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Showing posts from June, 2023

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की आवश्यकता क्यूं पड़ी

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना या संयुक्त राष्ट्र संघ की आवश्यकता क्यूं 1-प्रस्तावना: ----------------- "सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे भवन्तु निरामया:" हमारी सभ्यता और संस्कृति का मूल माना जाता है या यूं कहिए कि यही मूल है।हम स्वयं के साथ-साथ समष्टि को सुखी और सम्पन्न देखना चाहते हैं, यहां तक कि हम मानव मात्र तक ही सीमित नहीं हैं हमें तो सभी जीवधारियों के कल्याण की कामना रहती है। लेकिन समय-समय पर स्वार्थ और अहंकार की महत्वकांक्षा लिए हुए कुछ अधिनायकवादी सत्ताधारी अंधा होकर अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मान बैठते हैं और अपसंस्कृति पैदा कर देते हैं किसी राष्ट्र की एकता-अखंडता को तार-तार करने का पूरा पूरा प्रयास करते हैं और ऐसा हुआ भी है होता भी रहा है इससे हर जगह दो या तीन समूहों में लोग बंट जाते हैं...पूरे विश्व स्तर तक की हम बात करें तो इसका कुप्रभाव हम देख भी चुके हैं जो तीन तरह से हमारा विश्व बंट चुका था... 1-एक्सिस पावर कम अधिनायकवादी 2-सामान्य रुप से रहने वाले देश 3-निर्गुट देश हम जानते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध सन् 1914 में शुरू हुआ था जिसमें क

जब हम छोटे थे तभी अच्छे थे

जब हम छोटे थे तभी अच्छे थे -------------------------------------- जब मैं बहुत छोटा सा था तब बड़ा होने की बड़ी चाहत थी। कुछ अपने पास था या नहीं लेकिन अपनी बादशाहत थी। दिन पर दिन अब बीतते गए आखिरकार हम बड़े हो गये‌। बड़े हुए तो एक जाति में फंसे एक खुश होता तो दूसरा हंसे। कुछ भी कर लेने की इच्छा थी अब तो कुछ कर लें इसमें फंसे। मैं शोध के विद्यार्थी जैसा ही हूं जाति-पांति,धर्म से गाइड मिले‌। दिन को अगर रात कहे तो कहो वर्ना Ph.D की डिग्री नहीं मिले। बात-बात पे किसी से बात होती तो अपने सच का पक्ष कौन धरे‌‌। अबला नारी की ब्यथा सब कहे पर हम तो अपनों में ही उलझे। अब मन यही करता है बारम्बार फिर से छोटा बनकर ही रह लें। बड़ा होकर छोटा नहीं बन पाया तो सबकी आंखों में चुभने लगे‌। दूसरा तो हमें मालदार ही समझे हम क्या हैं ये तो हमीं समझते दूसरों से कोई उम्मीद क्यों रखें जब अपने ही दूसरी ओर खड़े। अब मन में ये अल्फाज़ रह गये काश हम न आते, बड़े न होते। बचपन में जाति,अमीर गरीब,बड़े... इन कटु स्वर-व्यंजनों से बचे रहते। 🙏🙏🙏     ----------------------- राम बह

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१६

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१६ ------------------------------------ पहिले सबकरा घरे लवना/जरावना अउरी तरकारी उपरवांती रहल करे चाहे ई मानिये के चलल जात रहल कि घरे त होखबे करी..जइसे आज के समय लेखा तरकारी के विशेष खेती ना होखत रहे खाद-पानी आ डंकल बिया,बाजार में बेचे खातिर... तरकारी के खेती घरगइया रहे। केहूवे के घरे जाके देखला पर खपरैल के चाहे मड़ई-टाटी पर लउकी-लउका ,कोहंड़ा,चिचिढ़ा भतुआ,सतपुतिया,खतरोई खूबे लटकि-लटकि के ढ़ेर संख्या में झूलूहा झूलत लउकत रहल अउरी त अउरी कहीं नीम के, बबूल के पेंड़ पर त लपटि-झपटि के खूब ललकरले रहत रहल आ बिना खाद-पानी के भगवान के किरिपा से एकदम चौचक शुद्ध होखे।अगर केहू के घरे तरकारी बने त सब केहू बूझि जात रहे कि फलाना चीजु के सब्जी बनत बाटे।अब बैगन त भर आंगन करिया,सफेद,गोल, लमहर एतना फरल रहे कि देखलो में बड़ा सुघर लागत रहल... केहू केनियो से आवे तब कहीं तूरि के ले जात रहल केतने नेनुआ,सतपुतिया... जलियाइयो जात रहल। जवन खेत गंगा जी के कछार पर होखे ओहिजा त पूछहीं के ना रहल एकदम सोने रहल, धूसी पर खूब मोटे-मोटे अरहर के पौधा, शकरकंद मतलब कन,करियवा गाजर जेकरा के घोड़गजरा भ

जो बुराई करते हैं

जो बुराई करते हैं वो.... ---------------------------- बुराई वही करते हैं जो कुछ नहीं करते। यदि कुछ करते हैं तो बराबरी नहीं करते। दूसरों की तरक्की से स्वयं को जला देते हैं। पूरा समय दे देते हैं दूसरों की बुराई में ही। अगर तरक्की की राह स्वयं चलने लगते वह। यूं जाति - धर्म के नाम सरेराह आग न लगाते। सच्चा इंसान वो होता है जो सच के साथ होता है। प्रभु राम के साथ भी तो रीछ,वानर ,भालू सब थे। इक्ष्वाकु वंश के होकर भी शबरी के झूठे बेर खाये। भक्त वत्सल श्रीकृष्ण ने भी तो बहुतों को हैं तारे। क्षुद्र शकुनि के झूठी बातों ने महाभारत युद्ध करवाये। बुराई संसार की नाशक है इस बला से ईश्वर बचाये। दूसरों का खाना देखके वह पेट नहीं सहलाते। काश ! इन्हें समझ आये इनकी आदत सुधर जाये। -------- राम बहादुर राय भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

