मनोज भावुक होना आसान नहीं होता

मनोज भावुक होना आसान नहीं:-
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मैं भी सन् 2001 से ही हिन्दी और भोजपुरी दोनों भाषाओं में लिख रहा हूं जिसकी वजह मेरा सिविल सेवा में चयन होने से वंचित रह जाना हो सकता है.. क्योंकि मेरे मुख्य परीक्षा का विषय इतिहास और हिन्दी रहा तो भारतीय इतिहास हो या विश्व इतिहास हो लगभग कंठस्थ ही था और हिन्दी तो बहुत पसंदीदा विषय है मेरा जबकि साइंस बैकग्राउंड से रहा हूं यह तो बाद में इन विषयों पर आया।।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे ही घर प्रख्यात साहित्यकार डॉ श्री विवेकी राय जी का ननिहाल है और यहीं मेरे घर जन्म भी हुआ था तो छोटे थे तभी से साहित्यकार लोगों का सेवा करने का अवसर मिलता रहा....बड़ी लम्बी कहानी है साहित्य क्षेत्र की तरफ झुकाव मेरे मन-मस्तिष्क में आदरणीय डॉ श्री नामवर सिंह जी से मिलने पर प्रस्फुटित हुआ उन्होंने आशीर्वाद भी दिया डॉ श्री विवेकी राय जी के माध्यम से तो कुछ लिखना शुरू कर दिया लिखता रहा लेकिन उन दिनों मोजो (मोबाइल जर्नलिज्म) तकनीकी का इतना प्रादुर्भाव नहीं हुआ था... खैर मैंने पत्रकारिता एवं जनसंचार से स्नातकोत्तर भी कर लिया,फिर मानवाधिकार एवं कर्तव्य,जबकि हिन्दी-इतिहास में पहले से ही स्नातकोत्तर था।
अभी मैं लिखने का ककहरा सीखने की कोशिश कर रहा हूं और इसी सीखने में हिन्दी में चार काव्य संग्रह यथा 1-अनकही संवेदनाएं, 2-जीवन के विविध रंग,3- धरती के परिंदे,4-आदमी के कई रंग तथा भोजपुरी में दो काव्य संग्रह 1-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार,2-अब गंवुओं में शहर आ गईल।।
अब ज्यादे न लिखते हुए सीधे शीर्षक पर आते हैं,जैसा कि आदरणीय श्री मनोज भावुक सर के बारे में पहले से ही जानता था लेकिन मैं जब गाजीपुर में हमारे प्रिय अनुज द्वय लव-कुश तिवारी जो विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं, मिलने पहुंचा तो दोनों भाईयों ने एक साथ श्री मनोज भावुक सर की जमकर तारीफ की फिर प्रकाश प्रियांशु जी, कुमार अजय सिंह जी और भोजपुरी के युवा विद्वान श्री राणा अवधूत कुमार जी ने भी खूब तारीफ की, हालांकि मैं भावुक सर से बात भी किया हूं अपनी दो भोजपुरी की पुस्तकें भी भेज चुका हूं, अब तो लखनऊ में फेमिना फिल्म फेयर से पुरस्कृत भी हो चुके हैं तब भी मैं फोन पर बधाई दिया हूं।
इसी दौरान जब आदरणीय श्री स्यंदन सुमन सर द्वारा श्री मनोज भावुक जी के बारे में लिखा गया आलेख पढ़ा तब मुझे लगा कि मनोज भावुक बनना आसान ही नहीं दुरुह कार्य है जैसे आजकल हर युवा की लगभग यही सोच होती है कि वह लंदन वगैरह नौकरी करे और हाई-फाई व्यवस्था में रहे लेकिन भावुक जी ने राष्ट्र हित वह भी भोजपुरी हेतु सारी सुख-सुविधाएं, विलासिता तजकर भोजपुरी माटी में सन गये और 25-30 वर्षों से लगे हुए हैं....एक विशेष बात और खूबी आप में है कि कभी अहं के शिकार नहीं हुए और हर बात करने वाले, मिलने वाले के स्तर पर आकर बात करते हैं...."वाकई आपका हृदय विशाल है,विराट व्यक्तित्व है" मुझे आप जैसे त्यागी विद्वान सख्शियत का कुछ भी अंश का साहित्यिक आशीर्वाद मिल जाये तो शायद मैं भी अपने अहं से बाहर निकल पाऊं.. ज्ञान और विद्वान अपनी विद्वत्ता से जाने जाते हैं उम्र से नहीं......
अब आदरणीय श्री स्यंदन सुमन द्वारा लिखा हुआ पढ़ें....
फिल्मफेयर और फेमिना द्वारा मनोज भावुक का हुआ सम्मान

लखनऊ के रमादा में 16 जुलाई को फिल्मफेयर एवं फेमिना द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘ भोजपुरी आइकॉन्स- रील एंड रीयल स्टार्स ‘ समारोह में भोजपुरी के जाने-माने लेखक, फिल्म समीक्षक और भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार मनोज भावुक को भोजपुरी साहित्य और सिनेमा के इतिहास पर किये गए उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

यह एक ऐतिहासिक कार्यक्रम हैं, जब दो प्रतिष्ठित ब्रांड फिल्मफेयर और फेमिना पहली बार भोजपुरी आइकॉन का सम्मान करने और जश्न मनाने के लिए एकजुट हुए। इस अवसर पर पद्मभूषण शारदा सिन्हा को लोक संगीत के लिए, संजय मिश्रा को प्राइड ऑफ भोजपुरी मिट्टी, मनोज तिवारी को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड और रवि किशन को ओटीटी और सिनेमा के लिए सम्मानित किया गया।

मनोज भावुक को भोजपुरी साहित्य व सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए यह सम्मान फेमिना की प्रधान संपादक अंबिका मट्टू व दक्षिण के निर्देशक विक्रम वासुदेव द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किया गया।

मनोज भावुक 1998 से लिख रहे हैं भोजपुरी सिनेमा का इतिहास ...

तस्वीर जिदंगी के (भोजपुरी गजल संग्रह) व चलनी में पानी (भोजपुरी कविता-संग्रह) मनोज भावुक की चर्चित पुस्तकें हैं। मनोज भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर पिछले 25 वर्षों से लिख रहें हैं। वर्ष 2000 में ही भोजपुरी सिनेमा के प्राचीन इतिहास (1962-2000) पर किताब लिख ली थी। इनेक लेख धारावाहिक रूप में कई पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। कई लोगों ने सिनेमा पर किये अपने शोध व पीएचडी में मनोज भावुक के रिसर्च को ही आधार बनाया है। पेंग्विन से भोजपुरी सिनेमा पर छपी अभिजीत घोष की अंग्रेजी किताब में भी भावुक के तमाम सिनेमा-लेखों व शोध-पत्रों का जिक्र है। 'भोजपुरी सिनेमा के संसार' नाम की साढ़े चार सौ पृष्ठों की यह किताब पिछले साढ़े तीन साल से भोजपुरी-मैथिली अकादमी, दिल्ली के पास प्रकाशनाधीन है। इसमें मनोज ने 1931 से लेकर 2019 तक के भोजपुरी सिनेमा के सफर पर बात की है।

मनोज भावुक ने फिल्मों में अभिनय भी किया है, गीत भी लिखे हैं ...

सौगंध गंगा मईया के और रखवाला नामक फिल्म में मनोज भावुक ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। इसके अलावा बहुत सारे टीवी सीरियल और डॉक्यूमेंटरीज में भी काम किया है। मनोज बिहार आर्ट थियेटर, कालिदास रंगालय, पटना के टॉपर रहे हैं। मेंहदी लगा के रखना नामक एक फिल्म में मनोज का गीत खूब वाइरल हुआ - अँचरा छोड़ा के चल काहे दिहले एतना दूर ए माई '। मनोज ने भोजपुरी के लगभग सभी चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम किया है और विविध विषयों कार्यक्रम बनायें हैं।     

   
       
सपना हुआ साकार...

