दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य
शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु थे। उनकी पुत्री का नाम था देवयानी जिससे वो संसार मे सबसे अधिक प्रेम करते थे। शुक्राचार्य का शिष्य था दैत्यराज वृषपर्वा, जिनकी पुत्री का नाम था शर्मिष्ठा। देवयानी और शर्मिष्ठा बहुत अच्छी सहेलियां थी।
एक बार सभी सहेलियां स्नान कर रही थी। स्नान के बाद गलती से देवयानी ने शर्मिष्ठा के वस्त्र पहन लिए। तब शर्मिष्ठा ने परिहास में कह दिया कि "सखी! तुम्हारे पिता तो याचक हैं फिर तुमने राजसी वस्त्र किस प्रकार पहन लिए?" ये परिहास देवयानी को चुभ गया और वो वृषपर्वा का राज्य छोड़ कर चली गयी। अपनी प्यारी पुत्री को जाते देख शुक्राचार्य ने भी वृषपर्वा का त्याग कर दिया।
अब दैत्यराज बड़े घबराए। उन्होंने शुक्राचार्य एवं देवयानी से क्षमा मांगी और पूछा कि पश्चाताप के लिए क्या करूँ। तब देवयानी ने दैत्यराज से कहा कि शर्मिष्ठा को उनकी दासी बन कर रहना होगा। देश कल्याण हेतु शर्मिष्ठा ने देवयानी की दासी बनना स्वीकार कर लिया।
शुक्राचार्य के पास महादेव की दी हुई मृतसंजीवनी विद्या थी जिससे वे युद्ध मे मरे हुए दैत्यों को जीवित कर देते थे। देवताओं के गुरु बृहस्पति ये विद्या नही जानते थे। तब इन्द्रके कहने पर बृहस्पति ने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास भेजा ताकि वो उनसे मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त कर सके।
कच शुक्राचार्य के पास पहुंचा और अपना परिचय दिया। वो उनके शत्रु का पुत्र था किंतु फिर भी योग्य था इसी कारण शुक्राचार्य ने उसे वापस नही लौटाया, उसे अपना शिष्य बना लिया। कच वही आश्रम में राह कर शिक्षा ग्रहण करने लगा। वही देवयानी को कच से प्रेम हो गया। शुक्राचार्य ने उसे सब विद्या दी किन्तु मृतसंजीवनी का ज्ञान नही दिया।
उधर दैत्यों ने जब जाना कि शत्रु का पुत्र स्वयं शिष्य बन बैठा है तो बड़े घबराये। उन्होंने कच को अकेले में मार डाला। जब शाम को कच वापस आश्रम नही आये तो शुक्राचार्य ने दिव्यदृष्टि से देख लिया कि कच मारा जा चुका है। जब देवयानी को ये पता चला तो उसने रोते हुए अपने पिता को बताया कि वो कच से प्रेम करती है। तब शुक्राचार्य ने मृतसंजीवनी विद्या से कच को जीवित कर दिया।
दैत्यों ने कच को कई बार मार डाला पर देवयानी के कहने पर हर बार शुक्राचार्य उसे जीवित कर देते थे। तब एक बार दैत्यों ने कच को मार के उसे जला डाला और उसकी राख मदिरा में मिला कर शुक्राचार्य को ही पिला दी। इस बार जब शुक्राचार्य ने जब जाना कि दैत्यों ने क्या किया है तो उन्होंने दैत्यों को श्राप दे दिया। ये सब मदिरा के कारण ही हुआ था इसीलिए शुक्राचार्य ने ये विधान बना दिया कि "आज से जो कोई भी मदिरा का पान करेगा, धर्म उसी क्षण उसका साथ छोड़ देगा।"
फिर शुक्राचार्य ने देवयानी से कहा कि अगर इस बार उन्होने कच को जीवित किया तो वो उनके उदर को चीर कर बाहर आएगा जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी। ये सुनकर देवयानी रोने लगी। वो ना अपने पिता को खो सकती थी ना कच के बिना जीवित रह सकती थी। उसने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया।
अंततः शुक्राचार्य ने कच को मृतसंजीवनी से जीवित कर दिया। तब कच ने उनके उदर के भीतर से ही पूछा कि वो बाहर कैसे आये। तब शुक्राचार्य ने कहा कि "पुत्र! मैं तुम्हे मृतसंजीवनी की विद्या देता हूँ। जब तुम बाहर आओगे तो मेरी मृत्यु हो जाएगी। तब तुम उसी मृतसंजीवनी का प्रयोग कर मुझे जीवित कर देना।" ऐसा ही हुआ और अंततः कच को ये विद्या प्राप्त हो गयी।
तब कच ने शुक्राचार्य से वापस जाने की आज्ञा मांगी। तब देवयानी ने कच से प्रणय याचना की जिसे कच ने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि वो उसकी गुरुपुत्री है, उसपर उसके गुरु के उदर से निकलने के कारण वो उसकी सहोदरा भी हो गयी, इसीलिए वो उसकी बहन के समान है। ये सुनकर देवयानी अत्यंत क्रोधित हुई और उसने कच को श्राप दिया - "हे कच! मेरे ही कारण तुम बार बार जीवित हुए, क्या तुम्हें तब समझ नही आया कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ? आज तुम मेरा यूं अपमान कर रहे हो तो जाओ, जिस मृतसंजीवनी विद्या को प्राप्त करने के लिए तुमने ये छल किया, तुम उसे भूल जाओगे।"
ये सुनकर कच को बडा क्षोभ हुआ, उसका सारा श्रम व्यर्थ हो गया। तब उसने भी देवयानी को श्राप दे दिया - "देवी! तुमने अकारण ही मुझे श्राप दिया है इसीलिए मैं भी तुम्हे श्राप देता हूँ कि तुम्हारा विवाह ब्राह्मण कुल में नही होगा। तुम्हे अपने से नीचे कुल में विवाह करना पड़ेगा।"
दोनो का श्राप फलीभूत हुआ। कच मृतसंजीवनी विद्या भूल गए और देवयानी का विवाह क्षत्रिय कुल के सम्राट ययाति से हुआ। शर्मिष्ठा भी दासी बनकर देवयानी के साथ ही गयी और ययाति के सभी पुत्रों से ही समस्त राजवंश चले।
देवयानी के ज्येष्ठ पुत्र यदु से यदुकुल चला जिसमे आगे चलकर 35वीं पीढ़ी में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। वही शर्मिष्ठा के कनिष्ठ पुत्र पुरु से ही पौरव वंश चला जिसमे आगे चल कर कौरवों और पांडवों ने जन्म लिया।साभार शरद सिंह
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