केश भी अब कितना सहे

केश भी अब कितना सहे ------------------------------- केश ने केस करने को कहा मैंने कवियों का बहुत सहा। जिसे भी देखो मुझे ही बोलता मैंने किसी को कुछ नहीं कहा। बिना कहे ही मेरे पीछे सब पड़े किसी ने काली तक घटा कहा। बर्दाश्त करने की भी सीमा है जिस पर हूं वो कुछ नहीं कहा। हे पुरुष मुझसे क्या है दुश्मनी स्त्री के बहाने मैंने कितना सहा। फिर स्त्री-पुरुष भी मिल जाते फिर तो मैं अब मैं भी नहीं रहा। मेरे सहारे सब कुछ पा जाते उसमें मेरा कुछ भी नहीं रहा?? तुम्हें आपस में प्रेम ही करना है फिर मुझे सबने दोषी क्यूं कहा। कितनी व्याख्या की गई है मेरी पूछा मैंने कितना कुछ है सहा। सोचता हूं अब कितना सहूं मैं अब मैं भी पहले सा नहीं रहा। -------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तरप्रदेश

मौन की आवाज

मौन से ऊंची आवाज किसी की नहीं होती है।। ...राम बहादुर राय...

हमार रेल के यातरा

हमार एगो यात्रा:(लौहपथगामिनी से):- ----------------------------------------------- अइसे त हम कबो घूमे नहिये जाइला मजबूरी में कबो जायेके परिये जाला। एगो सपाट जगह पर रेलिया रूकली बेलकुल निपट ठेठ देहात उहंवा रहे‌। लड़िकवो हौज के पाइप काटत रहले रेलिया के दूनो ओर झुरमुट के मेला रहे। सांझ झाड़ियन से सटिके जवान होत रहे मझोला पौधा अउरी बहकल से दूब रहे। झिंग झिंग झिंगुरन के समवेत झीं. झीं..... दादुर लमहर चुप्पी सधले रहलन त फिर। एकही सुर में चक्रवृद्धि टर्र-टीं-टर्र के धुन सुने में अउरी देखे में कई कई तह में रहे। बाते बात में रेलिया से उतर गईले एकजने अन्हार के फैदा,खुला में हलुक होखे लगले। बाकिर उ ना जनले चाहे उनकरा पते ना रहे जुगनुवन के संवसे झुंड पीछा परल बाटे। उनकर इज्जतिये के अंजोर कर दिहलेसन। सबकेहू बाइस्कोप जइसन कनखी पर देखे..... ------------------------- राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्तर प्रदेश

स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की पुण्य तिथि आज

ब्रह्मर्षि स्वामी सहजानंद सरस्वती जी पुण्यतिथि आज!!! --------------------------------------------------------------------- एक नजर में 🙏🙏🙏स्वामी सहजानंद सरस्वती: 73 वीं पुण्य तिथि पर आपको सादर नमन एवं कोटि-कोटि प्रणाम 🙏🙏🙏 आपका जन्म गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) के देवा गांव में सन् 1889 में जन्म हुआ था माता जी का शरीरान्त सन् 1892में हुआ था। सन् 1898 में जलालाबाद मदरसा में शिक्षा शुरू। 1901 में लोअर और अपर प्राइमरी 6वर्ष की शिक्षा 3 वर्ष में पूरी हुई। 1904 में मिडिल परीक्षा में समूचे उत्तर प्रदेश में छठा स्थान प्राप्त कर छात्रवृत्ति प्राप्त की। 1905 वैराग्य से बचने हेतु विवाह। 1906 में पत्नी का स्वर्गवास। 1907 में अपने पुनर्विवाह की बात सुनकर महाशिवरात्रि के दिन घर से काशी जाकर दसनामी संन्यासी स्वामी अच्युतानंद से पहली दीक्षा लेकर संन्यास धारण किये। 1908 में गुरु की खोज में घूमते रहे तथा पुनः 1909 में काशी के दशाश्वमेध घाट पर श्री दण्डी अदवैतानन्द जी से दीक्षा लेकर दण्ड ग्रहण कर स्वामी सहजानंद सरस्वती बने। 1910-1912: काशी एवं दरभंगा में संस्कृत साहित्य ,व्याकरण,न्याय तथा मीमांसा का विशद

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१५

गांव के थाती -श्रृंखला -१५ ---------------------------------- पहिले गांव में बहुत नेह-छोह प्यार-दुलार भरल रहत रहे एक दूसरा खातिर सब कुछ लगभग मिलिये के सब कोई करत रहे जइसे सबकर घर माटी के बनल रहे कुछ लोग अइसनो रहलन इक्का-दुक्का जेकर घर पक्का रहे कुछ लोगन के देवाल पक्का के रहे बाकिर छावल-छोपल त खपड़े-नरिया से रहल करे..अइसन घर बनावहूं में बहुत मेहनत लागत रहे..ओह समय गांवन में गड़ही बहुत रहे जवना में मछरी पालन भी होखे आ जलस्तर बराबर बनल रहे,कुंआ-इनार,तालाब,पोखर के त भरमार रहे जेकरा कारन से गांव के जलस्तर बराबर बनल रहे..जब बरसात बीति जात रहे मई-जून के अगियाबैताल गरमी जब परे लागे तब तक सबकर खेती-बारी, शादी -बियाह मतलब सब खाली हो गइल रहे तब खांची-कुदारी उठा के कपार पर बड़का पगरी बान्हि के गड़ही में चले फिर एक आदमी माटी कोड़े दूसरका खांची में उठावे.. जेकर जेतना बेंवत रहे ओही हिसाब से खांची-डाली चाहे दवुरी में माटी लेके मचकत चले आ घर-दुवार पर ले जाके कुरय देत रहे... अइसहीं रोज सुबह-शाम माटी ढ़ोई के गल्ला होत रहल फिर जेकर माटी वाली देवाल मरम्मत करे के होखे चाहे जेकरा नया घर के नेंव बनावे के होखे

दोहरा चरित्र ना जिहिले

दोहरा चरित्र ना जिहिले ------------------------------- दोहरा चरित्र ना जिहिले एहिसे " अकेले " रहिले।। मोलम्मा चढ़ावे ना जानिले सबका नज़रिया में गड़िले। पइसा के पाछे ना भागिले मनइ के मोल बस जानिले। जेकरा संगवा हम रहिले धोखा-पट्टी कबो ना करिले। बाबू- माई के बात मानिले जवन कहब ओतना करिले। सचकी बात सोझा कहिले एहूसे हम " अकेले" रहिले।। केतनो चोट हम खाइले तबो ना हम खिसियाइले। जब खूब दिक्कत में रहिले तब प्रभु के शरन में जाइले। चाहियो के भी दोहरा चरित्र कइसहूं ना झेलि हम पाइले। नफ़ा -नुकसान ना जानिला अकेला कतनो कइल जाइले।  ----------- रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश

त शहर से नीक अपन गंवुए बा

त शहर से नीक अपन गंवुए बा!!! ------------------------------------------- शहरिया से त नीमन हमनी के आपन गंवुए बा। कूलर पंखा के हवुवा से त नीमन पीपरा के छांउवे बा। फ़्रीज़ के खाना खईला से नीमन गंवुआ के बसियवुरे बा। घरवा पर फ्लैट नं नइखे लिखल सब कुछ खुलल बा। जवन भी कुछ चीझु बाटे उहंवा बाबा के नउवे बा। बोलियो में मिठास भरल रहेला नेह से सब भरल बा। कुछो दुःख दलिदर आ जाला त सब केहू साथ देबेला। जवन कुछ मन में रहेला उनुका खुलल किताबिये बा। लाड़ प्यार से सब उहंवा मिलेला सब बिंदास जियेला। इमान-धरम से सब रहेल करेला कल-छपट नहिंये बा। जेकरे घरे दुवारे जाके देख ला सब केहू घरवइये बा। काइंयापन शहरियन अस नइखे उहां सांचा मनईये बा। जहंवा देख ला सब केहू खुश बा सब केहू संतोषिये बा। बाबू-माई ओहिजुगे पूजल जालें जइसे देवी-देवते बा। विधवा, वृद्धाश्रम उहवां ना मिली ना केहू उहां अपने बा। एहिसे कहतानी चलिंजा गंवुए में शहरिया से त नीके बा।         ------------ राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

फिर भी नहीं सुधरते हम

फिर भी नहीं सुधरते हम ------------------------------- रेत सी ढ़हती ये दुनिया फिर भी मशरुफ़ हैं हम।। खुले हाथों से समेटने को आखिर क्यूं मजबूर हैं हम जाना तो सबको वहीं है तो समझते क्यूं नहीं हम।। उस धन संचय का क्या जिसे देख देख जिये हम।। धन तो हमारा वही होता है जिसका उपभोग करें हम।। रेत में कैसा भी घर बना लें बिना प्रयास ढह जाना है।। सामने ही ढेर होते देखकर अमरत्व का सोचते हैं हम।। सब छोड़कर चले जाना है फिर भी नहीं सुधरते हम। -------- राम बहादुर राय भरौली बलिया उत्तरप्रदेश

दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य

शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु थे। उनकी पुत्री का नाम था देवयानी जिससे वो संसार मे सबसे अधिक प्रेम करते थे। शुक्राचार्य का शिष्य था दैत्यराज वृषपर्वा, जिनकी पुत्री का नाम था शर्मिष्ठा। देवयानी और शर्मिष्ठा बहुत अच्छी सहेलियां थी। एक बार सभी सहेलियां स्नान कर रही थी। स्नान के बाद गलती से देवयानी ने शर्मिष्ठा के वस्त्र पहन लिए। तब शर्मिष्ठा ने परिहास में कह दिया कि "सखी! तुम्हारे पिता तो याचक हैं फिर तुमने राजसी वस्त्र किस प्रकार पहन लिए?" ये परिहास देवयानी को चुभ गया और वो वृषपर्वा का राज्य छोड़ कर चली गयी। अपनी प्यारी पुत्री को जाते देख शुक्राचार्य ने भी वृषपर्वा का त्याग कर दिया। अब दैत्यराज बड़े घबराए। उन्होंने शुक्राचार्य एवं देवयानी से क्षमा मांगी और पूछा कि पश्चाताप के लिए क्या करूँ। तब देवयानी ने दैत्यराज से कहा कि शर्मिष्ठा को उनकी दासी बन कर रहना होगा। देश कल्याण हेतु शर्मिष्ठा ने देवयानी की दासी बनना स्वीकार कर लिया। शुक्राचार्य के पास महादेव की दी हुई मृतसंजीवनी विद्या थी जिससे वे युद्ध मे मरे हुए दैत्यों को जीवित कर देते थे। देवताओं के गुरु बृहस्पति ये विद्या नही जानते

सन्त कबीर दास जी

सन्त कबीर दास जी --------------------------- बाबा कबीरदास जी एक बेर आवा तूं इहवां आके फिर से कुछ बता द तूं। सब केहू कर रहल बा आपन-आपन आके फिर से सबकरा समझावा तूं। जाति-धर्म भाषा के ही बात ना हवुए सब केहू अपने के बड़ समझत बाटे। पढ़े लिखे वाला असली कवि के पूछे इहवां बड़ बड़ लोगन के बुझल जाता। समन्वय के बात करेवाला अब के बा सब केहू त कुछ न कुछ से ग्रसित बा। साखी, सबद, रमैनी अब के पढत बा भोजपुरी के मिठास गंदगी लिलत बा। हे सन्त कबीर दास जी एकबेर आवा सबकरा के मिलकर रहेके सिखावा तूं। ------------- राम बहादुर राय भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश

चाह नहीं मुझे अमीर बन जाने की

चाह नहीं मुझे अमीर बन जाने की --------------------------------------------- चाह नहीं है मुझे भी अमीर बन‌ जाने की बस एक ललक थी खुद को ही पाने की। बैठे बैठे सोच रहा था कुछ कर जाने की बड़े आराम से था न फ़िक्र थी जमाने की। अपनों के बीच चिंता हो रही बच पाने की वो घात लगाए बैठे थे अपने के आने की। उन्हें नहीं थी फिक्र अपने घर लुट जाने की बड़ी शिद्दत से तलाश रहे थे उन्हें पाने की। मैं खुद किताब हूं फुर्सत नहीं पढ़ पाने की मुझे आदत है परवानों जैसे जल जाने की। कुछ नहीं कर सकते प्रभु ने ठानी बचाने की अब भी अच्छा करो अगला जन्म बचाने की। --------------- राम बहादुर राय भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश

अब गंवुओ शहर भईले

गंवुओ शहर भईले- --------------------------- गंवुआ अब गांव नइखे उहो त शहर होइ गईले। हावा - पानी गंवुओ के मन के लुभावे अब नाहीं। नाहीं बाटे बाग - बगइचा पिपरा के छांव कहां गईले। नाहीं लउकेला चारागाह चवुवा अब बेठेकान भईले। चवपाल खरिहान सूना सूना रे गंवुआ जवार भईले। ना सुनाला कज़री बिरहा मंगल गान भी दुलुम भईले। सूखि गइले संगी साथी धोखा पट्टी अब बढ़ि गईले। सब केहुवे पढ़िके पढाई शहरी चालाक होई गईले। शहरन के गली सुनसान गंवुओ अब बदलिये गईले। गांव के थाती सोगहग रहे शहर के नजर लागि गईले। गंवुआ सुहावन लागत रहे शहरी कवन टोना कईले। नीमन चीज़वा शहर गईले गंवुआ में सब दुलुम भईले। ----------- रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित राम बहादुर राय भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१४

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१४ ------------------------------------- जब बहुत छोट रहनींजा तब के बात कुछ अउरी रहल सब कुछ अलग अउर खरा पक्का त रहबे कइल खेला में भी एगो अलगे मजा आवत रहल जवन कि आज सब गायब हो रहल बा कुछ खतम भी हो चलल बाटे। हमनी के सबेरहीं उठि के गली में निकलि जाईं आ ओहरो से छिप -छिपा के दूसरका गोल सब निकलले रहे तब कांच के छोटे छोटे गोल-गोल रंग-बिरंगा गोली कीनि के सब रखले रहे...गली में एगो गोला पारिके तीन -चार गो भीतरो एह डड़ारी से ओह डड़ारी तक लाइन पारिके जहां -जहां दूगो लाइन के मिलान होखे ओहिजुगे गोली रखाव ओकरे बाद कुछ दूर से चले के रहे मतलब गोली फेंकल जाव कि ओह गोलाई में मति फंसो जेकर फंसि जाव उ आउट मनात रहे फिर अगल-बगल से हाथ के अंगुरी के अन्तिम पोर पर रखिके टीसे के रहे जे टीसि देबे उ ओह गोली के मालिक हो जात रहल अइसहीं ई खेल चलत रहे जल्दी खतम ना होखत रहे। अब गोली के कंचा भी कहल जात रहल काहें से कि कांच के बनल रहे तब दूसरका खेल रहे गुरची पियन्ता जेवना में एगो छोटी-चुकी गड़हा खोदल रहल दू-तीन गो गोली जमा करे भर आ दूर से हाथ से गोली अइसे डगरावे के रहे कि गोली ओही गुरची चाहे गुची

मां तो मां होती है!!!

मां के लिए दो शब्द: ----------------------- मां सिर्फ़ केवल शब्द नहीं सिर्फ़ भावना भी तो नहीं है सम्पूर्णता की व्याख्या है मां लघु गुरु की मोहताज नहीं स्वयं व्याख्यान होती है मां आंसूं और मुस्कुराहट से भी सदैव उपर होती है एक मां अकेला ही नहीं वह हर एक हृदय की धड़कन होती मां कितना भी कष्ट होता है उसे बच्चों के लिए सहती है मां हम ज़मीन और संसार पर हैं वह स्वयं में संसार है एक मां धरती पर तो भगवान है मां -------------- @राम बहादुर राय

शहर की दास्तां सुनो!!!

शहर की दास्तां सुनो!! ------------------------------ सुनो दास्ताने शहर सुनो ! ऐ पत्थरों के मकां सुनो !! तेरे शहर में कोई शख्स अगर आता है!! तूं मौन खड़ा हर पल क्या है करता!! तूं पनाह दे देगा तो तेरा क्या जाता है! तुझे किस बात का हमेशा गुमां रहता है तेरे  पास  तो मुफलिसी   है क्यूं इतराता है। किसी   इन्सां   को  देखकर दुबक क्यूं जाता है ‌। ये  पिज्जा   बर्गर   चाउ माउ तेरा खाना है। घर   में   तेरे  कौन  रहता  है किसने जाना है। हर  ज़ख्म  नासूर  बनाते हो ये तेरा पैमाना है। गलियों में सिसकती ज़िन्दगी अक्स तेरा पुराना है। जगह  की  कमी  तो बस यूं तेरा बहाना है। रिश्ते नाते  तूं क्या जानते हो इसे निगल जाना है। आखिर तेरे  पास क्या है ??? सिर्फ़ कैदखाना है!!                 ------------ रचना स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

याद में तुम्हारे बैठे हैं!!!

याद में तुम्हारे बैठे हैं------ ---------------------------- प्रणय निवेदन करता हूं मैं पास तुम्हारे आने को। दिल में हसरत लिए घूमता हूं साथ तुम्हारा पाने को। गुम्फित पटल तेरी राह देखे उर में भव्य हो जाने को। सदियों से मैं साभार खड़ा हूं एक झलक ही पाने को। कहने को तो आजाद हैं हम बैठे हैं शीश नवाने को। फिर भी अगर विश्वास नहीं है तैयार हैं कट जाने को। पलक-पांवड़े बिछाकर बैठे हैं भूल चुके हैं ज़माने को। अगर फिर भी नहीं भरोसा है छोड़ो मुझे जल जाने को। मुझे जिंदा रखना है तो आओ वर्ना फूंक दूं जमाने को। सदियों से जिंदा हूं तेरे भरोसे राह देखता तेरे आने को। एकबार ही सही आकर देखो तैयार हूं एक हो जाने को। --------------- रचना स्वरचित एवं मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।‌। राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तरप्रदेश

गांव के थाती -श्रृंखला

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१३ ----------------------------------- बियाह होखत में सबेर गो गईल तब सभकर लेन-देन ओरियावत सूरज भगवान के पूरा दर्शन हो गईल फिर पंच भी पूरा नाश्ता सोहटि के खींचल आ ढ़ेकारत धीरे-धीरे समियाना के तरफ बढत कहे लगलन कि आखिर अब घाम हो गईल अब का देरी बा भाई बारात में चले के चाहीं बेमतलब के देरी करता लोग अभी जाये में नव नतीजा होई तबले एग जना लउकलन जवन बरतिहा के पट्टीदार रहलन...रुका हो फलाना ढ़ेकाना अरे जाके बरातिया के जल्दी अब गांवे भेजे के इंतजाम करवा द...तब उ कहताड़न काहें हम कहीं हमरा से कबो पूछेलन का... फिर हम कहब त कहिहन लोग कि देयाद हवुए एकरा नीक नईखे लागत.. त अब हमसे ना कहाई तूहंई ई कुल कहेला.... कुछ देर बाद सब निपटिये गईल तब तक खबर मिलल कि टेकटर आगे ले चलेकेबा काहें कि दहेज के सामान बहुत ढ़ेर बाटे आ कुछ लोग चले नीमन से रखवावे खातिर ।अब सामान लदाये लागल एहर काना-फूसी होखे लागल कि ए भाई ई त बहुत सामान देत बाड़न सब एतना सामान त अभी तक गांव में केहू के ना मिलल रहल हवुए आखिर बात का बाटे.. लागता कि कुछ दाल में काला बा..... केहू कहता कि पूरा दलिये काला बा हो भईया ... ना

काहें चलत हवुवा उतान हो

काहें चलत हवुवा उतान हो ---------------------------------- काहें चलत हवुवा तूंहूं उतान हो सुल्तान केहू दूसर बा। कुछ लोग तोहके जानि गईले आसमन में उड़त बा। देखले पर तूंहूंव देखत नईखा केंचुल से मातल बा। दूसर केहू जिनगी में रेंगते रही ओकर दियानत बा। काहें बनत बाड़ा तू सुल्तान हो सुल्तान केहू दूसर बा सबके बनवले बाड़ें भगवान हो काहें ऐंइठ के चलत बा। लागता कि तूहंई महान हवुआ सबके त जायहीं के बा। याद करि ला पहिले के दिनवा सब तोहसे निमने बा। जवन पइसा के जोम में रहेला उहे लेके तूं जइबा का। पइसा जरुरी बा जिये खातिर आदमी होखल जरुरी बा। बहुत लोग देखल गईल बाटे संगे रहल व्यवहारे बा। हलुक चिजवा  उड़त  चलेला भारी चुप बइठले बा। आवेला  एगो अइसन  आन्हीं उताने वाला टूटल बा। का  करबा  केहू से ना बोलिके घमंड सबके टूटले बा। हम त एगो तिनका हंई साहब जे हरदम ही उड़ले बा। जेकर गोड़वा जमीने पर रहेला कबो उ कहां गिरल बा। भगवान के घर देर जरूर होई पर अन्धेर त नहिंये बा। केहू के केतनो तूं नीच देखबा तोहरे वश में कुछवू बा ??             --------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर

गिरगिटवो अब फेल मारि गइल

गिरगिटवो फेल मारि गइल: --------------------------------- कइसन जमाना ई आइल गिरगिटवो बा अकुलाइल। कहेला हम कहंवा जाइब अदिमी से बानी डेराइल। रंगवा बदले में उहो बाटे हमसे कोसन अगुवाइल। रंगवा बदले में हमहूं रहीं दुनिया में इहे अगुवाइल। अब एगो अदिमी भेंटाइल नाम बतवले त चिन्हाइल। हम रंग देखिके रंग बदलीं उ त रंगवे में बाटे रंगाइल। हर अदिमी से अलगे बोले जेही मिलल उहे झोलइल। अरे का करीं हमहूं अब त हाथ में बाटे झलमलाइल। कहेला कि ए भाई साहब शहर धरे के समय आइल। गिरगिट के दिनवा लदाइल सब गिरगिट में बदलाइल। दुश्मनवन से बचहीं खातिर बेरी बेरी ही रंग बदलाइल। हम ना जानत रहनीं दादा अदिमियों में रहब हेराइल। अदिमी के बदलल देखलीं हमार बुद्धिया बाटे हेराइल। अपन बोरिया बिस्तर लेइके भागल गिरगिट अकुलाइल। -------------- रचना स्वरचित, मौलिक अउरी अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित। राम बहादुर राय भरौली, बलिया, उत्तरप्रदेश

मेहनत से इतिहास बदल सकता है

मेहनत से इतिहास बदल सकता है ------------------------------------------ जो घरों में दुबक कर रहता है वह लिबास बदल सकता है। जो भी पसीने से नहाता है वो इतिहास बदल सकता है। बाप के पैसों पर कुछ दिन आसमान में उड़ सकता है। पर अपनी मेहनत से इन्सान आसमां भी खरीद सकता है। अगर जज्बा ओ जुनून हो तो कुछ भी संभव हो सकता है। मखमल की चादर लपेट कर कोई अमीर नहीं हो सकता है। अमीरी के लिए पैसे से नहीं दिल से बड़ा होना पड़ता है। सारी चीजें यहीं रह जाती हैं सत्कर्म ही याद रह जाता है। पैसों के बल पर कुछ कर लो पर आजाद नहीं हो सकता है। बिना आग की भट्टी में तपे खरा सोना नहीं हो सकता है। कागज़ी फूलों पर न इतराएं असल सामने आ ही जाता है। किसी काम को करने के लिए शेर अकेला ही चला करते हैं। अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने हेतु गांधी जी एकला चल पड़े थे। जिसे आगे बढ़ने का हौसला है वह अपने दम पर निकलता है। यदि हमें दुनिया में कुछ करना है स्वयं पर विश्वास करना होता है।       ---------------- राम बहादुर राय भरौली, नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश

लोगों की कैसी भावनाएं

लोगों की भावनाएं जीवित दिखती हैं पर सत्य यह नहीं है मैं अक्सर देखता हूं किसी घायल को देख लोग निकल लेते हैं आगंतुक दिख गया कोन्टाईन हो जाते हैं चुप से हो जाते हैं तो मुझे लगता है कि मैं मृत हूं इनके लिए लेकिन मैं जिंदा हूं किसी मरे को देखूं मुझे लगने लगता है कि अभी मैं जिंदा हूं सिर्फ़ स्वयं पर ही मैं स्वयं ही शर्मिन्दा हूं फिर भी मैं जिंदा हूं जो लोग घृणा करते मैं तो प्रेम करता हूं उनकी सेवा करता हूं ज़माने के दिये जख्मों को मैं कुरेदता नहीं हूं स्वयं दर्द पी जाता हूं लोगों के दर्द कम कर उनका दर्द ले लेता हूं फिर से मैं जी उठता हूं बेसहारा जब रोता है मैं जीवित हो जाता हूं उसके साथ हो लेता हूं मृत सा रहकर भी मैं कभी कभी जी लेता हूं सब-कुछ देखा करता हूं जुबां को मैं सी लेता हूं अपने लिए सब ज़िन्दा मैं गैरों के लिए भी जी लेता हूं --------------- ----------राम बहादुर राय---------- भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

दूगो पुस्तकन के विमोचन कइल गइल हवुए!!!

दूगो पुस्तकन के विमोचन कइल गइल हवुए!!! --------------------------------------------------------- १-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार २-अब गंवुओं में शहर आ           बिहियां प्रखंड के कट्यां गांव में सब भोजपुरिया दिग्गज लोगन के जुटान भइल रहल। सलिल गीतकार कुमार अजय सिंह के अध्यक्षता में भोजपुरी के अश्लीलता मुक्त बनावे खातिर ज़मीनी आन्दोलन चलानेवाला हमनी के आदरणीय श्री नन्द कुमार तिवारी बाबा जी, बिहियां से चलके हैदराबाद में भोजपुरी के परचम लहरावे वाला श्री राजू ओझा जी, युवा हृदय के धड़कन जिला पार्षद आदरणीय श्री गंगाधर पाण्डेय जी अउरी तमाम भोजपुरिया समाज के लोगन के साथे भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल करावे खातिर जबर्दस्त रणनीति बनल हवुए।।             सबसे बड़ बात बा कि हमार भोजपुरी में लिखल दूगो किताब के विमोचन कइल गईल हवुए।।जवन किताब दिल्ली के सर्वभाषा प्रकाशन से प्रकाशित बा।। १-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार २-अब गंवुओं में शहर आ गईल।।              कुमार अजय सिंह हमार लिखल पुस्तक "भोजपुरी के मान्यता देईं सरकार!!" के बहुत प्रशंसा कईनीं , ओइसहीं आदरणीय श्री नन्द कुमार तिवारी

दूगो पुस्तकन के विमोचन कइल गइल हवुए!!! --------------------------------------------------------- १-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार २-अब गंवुओं में शहर आ बिहियां प्रखंड के कट्यां गांव में सब भोजपुरिया दिग्गज लोगन के जुटान भइल रहल। सलिल गीतकार कुमार अजय सिंह के अध्यक्षता में भोजपुरी के अश्लीलता मुक्त बनावे खातिर ज़मीनी आन्दोलन चलानेवाला हमनी के आदरणीय श्री नन्द कुमार तिवारी बाबा जी, बिहियां से चलके हैदराबाद में भोजपुरी के परचम लहरावे वाला श्री राजू ओझा जी, युवा हृदय के धड़कन जिला पार्षद आदरणीय श्री गंगाधर पाण्डेय जी अउरी तमाम भोजपुरिया समाज के लोगन के साथे भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल करावे खातिर जबर्दस्त रणनीति बनल हवुए।। सबसे बड़ बात बा कि हमार भोजपुरी में लिखल दूगो किताब के विमोचन कइल गईल हवुए।।जवन किताब दिल्ली के सर्वभाषा प्रकाशन से प्रकाशित बा।। १-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार २-अब गंवुओं में शहर आ गईल।। कुमार अजय सिंह हमार लिखल पुस्तक "भोजपुरी के मान्यता देईं सरकार!!" के बहुत प्रशंसा कईनीं , ओइसहीं आदरणीय श्री नन्द कुमार तिवारी बाबा जी, श्री राजू ओझा जी, श्री गंगाधर पाण्डेय जी विमोचन के समय बहुत प्रशंसा कईनीं हंई.....हम बहुत बहुत आभारी बानी रवुंआ सब लोगन के।। सब लोगन के श्री राजू ओझा जी के माध्यम से अंगवस्त्रम देके सम्मानित कईल गईल हवुए।। अन्त में श्री राजू ओझा जी केहें लिट्टी-चोखा के व्यवस्था भी रहल हवुए जवन कि बहुत स्वादिष्ट रहल ह...एकरा खातिर राजू ओझा जी के अनघा बधाई बा।।

