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Showing posts from May, 2024

आदमी जब बड़ा होता है, आदमी नहीं रह जाता है

आदमी जब बड़ा होता है ,आदमी नहीं रह जाता है ----------------------------------------------------------------- आदमी जब बड़ा हो जाता है, आदमी नहीं रह जाता है। जिसने सब किया है,सबसे पहले उसे ही भूल जाता है। पहले किसी से मिलता नहीं, मिले तो पहचानता नहीं है कहीं हमजोली दिख जाता ,उसे नज़रंदाज़ कर जाता है। अपना जमीर व जमीन भी,मित्रों के जैसे भूल जाता है। गांव की माटी का जन्मा , गांव से ही दूर हो जाता है। भूल से कभी गांव आता , कट्ठा-प्लाट,फ्लैट सुनाता है मुर्गी के दरबे में रहता , वही फोटो सबको दिखाता है। कोई पता पूछता है , बात वह इधर-उधर घुमाता है। लोगों की बातों में फंस जाता,नं गलत लिखवाता है। सोशल मीडिया में वो उम्र को कम करके ही दिखाता है उम्र ढल गई है फिर भी, नया नया फ़ैशन आजमाता है। शहर में एक से एक हैं, वहां भी सिमटकर रह जाता है। गांव गढ़ कहा जाता है, उससे भी महरूम हो जाता है। बड़े होने के चक्कर में,वह सब कुछ छोटा कर जाता है। शहरी बनने में अपनी, संस्कार-संस्कृति भूल जाता है -------------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर रा

कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं

कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं ----------------------------------------------- केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया दिनवा त कटि जाला,कटे नाहीं रतिया। रहि-रहि निरखीं हमहूं तोहरी सुरतिया देखि - देखि रिगावे हमके कोइलरिया। जिनगी हमार भइल बोझ हो संवरिया अंखिया से लोरवो बहता दिन रतिया। टुकुर-टुकुर ताकता चूड़िया कंगनवा देखि-देखि हंसि करे हमके अंगनवा। काटे दवुरे हमके अपने सेजरिया कबो देखीं फोन , कबो देखीं रहतिया। केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया दिन भर काम करीं,जागीं सारी रतिया। कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं अपने मनवा ना माने मन के बतिया। केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया दिनवा त कटि जाला,कटे नाहीं रतिया। ------------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश @followers

जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया

जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया --------------------------------------------- जब जब देखीं लउके तोहरे सुरतिया संगहीं के सब लोगे भइलन सवतिया। छम-छम बाजे जब तोहरे पायलिया मनवा सिवान होके देखेला रहतिया। जब जब हिलेला तोहरे कनबलिया तब तब छछने जियुवा हो संहतिया। जब जब देखिले हम मोहनी मूरतिया चहकेला मनवा जुड़ाई जाला छतिया। जब जब पहिरेलू धानी रंग चुनरिया अंचरा में तोहरा लउके किसमतिया। रात में चलेलू त उगेला अंजोरिया तोहरे के देखिके होखे भोरहरिया। केसिया देखत लजाले कारी बदरिया तोहरे से बुझाला दिन हवे कि रतिया। हंसेलू धइके अंचरा के कोरिया सुख-चैन उड़ जाला बेध देलू छतिया। मन करेला देखती तोहके दिन रतिया काहें मिलल तोहरा के सुघर सुरतिया। --------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

नयन के देखिके नयन लोर हो गइल

नयन के देखिके नयन लोर हो गइल ------------------------------------------- नयन के देखिके नयन लोर हो गइल याद में उनका देखते भोर हो गइल। सोचले ना रहीं कि एतना निष्ठुर होई अउरी निष्ठुर,निर्मोही कठोर हो गइल। का कहीं नयन के , धोखा खा गइल जेके चितचोर बूझनी, चोर हो गइल। नयन से नयन के सुख मिलते रहल जिनिगी हमार त लोरे-लोर हो गइल। बूझनी की जिनिगी में प्रीत मिलल नयन जबसे मिलल,अंजोर हो गइल। प्यार में मिलके हमसे दूर हो गइल नयन मिलते अउर कठोर हो गइल। रोवत-रोवत नयन याद करत रहल नयन के देख नयन थोर हो गइल। ------------------- राम बहादुर राय भरौली, बलिया ,उत्तर प्रदेश

धूप में नेह से नेह लगावल करिला

धूप में धूप से नेह हम लगावल करिला ------------------------------------------------ मई क धूप में धूप से नेह लगावत रहिला जे दुरदुरावे ओकरो के सजावल करिला। हम त एगो किसान-मजदूर के बेटा हंई केहू कतनो अंझुराइ,संझुरावल करिला। दुश्मन भी होई तबो नेह लगावत रहिला केहू के गिराईं नाहीं हम उठावल करिला। माटी-डांटी में खेलल-कूदल हमहूं बानी केहू से रीत-प्रीत खूबे लगावल करिला। धूप के ताप-साप सहे के आदतो बाटे धूप में दीप के बूते से बचावल करिला। धूर, गरदा, धूप त हमार जनमे के साथी शीत घाम संगे नेह से सुतावल करिला। मई क धूप में धूप से नेह लगावत रहिला प्रचंड धूपो के नेह से अपनावल करिला। आदमी के जात हम आदमी में रहतानी केहू केतलो उलझाई,सुलझावल करिला। ---------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश