं  मुझे दुखी नहीं देख पाती हैं। उनकी शादी की बात होती  वे मुंह बनाके भाग जाती हैं  कहती ,क्यों फर्क करते हो क्या मैं काम नहीं आती हूं ?? क्यों भगाने पर लगे हो पापा क्या मैं अब बोझ बन बैठी हूं जो कुछ भी लड़का करता है मैं भी तो ज्यादे कर पाती हूं। कहने को  लक्ष्मी कहते हो क्या लक्ष्मी भगायी जाती हैं पाल-पोस कर  बड़ा किया  तो क्यों की जाती परायी हूं।                 ------------ राम बहादुर राय  भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश 9102331513

भोला बसेलन बड़ी दूर

भोला बसेलन बड़ी दूर!! ------------------------------ भोला-भाला,भोला बसेलन गंवुआं-शहरिया से दूर! दानी-महादानी,अवघडदानी सबकर करेलें दुखवा दूर! पहाड-झाड़ झंखाड़ में रहसु भूत-पिशाच रहें भरपूर! जटा-जूट पर सोहेले चन्द्रमा चमक ललाट जइसे नूर! माथे बइठल बाड़ी गंगा जी सबकर पाप करेली दूर! सांप-बिच्छू,प्रेत संगे रहेलेन बंसहा बैल रहेले जरुर! नन्दी की सवारी शिव करेलें भुजंगन के संग भरपूर! भस्म-भभूत,छाल-मृगछाल नीलकंठ देव में मशहूर! आदि-अन्त, महादेव अनन्त ज़हर पियले बिन कसूर! धरें ना ध्यान भक्त के वरदान देव-दानव के देलें जरुर! ज्ञान के भंडार, शिव नटराज अभय दानी हवें मशहूर! गौरापति त्यागी, त्रिशूलधारी डमरू बजावेलें जरूर! नन्दी-भैरो शिव के साथ रहें दीनन के करें दुख दूर! ---------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

हम तो दिल साफ रखते हैं

हम तो दिल साफ रखते हैं ------------------------------- भरमार है ऐसे लोगों की जो जुबां पे शहद रखते हैं। बात बहुत अच्छे करते हैं लेकिन साथ जहर रखते हैं। कोरोना से तो बच सकते हैं उससे आगे असर रखते हैं। हम जैसों की हस्ती क्या है इनकी नजर में  खटकते हैं। जहां मिलेंगे जन्नत लगता है पर वैसे कदापि नहीं होते हैं। ईश्वर ही बचाये ऐसे लोगों से जो पीठ पीछे बुराई करते हैं। बातों के तो शाहंशाह होते हैं किसी काम  के नहीं  होते हैं। इनके जैसे के साथ रहने से  अकेला रहें अच्छा मानते हैं। दिखावे में  क्या रखा  साहब हम तो  दिल  साफ रखते हैं।                 -----------      --------@राम बहादुर राय------- भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश

चलिंजा शिव के नगरिया!!!

चलिंजा शिव के नगरिया -------------------------------- अभियो ले चला हो संवरिया कंन्हिया पर लेइके कंवरिया! सावन-सावन दूईगो लागल भोले बाबा संग प्रीत लागल! बोल बम बाटे सगरो बाजल भोरे भक्तन के मेला लागल! अभियो ले चला हो संवरिया भोला बोलावताड़न दुवरिया! रिम-झिम बरिसेले बदरिया बेलपत्र बिहंसे चारो ओरिया! भांग-धतूर से भरल नगरिया जल लेके चला अब डगरिया! हर -हर महादेव गूंजे लागल घरे रहा चाहे कवनो ओरिया! अभियो ले चला हो संवरिया कंन्हिया पर लेइके कंवरिया! ‌ हर साल रहे चारे सोमरिया अबकी आठ गो संविरिया! अगर तूंहूंव सावन में जइबा भोले महादेव के नगरिया! होइ जाई मंशा पूरन तोहरे खोलि दिहें अपन नजरिया! अबो ले धियान धरा तुहवूं जिनिगी बनि जाई संवरिया! ना चाहीं सोना-चानी हमके मति गढ़इहा हमके नथुनिया! कुछवू कइके कांवर उठावा चलिंजा शिव के सरनियां! बाबा अवघड़ दानी हंवुवन सबकर हरेलन विपतिया! सावन ह शिवके शुभ दिनवा चलिंजा शिव के नगरिया! जलवा भरिके चलल जाई हम तैयार बानी संवरिया! ---------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्

अब मैं क्या देखूं???

अब मैं क्या देखूं?? --_---_------_------- आंखों में तेरी छलकता कहर देखूं या फिर बैशाखी पर टिका शहर देखूं! एक सुसज्जित रौशनी के जलसे में छुपे हुए अब इस अंधेरे का डर देखूं! अंदाजा मरने का उनको था लेकिन फिर भी इसी अंदाज में एक जिंदगी देखूं! भूख की कब्र में कलम इल्म खोजती है अब देखूं तब देखूं या अकेला हर पहर देखूं! ------------ @राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्तर प्रदेश

तुझे ही चलना पड़ेगा!!!

तुझे ही चलना पड़ेगा!!! -------------------------- उठ!जाग!चलना पड़ेगा कब तक लड़खड़ाएगा तुझे चलना ही पड़ेगा। उठ!जाग!चलना पड़ेगा कब तक सहारा खोजोगे तुझे ही संभलना पड़ेगा कौन किसका है यहां पर सबको अपनी ही पड़ी है तारीख बदलना पड़ेगा उठ!जाग!चलना पड़ेगा बनकर तूफान छलकना तुमको उबलना ही पड़ेगा उठ!जाग!चलना पड़ेगा जंजीरों में बांधते हैं लोग जंजीरों को तोड़ना पड़ेगा उठ!जाग!चलना पड़ेगा तेरी अज़मत से डरते हैं ठोकरों से उलझना पड़ेगा उठ!जाग!चलना पड़ेगा जो कुंडली मारकर बैठे हैं उन नागों से बचना पड़ेगा उठ!जाग!चलना पड़ेगा तुझे कृष्ण अगर बनना है पूतनों से लड़ना ही पड़ेगा उठ!जाग!चलना पड़ेगा तुझे कोई नहीं बढ़ायेगा अमरबेल सा चढ़ना पड़ेगा उठ!चल!चलना पड़ेगा शकुनी मामा से बचना है पांसों को तोड़ना पड़ेगा उठ!चल!चलना पड़ेगा कौन चाहेगा आगे बढ़ो हर फ़न कुचलना पड़ेगा ------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

हर हर महादेव

मुझे ऐसे न देखा करो... ----------------------------- मुझे तुम ऐसे न देखा करो तेरी नज़रों से नज़रें मिलतीं हर लम्हा स्वर्ग हो जाता है भूल जाता हूं कहां जाना है धूप-छांव एक हो जाता है पांव भी तो ठिठक जाता है जैसे लगता है मिथक था अंधेरा भी रौशन हो जाता है चाहे आसमां से शोले बरसे वह भी चांद नजर आता है जैसे ही नजरें हट जाती हैं भौंहें निष्ठुर खड़ी हो जाती हैं मगर इस दिल का क्या करें लाचार कहां समझ पाता है प्यार की बात समझता है देखके ही जुगनू हो जाता है तुम्हें लगता है तेरी नजर है खुशी से उदास हो जाता है पलक भी कहां झपकती है सब अपलक सा हो जाता है अगर सच्चा प्यार हमसे है पलकों में रख बचा लेना है        ------------ रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

मुझे ऐसे न देखा करो

मुझे ऐसे न देखा करो... ----------------------------- मुझे तुम ऐसे न देखा करो तेरी नज़रों से नज़रें मिलतीं हर लम्हा स्वर्ग हो जाता है भूल जाता हूं कहां जाना है धूप-छांव एक हो जाता है पांव भी तो ठिठक जाता है जैसे लगता है मिथक था अंधेरा भी रौशन हो जाता है चाहे आसमां से शोले बरसे वह भी चांद नजर आता है जैसे ही नजरें हट जाती हैं भौंहें निष्ठुर खड़ी हो जाती हैं मगर इस दिल का क्या करें लाचार कहां समझ पाता है प्यार की बात समझता है देखके ही जुगनू हो जाता है तुम्हें लगता है तेरी नजर है खुशी से उदास हो जाता है पलक भी कहां झपकती है सब अपलक सा हो जाता है अगर सच्चा प्यार हमसे है पलकों में रख बचा लेना है  ------------ रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

जनकवि भिखारी ठाकुर की पुण्य तिथि 10 जुलाई

भोजपुरी के भीष्म पितामह अउरी शेक्सपियर भिखारी ठाकुर (18/12/1887 से 10/07/1971):---सादर नमन बा!!! जब तक ई सूरज चांद रही तब तक धरती आसमान रही। भारत देश के सम्मान भी रही अउरी हमन के भोजपुरी भी रही। आन, मान , शान  व   सम्मान रही भोजपुरी   के  जब  केहू  बात करी। भोजपुरी     के     भीष्म    पितामह  "भिखारी  ठाकुर"  जी  के नाम रही। हमनी के  दिल  में  त   सम्मान  रही ना  केहू  अइसन बा  आ ना त  होई। उनकरा याद  में त  भोजपुरिया रोईं भोजपुरिये   में हम  जागीं  आ सोईं। जे  भोजपुरिया  उनके ना  जनलस। उहो  त  बहुते  बड़ अभागा  ही होई केहू  केतनो  भी   देखावा  कर लेई केतनो झूठ के  मोटरिये पहिन लेव। भिखारी  ठाकुर   त कईसहूं ना होई उनके राह चले उहे भोजपुरिया होई।                --------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय  भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश, 9102331513 भोजपुरी के भीष्म पितामह के सादर नमन बा🙏🙏🙏🙏

उड़ान तय करेगा आसमां किसका है

उड़ान तय करेगा आसमां किसका है --------------------------------------------- वसीयतें अपने नाम करवा लो क्या फ़र्क पड़ता है?? यह तो उड़ान से ही तय होगा कि आसमां किसका है। किसी की प्रतिभा से क्यों डरना ये ईश्वर की कृपा है। धन-दौलत से सब कुछ नहीं होता जज्बा,जूनून चाहिए। समंदर में रहकर तरसते पानी को छोटे पात्र काम आते हैं जो चलता है वह जलता, तपता है वही चमकता भी है। महलों में बैठ,कारों में चलने वाले क्या जाने साहित्य ?? पैसों और शोहरत के बल पर तो सिर्फ मंच पा सकते हैं। वसीयतें प्रतिभा बिगाड़ सकती हैं निखार नहीं सकती हैं। बड़े ओहदे वाले शोहदों का क्या? किसी को ख़रीद लेते हैं। चाहे कितना भी ऐश कर सकते हैं रंगीला शाह ही बनते हैं। मंडेला,गांधी सुभाष, भगत सिंह.... वसीयतें नहीं बनाती हैं। हवा के रुख के विरुद्ध जो चला है इतिहास उसी का बना है। वरना दिनकर,नामवर जी को देखो है उनके घर कोई वैसा?? नहीं हो सकता धन दौलत के बल खानों में ही हीरे होते हैं। वसीयतों के ढेर पर मैडम क्यूरी तो कदापि न हो सकते हैं। रेडियम जैसी चमक पाने के लिए चमक से दूर होना होता है वसीयतें आराम की जिंदगी देती ह

एक सच्ची प्रेम कहानी

वह एकदम सीधा-साधा गांव से कोरा लड़का था जो अभी-अभी कक्षा बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी पास करके शहर में आगे की पढ़ाई के लिए आया हुआ था।उन दिनों प्रथम श्रेणी पास करना बहुत मायने रखता था उसको सरसरी निगाह से सर्व समाज देखता था। जब शहर में आया तो मेरिट के आधार पर एडमिशन होता था सो उसका नाम लिखा गया लेकिन हास्टल नहीं मिल पाया शायद कुछ अधिक मेरिट वाले लड़कों को मिल गया था लिहाजा अब जगह नहीं बची थी तो उसे डेलीगेसी में कमरा लेना पड़ा जिसमें कुछ गांव-जवार के लड़कों ने सहयोग कर दिया तो सब व्यवस्था करके रहने लगा। अब उसने देखा कि शहर में आने जाने का किराया बहुत लगता है तो वह गांव से अपनी साइकिल को लेकर आया और सारी व्यवस्था तो कर ही चुका था लेकिन सबसे दिक्कत थी खाना बनाने और बर्तन धोने की वह भी धीरे-धीरे सीख ही गया, कुछ मित्र भी आस पास में बन ही गये तो वह डेली सुबह, किसी दूकान पर जाता जलेबी-दही नास्ते में कर लेता,ही तैयार होकर अपनी धन्नो साइकिल पर बैठाकर बड़े ही इत्मीनान से पढ़ने के लिए निकल लेता और सीधे विश्वविद्यालय पहुंच कर क्लास में जाकर लेक्चर सुनता और उसे लिखता फिर अगला फिर अगल

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी को सादर नमन

राम बहादुर राय :-भरौली ( बलिया):-बागी बलिया के महान सपूत को पुण्य तिथि पर सादर नमन है...... बागी बलिया है इस देश की शान पैदा होते रहते हैं यहां वीर महान। जब देश में हो रहा था घमासान युवा तुर्क ने तब संभाली कमान। सब दुबके थे घरों में इमरजेंसी में युवा तुर्क ने किया खुला विरोध। कभी नहीं सौदा किया किसी से इन्होंने पद हेतु नहीं बेचा सम्मान मैं चमन में जहां भी रहूं मेरा... हक़ है तो सिर्फ़ फ़सले बहार पर। कुछ वक्त कांटों का ताज मिला फिर भी ज्वलंत मुद्दा सुलझाया। हवा के रुख पर तो सब चलते हैं विपरीत चलके आइना दिखाया। आरक्षण की लपटों में घिरे थे हम पी.एम. बनते ही मुद्दा सुलझाया। बागी बलिया का मस्तक ऊंचा था कुर्सी छोड़ फिर से बढ़ाया मान। जाति -धर्म का भेद नहीं करते थे छोटे-बड़े सबके लिए एकसमान। अन्ततः पर धाम को गया सपूत अपने परिवार का नहीं रखा ध्यान। अब तो उनका अक्स दिखने लगा श्री नीरज जी सुलझे हुए इन्सान। श्री चन्द्रशेखर जी के बाद आस है नीरज जी अब हैं बलिया की शान। ------------ रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित भरौली, बलिय

प्यार के लिए हर बात

प्यार लिए हर बात ---------------------- एक मधुर प्यार लिए हर बात में चारों तरफ बैठे शिकारी घात में आने वाली पीढ़ी को हम दे चुके इस जहां की मुश्किलें सौगात में बादलों का रंग रूप देखने चले छाता लेकर हम भरी बरसात में जिंदा हैं आप ,गनीमत समझिये क्या कम है आज के हालात में चकाचौंध में शहर को क्या पता फर्क भी होता है इस दिन-रात में हम शरीफों की कीमत नहीं अब छोड़िए क्या रखा है जज्बात में ! राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

क्या लेकर आए हो

क्या लेकर आए हो ------------------------ हम तो अदब से सिर झुकाए हुए थे। वो समझते थे कि हम डर खाये हुए हैं। हमारी फितरत है कि हम बनते नहीं हैं। मेरे पास क्या कुछ है हम कहते भी नहीं हैं। क्या लेकर आये हो कुछ ले भी जाओगे? जिस बात पर इतराते सबके पास पाओगे। जमीं पे आके देखो सब भूल जाओगे। दरिया भी नहीं हो समंदर समझ पाओगे?? इन्सान को समझो नहीं तो पछताओगे। क्या लेकर आये हो कुछ लेकर जाओगे?? ------------ राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

बीबी साली दोनों खड़ी...

बीबी साली दोनों खड़ी....... ------------------------------- बीबी साली दोनों खड़ी तो बीबी को लागो पांय।। हर वक्त बीबी रहे खड़ी साली कभी-कभी आय।। बीबी रहती सर पर खड़ी उससे बचके कहां जांय। साली बहुत रहेंगी खड़ी जब बीबी खुश हो जाय। करवानी जब खाट खड़ी तभी साली के लगो पांय। बीबी किसी बात पर अड़ी फिर तो कोई नहीं उपाय। बीबी जब सामने हो खड़ी प्रभु जी भी बोल ना पाय।। ---------- (हास-परिहास) वाली रचना दिल पर नइखे लेबेके!!! @राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

गुटनिरपेक्ष भारत तटस्थ भारत

विश्व की राजनीति में भारत या गुटनिरपेक्ष भारत या तटस्थ भारत 1-प्रस्तावना:- ------------------ ऐसा माना जाता है कि भारत विश्व गुरु रहा है या यूं समझ लीजिए कि जब लोग कुछ सीख रहे थे तब भारत समूचे विश्व में सबको नया सबेरा दिखा रहा था फलत: विश्व की राजनीति में भारत विशेष महत्व रखता है वह भी अपनी तटस्थ राजनीति की वजह से।भारत सदियों से समूचे विश्व में शांति का समर्थन किया है और आज भी उसी जगह पर खड़ा है.... "सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:" जब भी विश्व स्तर या किसी भी स्तर की बात करते हैं तो सदैव शांति एवं सदभावना की बात ही नहीं करता है बल्कि समय-समय पर अनेक महापुरुषों के द्वारा शांति एवं भाईचारे की भावना को प्रश्रय दिया है तथा प्रचार-प्रसार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लिया है यहां तक की समूचे विश्व में सबके लिए मंगल कामना भी किया है यहां तक यहां के साधु-संतों ने मुनियों ने भी सबके सुखी होने की कामना की है। सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मां कश्चिद् दु:ख भागभवेत हमारे देश का सदियों का इतिहास है सनातनी परंपरा रही है कि यहां सदैव मानवतावादी दृष

तब अउरी मेहरी के पढावा

तब अउरी खूबे मेहरी के पढ़ावा!!! ---------------------------------------- अपने कमइला से सुख नाहीं पवला जिनिगी में संतोष नाहीं तूंहूं कइला। सब कुछ तेजिके मेहरारू पढ़वला भाई-बहिनी के तूंहूंव ना पढ़ा पइला। अपनहूं मोटिया- मरकिन पहिनला करजा पर अउरी करजा तूं लिहला। गांव-जवार छोड़िका प्रयाग में रहला मेहरारू के पढ़ाके S.D.M बनइला। रहला सफाई कर्मचारी नीके कइला एतना नेह-छोह तूं उनका से कइला। बदला ओकरा बताव का तूंहूंवू पवला सोशल मीडिया में वायरल तूं भइला। अब रोई-रोई बुरा हाल अपन कइला काहें के मेहरी के पढ़ाई पर उतरइला। दुनिया के सामने का ई का तूं कइला अपन मेहरी-बच्चन से भी दूर भइला। अब तूं फेरू मनोज तिवारी के गावल लागल बा शहर के हवा फेरू सुनइला। कवनो जतन अभियो से जरुर कर ला काहें ना सरकार से गोहार तूं लगइला। बड़का अधिकारी बनावे में का पवला कुछ इज्जत-आबरू रहे उहो गंवइला। ----------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

तरक्की की इबारत लिखी तो

तरक्की की इबारत लिखी तो....... -------------------------------------- जब किसी ने अपने लिए तरक्की की इबारत लिखी! हर रिश्ते नातों ने रातों में छुपकर ललाटों को पोछी! टूटे हुए टटू बनके बैठे हैं पर भीतर नफरत है चोखी! कुछ करने की क्षमता नहीं पर उनमें जलन है अनोखी! बुड्ढे लंगड़े शेर जैसी सोच है चलते चालें वे सोची समझी! कुल खानदान पर मत जाना ऊंचे खानदान पर सोच ओछी! चिड़िया ने घोंसले की कही उसने जाकर फौरन नोच दी! जब जब कोई सफल होता है मुंह फुलाते जैसे फूफा-फूफी! दूसरे लोग शाबाशी देते फिरते वो अपनी बघारते रहते शेखी! हमने कहावत भी सुनी थी पर स्वयं भी अपने ही आंखों देखी! जीवन में जो सफल न हो सके पर तेवर इनके कम कहां देखी! सफल होने का मतलब हो गया रिश्तों में बढ़ती कड़वाहट देखी! सब लोग खुश होते रहे हों पर अपनों में घुटन की बू ही देखी! सफल होकर आगे भी जाना है चुपचाप चलो मत बघारो शेखी! --------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।‌। --------राम बहादुर राय----------- भरौली न