दूगो पुस्तकन के विमोचन कइल गइल हवुए!!! --------------------------------------------------------- १-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार २-अब गंवुओं में शहर आ             बिहियां प्रखंड के कट्यां गांव में सब भोजपुरिया दिग्गज लोगन के जुटान भइल रहल। सलिल गीतकार कुमार अजय सिंह के अध्यक्षता में भोजपुरी के अश्लीलता मुक्त बनावे खातिर ज़मीनी आन्दोलन चलानेवाला हमनी के आदरणीय श्री नन्द कुमार तिवारी बाबा जी, बिहियां से चलके हैदराबाद में भोजपुरी के परचम लहरावे वाला श्री राजू ओझा जी, युवा हृदय के धड़कन जिला पार्षद आदरणीय श्री गंगाधर पाण्डेय जी अउरी तमाम भोजपुरिया समाज के लोगन के साथे भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल करावे खातिर जबर्दस्त रणनीति बनल हवुए।।             सबसे बड़ बात बा कि हमार भोजपुरी में लिखल दूगो किताब के विमोचन कइल गईल हवुए।।जवन किताब दिल्ली के सर्वभाषा प्रकाशन से प्रकाशित बा।। १-भोजपुरी के मान्यता देईं ए सरकार २-अब गंवुओं में शहर आ गईल।।              कुमार अजय सिंह हमार लिखल पुस्तक "भोजपुरी के मान्यता देईं सरकार!!" के बहुत प्रशंसा कईनीं , ओइसहीं आदरणीय श्री नन्द कुमार तिवारी

जियते फूंक देबा का मालिक

जियते फूंक देबा का मालिक ------------------------------------ का ए सूरूज भगवान बाबा जियते फूंक देबा का मालिक। तोहरे ताप के कवनो सीमा बा सब अगिया उगिलिये देबा का। एगो त सबका गरमी बटले बा दूसरे में तूहूंवू उझिल देबा का। अदिमिन के गरमी त बुझाता का तूहूं खिसियाइल बाडा का। तोहरे पर सब केहूवे जियता अब तूहंऊ चऊंड़िये देबा का। स्वारथ में सब एहिजा जरता अब तूहंऊ जराईये देबा का। लोगन के ताप सहतेबानीजा उपर से तूंहवू ना रहे देबा का। ए. सी. कूलर सबकरा नइखे भरसाईंये में झोंकि देबा का। एक त झोपड़ियो में लहरता झोपड़ियो के फूंका देबा का। त्राहि-त्राहि सब केहू करता तोहरे कवनो दुश्मनी बा का। ------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

एहघरी से त पुरनके नीक रहल;-------

एहघरी से त पुरनके नीक रहल;------- --------------------------------------------- माथवा के मउरवा नाहीं लउकेला केनियो बुढ़वन के एह घरी लड़िकवे कुछवू ना बूझे। पीपर,पाकड़ ,महुवा दुलुम बा केहू न लगाइ कोहा,गमला में सब पेड़वा गइलन समेटाई। जेकरे जंघिया पर बइठि बढ़लन पढ़कुआ ओकरो के टांगी से जरिये से देले कटवाई कबूतर के दरबा में रहे लगलन लोगवा त पीपर के शुद्ध हवुआ उनके कहंवा भेंटाई। खूबे पइसा कवुड़ी कमइले बाड़े आजकल खोजला प एगो अदिमियो उनके ना भेंटाई। बुढ़वा पुरनिया बरगद नियर पेड़वा लगावे हर घरी सब अदिमी ओकरे नीचवा बटोराई। केहूवो अथेघा परि जात रहले ओह समय में सब केहू मिलि -जुलि के ओकरा निपटाई। आजुवो कहीं -कहीं बुजुरुग चबूतरा नियन बिछल बाड़न जा हमनिये खातिर हो भाई । अब त केहू केहू केहें खड़ो होखेहूं के जगहा फलैट में शायद संजोग नहिंये ही मिलि पाई । महानगरन के छोटकन लड़िकवन अइसन नाहीं देखले हवुवन ना चिनहूं अब उ पाई । गांव ह त गढ़ ह सबकरा समझहीं के चाहीं नाही सबकर संस्कृति पहचान मिटियो जाई। हमनी के अगुवन के जिनिगी में माजा रहे जो सोफा,पलंग
एहघरी से त पुरनके नीक रहल;------- --------------------------------------------- माथवा के मउरवा नाहीं लउकेला केनियो बुढ़वन के एह घरी लड़िकवे कुछवू ना बूझे। पीपर,पाकड़ ,महुवा दुलुम बा केहू न लगाइ कोहा,गमला में सब पेड़वा गइलन समेटाई। जेकरे जंघिया पर बइठि बढ़लन पढ़कुआ ओकरो के टांगी से जरिये से देले कटवाई  कबूतर के दरबा में रहे लगलन लोगवा त पीपर के शुद्ध हवुआ उनके कहंवा भेंटाई। खूबे पइसा कवुड़ी कमइले बाड़े आजकल खोजला प एगो अदिमियो उनके ना भेंटाई। बुढ़वा पुरनिया बरगद नियर पेड़वा लगावे हर घरी सब अदिमी ओकरे नीचवा बटोराई। केहूवो अथेघा परि जात रहले ओह समय में सब केहू मिलि -जुलि के ओकरा निपटाई। आजुवो कहीं -कहीं बुजुरुग चबूतरा नियन बिछल बाड़न जा हमनिये खातिर हो भाई । अब त केहू केहू केहें खड़ो होखेहूं के जगहा फलैट में शायद संजोग नहिंये ही मिलि पाई । महानगरन के छोटकन लड़िकवन अइसन नाहीं देखले हवुवन ना चिनहूं अब उ पाई । गांव ह त गढ़ ह सबकरा समझहीं के चाहीं नाही सबकर संस्कृति पहचान मिटियो जाई। हमनी के अगुवन के जिनिगी में माजा रहे जो सोफा,पलं
राजनीति के इस भंवर में ------------------------------- राजनीति के इस भंवर में नंगे नाच रहे हैं संविधान के तंत्र और मंत्र अनपढ़ पढ़ के बांच रहे हैं हवा पूछे अब तो पेड़ों की टहनी से मन की बात कैसी  लगती है  धूप तुम्हें बिना पानी के बरसात हंस हुए उदास और दुखी बगुले सारस  कुलांच रहे हैं धर्मग्रंथों से सच की कहानी बौने अब जांच रहे हैं लोगों ने अपने अपने हिस्से की सुविधाएं बांट ली हैं कब तक सुधरेगी व्यवस्था आजकल सभी सवाच रहे हैं अच्छा  भी  करते हैं लोग वो समझे राजनीति का मेला फिर क्या कर सकेगा कोई  राजनीति में बहुत है झमेला राम बहादुर राय  भरौली ,बलिया, उत्तर प्रदेश,

भोजपुरी के मान्यता देबेके परी!!!

भोजपुरी के मान्यता देबेके परी !!! ------------------------------------------ भोजपुरी भाषा के मति ठेठावा हो भोजपुरिये पर आवेके परी! अपने में अलग-विलग न करावा हो अंत में अपने पर आवेके परी! चाहे बोलिहा हिन्दी चाहे अंग्रेजी हो भोजपुरी के अपनावे के परी! केहूवे कंहवा कबीर ,सूर होता हो ई सब के अपनावे के परी! भाषा भोजपुरी हई अपन माई हो माई के कइसहूं लियावेके परी! मान्यता त कवनो सरकार देई हो सबका एकसंगे आवेके परी! माई के होखेले कई गो ललनवा हो माई अस दुलार देबेके परी! अपने भाई-बहिनी सबकोई बाटे हो सबके गरवा लगावे के परी! भोजपुरी के मान्यता भी मिली हो सरकार के घुटना टेके के परी! जग में भरल सगरो भोजपुरिया हो एकबेर सबके जगावे के परी! चाहे कवनो बाटे केहूके धरमवा हो भोजपुरी भाषा बोले के परी! अपन-अपन सवारथ के छोड़ द हो भोजपुरी खातिर लड़ेके परी! तीर-तलवार,गोली के काम नइखे हो हमनी के आगे गोली का करी! जइसे कुंवर मंगल लड़ाई लड़लें हो सबके कुंवर,मंगल बने के परी! एकबेर करो या मरो के नारा रहे हो भोजपुरी खातिर उहे करे के परी! सन् सैंतालीस में आजादी मिलल हो भोजपुरी के आजादी देबेके परी! सन् चौबीस मे

वीणा वाली माई से हमार एगो अर्जी बा :--राम बहादुर राय भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश

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वीणा वाली माई से हमार एगो अर्जी बा:-- ------------------------------------------------- वीणा वाली माई तनी वीणवा बजा द। परल बानी अथेघा हमहूं बेड़ा पार लगा द। दर -दर हम भटकतबानी हमके रहिया देखा द। नईखे लउकत केहूवे ए माई तुहंई कुछ बता द। फंसल बे मझधार में नईया कईसहूं पार लगा द। केहूवे नइखे समझत हमके  आके तूहीं समझा द। परल बे मझधार में नईया आके तूहीं पार लगा द तोहरे भरोसे बानी ए मईया  हमार इजतिया बचा द ‌। परल बाटे पीछे सब लोगवा आके हमके बचा द। वीणा वाली माई आवा तुहूं  हमार मनसा पूरा द। हंस सवारी कमलअसनवा बिगड़ी तूहंई बना द। सूझे नाहीं कुछू हमरा के तूहंई कुछ सूझा द। असरा लगाके बईठल हंई  हमके तूहंई बचा द। पूजा-पाठ ना जानी हमहूं  गंवार के तूं सीखा द। परल बानी अथेघा मईया  सपनों में कुछ बता द। हंईं भरोसे तोहरे ए मईया  नइया के पार लगा द। बानी तोहरे भरोसे बईठल  कइसहूं तूंहवू आवा। बईठब बानी अनशन पर  अनशन तूंही छोड़ा द। कुछू सीखावा माई हमके लिखे पढ़े सीखा द। केहूवो नाहीं बाटे हमरा  चरनिया में बईठा ला। कमल,हंस के आसनवा  किरिपा कके देखा द!!!!                   ---------

मैं भी हूं तेरे होने में- राम बहादुर राय कवि एवं लेखक भरौली बलिया उत्तरप्रदेश

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मैं भी हूं तेरे होने में ------------------------ न जाने क्या जादू है उसकी आंखों में। आग सुलग उठती है दिल की राहों में। मन के दरवाजे थे बन्द पड़े कई सालों से मिथ्या अभिमान थे दूर किया निगाहों ने। तुम्हारी निगाहों ने किया अभिशप्त मुझे। दबी ढ़की राखों में रूकी थमी सांसों में। आंधी सी कौंध गयी दिल की राहों में। मन के हर कोने में झंकृत असर हुआ। जैसा होता होगा जादू और टोने में। भूधर संकल्पों के पत्ते जैसे डोल गये। रोम रोम पुलकित हुए हर कोने में। तुम धन्य हो प्रिये! मैं भी हूं तेरे होने में!! तेरा होना मेरे लिए नहीं है मुझे होने में। तूं अगर नहीं है तो तूं है मेरे हर कोने में। जाने क्या जादू है कजरारी आंखों में। देखूं तो मर जाऊं न देखूं तो पागल सा..... फिरता रहूं यायावर मैं तो तेरी आहों में। --------------- राम बहादुर राय भरौली ,बलिया उत्तरप्रदेश