Posts

Showing posts from October, 2023

गाँव के थाती-श्रृंखला-29

गाँव के थाती-श्रृंखला-29 -------------------------------- जब हमार पढ़ाई छूटि गइल आ पूरा समय बाबूजी के इलाज करावे चाहे धियान रखे में बीते लागल त कुछे दिन बाद हमार एगो सहपाठी साथी रहलन उ भी इलाहाबाद पढ़त रहलन...जब कुछ दिन हम उनकरा के ना लउकनी तब खोजत-खोजत हमरा गांवे हमरा घरे चोंहप गइलन...अब हम परेशान रहबे कइनी लेकिन उनके देखनी त हमरा रोवाई आवे लागल...खैर सोहटि के गले मिलनी जा कुछ बात विचार भइल नाश्ता पानी लिहनी जा तब पूछे लगलन कि यार तूं बिना बतवले काहें इलाहाबाद छोड़ दिहलऽ हवुआ हम खोजत-खोजत हरान-परेशान रहनीं हंई लेकिन तोहार गांव के नाम हमरा याद रहल हवुए कि भरौली ....तोहार गांव त बड़ा नामी बा हो सब जानता एहिसे हमके तोहरी केहें आवे में कवनो दिक्कत ना भइल हवुए एकदम आराम से आ गइनी हंई। जवन भइल तवन भइल अब चल चलऽ इलाहाबाद...तब हम कहनी कि ए बाबू जब तूं देखत बाड़ऽ कि बाबूजी केहें रहल जरूरी बा फिर छोट भाई-बहिन बाड़न तब कइसे हम एहलोगन के छोड़ि के चल देईं...पइसा-रुपया भी त नइखे...हमार काम कइसे चलता ई हमहीं जानतानी........लेकिन हमार संगी के अइसन अनुभव ना रहल ई जानते ना रहलन कि इलाहाबाद में शान से र

बड़ा याद आवेला बाबूजी के बतिया

बड़ा याद आवेला बाबूजी के बतिया --------------------------------------------- बड़ा याद आवे हमके बाबू जी के बतिया ना कामे अइहन तोहरे संगी संहतिया। काहें नइखऽ मानत बाबू हमरो बतिया सब भागि जाई तोहरो आई बिपतिया। जबले पइसा रूपिया बाटे तोरे लगिया जेवन कहबऽ सब मानी तोहार बतिया। सभे नीक लागेला जइसे होखे पिरितिया कटेला नीक से बाबू तोहरे जिनिगिया। अइबऽ दुनियादारी में ए बबुआ जहिया अदिमिन के रंग देखबऽ बदलत तहिया। जेहि आगे - पाछे झूले धइके बंहिया उहे करी दुशुमन के संगवा गलबंहिया। हम ना समझ पवनी बाबूजी के बतिया धोखा  खईनी  लुटा गइल हमार थतिया। मिलला पर करेला हंसि हंसि के बतिया  संगही रहिके रहि रहि लगावता  घतिया।  बड़ा  मन परे  हमार बाबूजी  के बतिया सभे लोग त रहते रहल जइसे  घरतिया। हमार अथेघा  परल देखलन  संहतिया  कटेले तिरिछे  जइसे लूटब हम थतिया।                 ------------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

उपर से प्रेम भीतर से नफ़रत बा

उपर से प्रेम भीतर नफ़रत बा ------------------------------------- अदिमी के गजब के फितरत बा उपर से प्रेम भीतर नफ़रत बा। उनके हालत मशरूम नियन बा खाये के बा , मशरूम कहत बा। काम नइखे कुकुरमुत्ता कहत बा जब फायदा त नीमन कहत बा। जब काम बा तबे उ महान बा नइखे काम त खराब कहत बा। काम होते शेखी बघारत बा मोका पर सबसे काम लेत बा। सिर्फ अदिमिये एगो बुद्धिमान बा बुद्धि से दोहरा चरित्र जियत बा। अदिमी समूह में  कुछ  रहत बा अकेल  होत  दोसर  हो जात बा। अपना  बल  केहू आगे बढ़त बा हार  के   डरे   जाति  देखत  बा। जब गायक  नीक  ना  पावत बा फिर   भजन  सुनावे  लागत  बा। त  आदमी ना  समझ  पावत बा दूसरा   के   बनल  बिगारत  बा।                     ---------++++-------- राम बहादुर राय  भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश

जय भोजपुरी-जय भोजपुरांचल

राम बहादुर राय ( भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश):-सबसे पहिले दशहरा के बहुत बहुत बधाई अउरी शुभकामना बा अउरी विनती बा.... एगो हमार निहोरा बा भोजपुरिया समाज से : भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में होखे के चाहीं।। जय भोजपुरी जय भोजपुरिया समाज!!! ------------------ हम कहतनी भोजपुरिया समाज से होखो एगो बईठक अब गांवे -गिरावें। आ भर भोजपुरियन भाई बहिनी के नेवतल जाव आवे खातिन सबहर । कारन रहल ई कि भाईलोगन सोचीं छोटके के मणिपुरी भाषा आ डोगरी आठवीं अनुसूची में शामिल हउवे तब सबसे ढेर लोग काहे रही कगरी। आ अब ठीक से लड़ाई होखे चाहीं तबे भोजपुरी के बात होखी सगरी। चलल जाव गांव-गांव मिले खातिर आ घरे-घरे केहूतरे हमनी के अबरी। भोजपुरी के  शामिल करवावल जाव आठवीं  अनुसूची में हमनीके जबरी। आ ना चेतनी  जा हमनी के अबरी त टुकुर टुकुर तकबै  बइठि के एकगरी। अपन माटी, थाती भाषा जब ना रही  धकियावल जइब जा अकेला सगरी।                ------------------ रचना स्वरचित,मौलिक अउरी अप्रकाशित @सर्वाधिकार सुरक्षित।। राम बहादुर राय भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश

नेह में तोहरा हम बिका गइनी

नेह में तोहरा अन्हुवा गइनी ---------------------------------- नेह के डोर में हम बन्हा गइनी तोहरे बोल पर हम आ गइनी। तूं हमरा के बुरबक बूझलऽ नेह में तोहरा अन्हुवा गइनी। ना जानत रहीं धोखा करबऽ संवसे दिल तोके थम्हा दिहनी। जमाना भी हमके बरजत रहे तबो दाब-चांति के आ गइनी। बिच्छू के कामे ह डंक मारल डंक सहिके तोके बचा गइनी। तूं बूझलऽ कि हम ना बूझनी नेह में तहरा त झोंका गइनी। नेह-छोह केहू से मिलि जाला समझिहा उहंवा चोंहप गइनी। हमहूं भोजपुरिये बेटा हंई धोखा खाके भी अघा गइनी। अब जेकर रामे ना बिगरिहें काहें बूझिलऽ कि डेरा गइनी।   ----------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

देखते बगुले हंस के सपने

देखते बगुले हंस के सपने -------------------------------- छोड़ द्रुमों की कल्प छाया चले निराकृत हो आसक्त। वैदेही देह तजि खड़ी हुई जैसे खड़ा हो अनल तृप्त। फुदक रही अशान्त क्षुधा शान्त होकर मानो विरक्त। देखते बगुले हंस के सपने छीनते हैं झख के अनुरक्त। मारें कुलांचे ताड़ पर बौने ताने मारते जैसे हैं सशक्त। फ़जर उदास होकर बैठे हैं फना होंगें जैसे अभिशप्त। मारीच के वेश में विभीषण नैतिकता स्वत: है विभक्त। चल रहा अदृश्य कालखंड सत्य पस्त झूठे घूमते उद्वत। लिख रहे हैं भाग्य अभागे खड़ग शिला पर हर वक्त। भाग्य कोस रही अपने को अभाग के हाथ हैं  शसक्त। प्रभा  खेलती  निशा के घर घात प्रतिघात का यह वक्त।             ----------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

नीमन करबऽ त नीमन पइबऽ

नीमन करऽ नीमन पइबऽ -------------------------------- अबहीं तूहूं जवान बाड़ऽ कहियो तूहूं बूढ़ा जइबऽ। आज शेखी बघारत बाड़ऽ एक दिन तूहूं जुड़ा जइबऽ। दू बैंड क रेडियो पा जइबऽ तूहूं अइंठल भुला जइबऽ। केतनो तिसमारखां होखबऽ भींजल बिलार होई जइबऽ। गांती बन्हबऽ ,लार पोछबऽ जवन बाड़ऽ ना रहि पइबऽ। कहतानी भरम मत पलिहऽ विधान नाहीं बदलि पइबऽ। जवने-जवन कईल करबऽ एकदिन उहे तूहंवू पइबऽ। अगर कुछवू करहीं के बाटे नीमन करऽ नीमने पइबऽ।       --------------- रचना स्वरचित,मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

