कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं
कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं
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केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया
दिनवा त कटि जाला,कटे नाहीं रतिया।
रहि-रहि निरखीं हमहूं तोहरी सुरतिया
देखि - देखि रिगावे हमके कोइलरिया।
जिनगी हमार भइल बोझ हो संवरिया
अंखिया से लोरवो बहता दिन रतिया।
टुकुर-टुकुर ताकता चूड़िया कंगनवा
देखि-देखि हंसि करे हमके अंगनवा।
काटे दवुरे हमके अपने सेजरिया
कबो देखीं फोन , कबो देखीं रहतिया।
केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया
दिन भर काम करीं,जागीं सारी रतिया।
कइसे समझाईं मन के कइसे मनाईं
अपने मनवा ना माने मन के बतिया।
केकरा से कहीं हम दिलवा के बतिया
दिनवा त कटि जाला,कटे नाहीं रतिया।
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राम बहादुर राय
भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश
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