मनोज भावुक कहते हैं कि भोजपुरी इंडस्ट्री फ़िल्म फेयर और फेमिना तक पहुँच गई। यही आपने आप में बड़ी उपलब्धि है।  फिल्मफेयर एवं फेमिना द्वारा सम्मान मिलना बड़ी बात है। मैं  अपने आप को सौभाग्यशाली समझता हूँ।भोजपुरी साहित्य और सिनेमा, खासकर इतिहास लेखन के लिए पहली बार किसी फिल्म अवार्ड शो में मुझे सम्मानित किया गया है जबकि दो दशक से भी अधिक समय से मै इस इंडस्ट्री से जुड़ा हूँ और सभी आयोजक व स्टार्स मेरे काम को जानते हैं लेकिन यहाँ कलम की कीमत नहीं है। हालाँकि मै तो कलम के साथ कैमरा वाला भी हूँ। भोजपुरी इंडस्ट्री का शायद ही कोई बड़ा कलाकार होगा जिसका मैंने साक्षात्कार नहीं किया हो। 

इस सम्मान के लिए फिल्मफेयर एवं फेमिना के प्रति शुक्रगुजार हूँ और यह सम्मान भोजपुरी भाषा व भोजपुरी भाषियों को समर्पित है।        

कौन हैं मनोज भावुक ?

मनोज भावुक यूके और अफ्रीका में इंजीनियरिंग की नौकरी को छोड़कर पूरी तरह से भोजपुरी हेतु प्रतिबद्ध एवं समर्पित हो चुके हैं। आपको भारतीय भाषा परिषद सम्मान (2006), पंडित प्रताप नारायण मिश्र सम्मान (2010),  भिखारी ठाकुर सम्मान (2011), राही मासूम रज़ा सम्मान (2012), परिकल्पना लोक भूषण सम्मान, नेपाल (2013 ), अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी गौरव सम्मान, मॉरिशस (2014), गीतांजलि साहित्य एवं संस्कृति सम्मान, बर्मिंघम, यूके (2018 ), बिहारी कनेक्ट ग्लोबल सम्मान, दुबई (2019 ), कैलाश गौतम काव्यकुंभ लोकभाषा सम्मान (2022) जैसे अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा जा चुका है।  

अभिनय, संचालन एवं पटकथा लेखन आदि विधाओं में आपकी गहरी रुचि है। भोजपुरी जंक्शन नामक पत्रिका (ई-पत्रिका) का आप संपादन भी करते हैं। आप एक सुप्रसिद्ध कवि, कार्यक्रम प्रस्तोता व लोक मर्मज्ञ हैं। विश्व भोजपुरी सम्मेलन की दिल्ली और इंग्लैंड इकाई के अध्यक्ष रहे हैं। विश्व के लीजेंड्स को समर्पित अचीवर्स जंक्शन के निदेशक हैं। कई पुस्तकों के प्रणेता हैं। भोजपुरी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु विश्व के कई देशों की यात्रा की है। आप जी टीवी के लोकप्रिय रियलिटी शो सारेगामापा (भोजपुरी) के प्रोजेक्ट हैड रहे हैं। आपने कई टीवी शोज, फिल्मों और धारावाहिकों में अभिनय किया है। 

मनोज बिहार के सिवान जिले के कौसड़ गाँव के रहने वाले हैं। इनके पिताजी स्वर्गीय रामदेव सिंह हिंडाल्को रेणुकूट, उत्तर प्रदेश के प्रथम मजदूर नेता रहे हैं और बड़े पिताजी जंग बहादुर सिंह आजादी के तराने गाने के लिए जेल जाने वाले 103 वर्षीय सुप्रसिद्ध देशभक्त लोक गायक हैं।

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