गाँव के थाती-श्रृंखला-29
गाँव के थाती-श्रृंखला-29 -------------------------------- जब हमार पढ़ाई छूटि गइल आ पूरा समय बाबूजी के इलाज करावे चाहे धियान रखे में बीते लागल त कुछे दिन बाद हमार एगो सहपाठी साथी रहलन उ भी इलाहाबाद पढ़त रहलन...जब कुछ दिन हम उनकरा के ना लउकनी तब खोजत-खोजत हमरा गांवे हमरा घरे चोंहप गइलन...अब हम परेशान रहबे कइनी लेकिन उनके देखनी त हमरा रोवाई आवे लागल...खैर सोहटि के गले मिलनी जा कुछ बात विचार भइल नाश्ता पानी लिहनी जा तब पूछे लगलन कि यार तूं बिना बतवले काहें इलाहाबाद छोड़ दिहलऽ हवुआ हम खोजत-खोजत हरान-परेशान रहनीं हंई लेकिन तोहार गांव के नाम हमरा याद रहल हवुए कि भरौली ....तोहार गांव त बड़ा नामी बा हो सब जानता एहिसे हमके तोहरी केहें आवे में कवनो दिक्कत ना भइल हवुए एकदम आराम से आ गइनी हंई। जवन भइल तवन भइल अब चल चलऽ इलाहाबाद...तब हम कहनी कि ए बाबू जब तूं देखत बाड़ऽ कि बाबूजी केहें रहल जरूरी बा फिर छोट भाई-बहिन बाड़न तब कइसे हम एहलोगन के छोड़ि के चल देईं...पइसा-रुपया भी त नइखे...हमार काम कइसे चलता ई हमहीं जानतानी........लेकिन हमार संगी के अइसन अनुभव ना रहल ई जानते ना रहलन कि इलाहाबाद में शान से र