गाँव के थाती श्रृंखला-25

गाँव के थाती-श्रृंखला-25 ------------------------------- हमरा गांवे चाहे ढ़ेर गांवन में खेत पटवन के एगही साधन रहल जवन कि सरकारी टिबुल कहात रहल..आजुवो कहाला आ अभी बटलहूं बाटे। बहुत दूर-दूर तक समझल जाव कि एक से दूई कोस में एगही सरकारी टिबुल होखे..ओही से सबकरे खेत पटावल जात रहल काहें कि आज वाला इतजाम त रहल ना..खेत के पटवन नहर से होत रहल जइसे सब मिलि के अपन पारी बान्हि लेबे कि कब केकर खेत पाटी...जेकर नम्बर आवे उ टिबुले पर जाके लाइन के इंतजार में जगरम करे आ उनकर पाटे से पहिलहीं सब हरबा हथियार के संगे दूई गो अउरी लाइन में लागल रहल। ओह समय सरकारी टिबुल भी हहहहऽ पानी देत रहल काहें से कि अउरी कवनो पानी निकाले वाला चीझ रहबे ना कइल आ रहे त इनार...हई चापाकल भी ना रहल नाहीं कवनो डीजल वाला पंपिंग सेट। अब का होखे कि गोल-गोलइती, गोहार भी खूब होखे एहघरी लेखा मुंह धइले रहऽ आ गर्दन काटत रहऽ इ सब ना रहल एकदम सीधे लड़ाई कइल जात रहल। अब गाँव के लठइत बरियारा होखस त भला उ नम्बर के इंतजार कइसे करिहन,जब उनकर मन करे पांच गो सवांग ले जाके नहर के पानी काटि के अपना खेत में गिरा देत रहसु अब बोली के...... #समरथ को न

परिस्थितियां बदलेंगी कोशिश करनी चाहिए

कबो-कबो बड़ा मन परे लरिकइंया ------------------------------------------ बड़ा मन परे हमरा लरिकइयां के बतिया चलावत रहिंजा बरखा में कागज के नइया। खेलल करिंजा दादी बाबा के अंगनइया धूरिया में लोटत गिरि के रामजी के भुइंया। दिन भरे संगे रहिंजा रात चकवा-चकइया खूब लड़िंजा बाद में मिलिंजा हम तूं भइया। ओल्हा-पाती ,चीका-कबड्डी खूबे खेलिंजा चोर-सिपाही , गुल्ली डंटा अउरी लटुइया। अइसने बुझाला आइत फेरू लरिकइंया बनि के धूमितीं अपना आंगन में बकइंया। माई सुतइती हमके गोदिया झुलाइके अंचरा के नेह से डूबल रहितीं दिन रतिया। चन्दा मामा आरे आवऽ सुनि  के खइतीं  बबुआ  के  दूध-भात से  भरित कटोरिया। कुछ खईतीं  कुछ चुपे कुकुरो के खियईतीं  उचरत कागा  देखितीं घरवा  के मुड़ेरिया।  कबो-कबो  बड़ा  याद  आवेला लरिकइंया उठिती गिरितीं अंगनवा में खींचत बकइयां।                    ----------------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

कबो कबो बड़ा मन परे लरिकइंया

कबो-कबो बड़ा मन परे लरिकइंया ------------------------------------------ बड़ा मन परे हमरा लरिकइयां के बतिया चलावत रहिंजा बरखा में कागज के नइया। खेलल करिंजा दादी बाबा के अंगनइया धूरिया में लोटत गिरि के रामजी के भुइंया। दिन भरे संगे रहिंजा रात चकवा-चकइया खूब लड़िंजा बाद में मिलिंजा हम तूं भइया। ओल्हा-पाती ,चीका-कबड्डी खूबे खेलिंजा चोर-सिपाही , गुल्ली डंटा अउरी लटुइया। अइसने बुझाला आइत फेरू लरिकइंया बनि के धूमितीं अपना आंगन में बकइंया। माई सुतइती हमके गोदिया झुलाइके अंचरा के नेह से डूबल  रहितीं दिन रतिया। चन्दा  मामा आरे  आवऽ  सुनि  के खइतीं  बबुआ  के  दूध-भात से  भरित कटोरिया। कुछ खईतीं  कुछ चुपे कुकुरो के खियईतीं  उचरत कागा  देखितीं घरवा  के मुड़ेरिया।  कबो-कबो  बड़ा  याद  आवेला लरिकइंया उठिती गिरितीं अंगनवा में खींचत बकइयां।                    ----------------------- रचना स्वरचित अउरी मौलिक  @सर्वाधिकार सुरक्षित। । राम बहादुर राय  भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश