गाँव के थाती-श्रृंखला-29

गाँव के थाती-श्रृंखला-29
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जब हमार पढ़ाई छूटि गइल आ पूरा समय बाबूजी के इलाज करावे चाहे धियान रखे में बीते लागल त कुछे दिन बाद हमार एगो सहपाठी साथी रहलन उ भी इलाहाबाद पढ़त रहलन...जब कुछ दिन हम उनकरा के ना लउकनी तब खोजत-खोजत हमरा गांवे हमरा घरे चोंहप गइलन...अब हम परेशान रहबे कइनी लेकिन उनके देखनी त हमरा रोवाई आवे लागल...खैर सोहटि के गले मिलनी जा कुछ बात विचार भइल नाश्ता पानी लिहनी जा तब पूछे लगलन कि यार तूं बिना बतवले काहें इलाहाबाद छोड़ दिहलऽ हवुआ हम खोजत-खोजत हरान-परेशान रहनीं हंई लेकिन तोहार गांव के नाम हमरा याद रहल हवुए कि भरौली ....तोहार गांव त बड़ा नामी बा हो सब जानता एहिसे हमके तोहरी केहें आवे में कवनो दिक्कत ना भइल हवुए एकदम आराम से आ गइनी हंई। जवन भइल तवन भइल अब चल चलऽ इलाहाबाद...तब हम कहनी कि ए बाबू जब तूं देखत बाड़ऽ कि बाबूजी केहें रहल जरूरी बा फिर छोट भाई-बहिन बाड़न तब कइसे हम एहलोगन के छोड़ि के चल देईं...पइसा-रुपया भी त नइखे...हमार काम कइसे चलता ई हमहीं जानतानी........लेकिन हमार संगी के अइसन अनुभव ना रहल ई जानते ना रहलन कि इलाहाबाद में शान से रहिके पढ़े वाला लड़िका जे कबो केहू से उधार ना मंगले होखे आ केहू से कम ना रहत रहे उ गरीब होई...बात भी उनकर सही रहे हमार बाबूजी हमके पइसा के कमी कबो महसूसे ना होखे दिहलन चाहे केतनो करज गुलाम होत रहल।
मतलब ई बा कि हमार साथी कहलन कि कवनो बात नइखे बाबूजी के भी इलाहाबाद लियवले चलल जाई आ भाई-बहन के सब इंतजाम कर दियाई....लेकिन अब हम का कहीं कि हमरा लगे पइसे नइखे...खैर कइसहूं झूठ-सांच बोलिके उनुके विदा कइनी। जब बाबूजी के हालत में कुछ सुधार आइल तब हमके अपना लगे बोलवा के कहलन कि ए बबुआ अब तोहार पढ़ाई भी छूटि गइल बा त एगो काम करऽ हम चिठ्ठी लिखि देत बानी भैया केहें उ कई गो लड़िकन के नोकरी लगववले बाड़न फिर तूं त उनकर आपनो से बढ़िके बाड़ऽ.....काहें से कि उनकर जन्म हमरे घरे हवुए आ हमार बाबूजी अर्थात तोहार बाबा जी उनकर जिनिगी संवरले हवुवन जहिया उनकर कवनो आहि अलम ना रहल तब पंडित गोरखनाथ उपधिया जी से सहयोग लेइके उनकर रक्षा कइलन खेत-खरिहान बचवलन।जब उ पेट में रहलन तबे उनकर पिता जी के शरीरान्त हो गइल रहल तब अपने घरे ले अइलन आ इहंवे से सब काम उनकर कइलन...उनका के बनावे में अपरोक्ष रुप से पंडित गोरखनाथ उपधिया जी के भी हाथ रहल बा उ भले मनले होखस चाहे ना हमनी के त जानते बानीं जा..एकर भी वजह बा कि पंडित गोरखनाथ बाबा काहें साथ दिहलन....हमार गुरुघराना पंडित जी केहें हवुए आ तोहार बाबा बसाउ राय जी हरदम संगहीं रहत रहलन....एक दिन भी अलग ना रहत रहलन जा पंडित जी भी बाबा के तोहरा कई गो घाट के सोसाइटी के प्रमुख बना के सम्मान से रखले रहलन आ अजुवो भी वोइसहीं सम्बन्ध जुटल बा...गुरुमुख वगैरह चाहे कवनो कार-परोज हमनी के उहें सब के अगुवाई में होखेला...अक्षत आजुवो उनही के घर से आवेला...हालांकि उ लोगन के केहू का दे सकेला अपने अगाध धन-सम्पदा एतना बा कि कवनो गिनती जल्दी संभव नइखे...विचार आज भी बहुत सरल रहेला ओह लोगन के आ हमरा घर-परिवार के सहयोग आज भी करत रहेलन जा।
...बाबूजी कइसहूं हाथ कंपावत भैया के चिठ्ठी लिखलन आ एगो लिफाफा में सटवा के दिहलन ई कहि के चलि जा हमार भैया हमनी के बहुत मानेलन आ हमार बाबूजी उनकरा खातिर अपन जान हथली पर लेके उनके बचवले हवुवन त उ जरूर तोहरा खातिर कुछ नीमन करिहन हमरा पूरा भरोसा बाटे....आ हम अब ढ़ेर दिन ना जियब फिर तूं कइसे का करबऽ घर के बनवइबऽ कि छव जना बाड़जा जवना में तोहार चार गो बहुत बाड़िसन कइसे बियाह शादी होखी अभी त पढ़ावे के परी फिर बिना कमाई के नौ गो अदिमिन के परिवार कइसे चली....बड़ा मुश्किल बा हमरा बेमारी में पइसा लागते बा...तोहरा के पढ़ाई-लिखाई में पहिलहीं से करजा पुरहर बा....अब हमरा उ चिठ्ठी बाबूजी के कहला पर लेइये जाये के रहल लेकिन हम हित-नात के ताना सुनत-सुनत पहिलहीं से पाकि गइल रहनी....ओहनी के जब कवनो काम रहल करे हमनी से तब कहसु जा कि तोहन लोग खानदानी बाड़जा गाँव में एगो इज्जत बाटे लेकिन जब काम ना रहे तब कहेसन कि तोहनी के का बाटे....हमनी में मिलबऽ सन....चिठ्ठी लेइके गइनी मिले खातिर...हित जी के दुवारी पर जाके दरवाजा खटखटवनी...घंटी बजवनी त हमरा बुझाइल कि गेट में एगो बिलुकी बा...ओहिमें से केहू झांकि के फिर से घर में चलि गइल हवुए....आधा घंटा के बाद कुछ खुसुर-फुसुर के आवाज आवत रहल कि...जब आ गइल बाटे त गेटवा खोलहीं के नू परी पता ना कवना काम खातिर आइल बाटे...खैर जलपान वगैरह करवा के भेजि दिहऽ जा....कहा जाई कि हमनी के बनारस जायेके बाटे एक घंटा में तब अपनहीं उठि के चलि जइहन।
.....गेट खुलते पूछलन कि कवनो काम बा का आ कइसे चललऽ हवुआ आ एहर का आइल बाड़ऽ...ठीक बा बइठऽ..तब हम बइठ त गइनी लेकिन हमरा मन करत रहल कि उठि के चलि दिहीं एकनी केहें से लेकिन का करीं बाबूजी के बात रहल मजबूरी रहल। कुछ देरी के बाद एगो दूगो मगदल आइल प्लेट में तब अनमने मन से एगो लिहनी आ एक गिलास पानी पियनी फिर चाह भी आइल...खैर अब उहां के अइनी त चिठ्ठी देबे से पहिलहीं पूछलन कि कइसे चलल बाड़े तब बाबूजी के बेमारी के संगे-संगे सब कुछ बतवनी फिर हमार आंख लोर से भरभरा गइल लेकिन उ कठकरेज अदिमी ना त बाबूजी के हालत पर एको शब्द कहलन ना कवनो तरह के सहानुभूति अउरी त अउरी चिठ्ठी भी ना लिहलन आ कहलन कि पइसा-रुपया के लिखल होई तब हम कुछ ना कर पाइब खैर आइले बाड़ऽ त पढ़ि के सुनावऽ... अब बाबूजी के आधा चिठ्ठी पढ़ते हम रोवे लगनी आ मन में इहे बुझाव कि भले हम रुक्सा चाहे ठेला चला लिहितीं लेकिन एह कठकरेजन केहें आइल ठीक ना रहल हवुए.. लेकिन अभी इंतजार रहल कि देखीं इहां के चिठ्ठी के जबाव का देत बानी जबकि हमरा मन में पहिलहीं से खटका त रहबे कइल बजह ई रहल कि एकबेर हम 11 वीं में उहंवे आपन नाम लिखवा लिहनी आ दू-तीन महिना बीतला के बाद सोचनी हमार हितई-नतई बा चलीं तनी भेंट करि लिहीं हमरा के बढ़ल देखिके बड़ा खुश होई सब लोग तब हम लड़कपन में चलि गइनी..तब आदर-भाव खूब भइल लेकिन पूछलन जा कि कवनो काम बा कइसे एहिजा आइल बाड़ऽ तब हमरा मुंह से निकलि गइल कि हम एहिजे आपन नाम लिखववले बानी पढ़े खातिर....अब बुझाव कि हम बहुत बड़ अपराध करि दिहले बानी..लगलन हमरा पर आंख-मुंह टेढ़-सोझ करे लेकिन इ त बुझाइये गइल कि जब नाम लिखाइल बाटे तब एहिजे पढ़ी अब त नाम कटवाइ नाहिंये तब अकिल लगवलन लोग कि ठीक बा आइये गइल बाड़ऽ तब केहू का करी लेकिन एगो काम करिहऽ...हमरा केहें रहे के कवनो व्यवस्था ना हो पाई हं जब तक खाना बनावे में दिक्कत बा तब सुबह-शाम आकर के खाना वगैरह खा सकेलऽ रहल, बात रहला के तब हम एगो किराया के घर खोजवा देत बानी अउरी पता नाहीं कवन-कवन पुरान उलाहना दिहल लोग फिर हम अन्त में बतवनी कि हम किराया के मकान में दू महीना से रहतबानी आ खाना भी बना लिहिना काहेंसे कि हमार माई बेमार होखसु तबे हम सीखले रहनी बनावे नाहीं त हमार भाई-बहिन का खइतन, आ हम एहिजा खून-खानदान के चलते एगो प्रेम उमड़ल हवुए हमरा मन रवुंआ सब खातिर तब हम मिले खातिर चलि अइनी हंई, हम रोज एहि पड़े साइकिल से कमरा पर जाइले तब हमार अपनहीं गोड़ बढ़े लागल हवुए रोकत-रोकत अब का करीं ना रोक पवनीं हंई तब आवेके परल हवुए लेकिन अब ई बुझाता बहुत बड़ गलती हम इहंवा आके कर दिहनी आ इहो जानि लिहीं कि हमार बाबूजी के कहनाम हवुए कि ए बबुआ तूं पढ़बऽ त खेत-बारी का कहाला हो अपन देहिंयो बेचि के तोहके पढ़ाइब लेकिन कवने हितई-नतई के सहयोग हम ना लेइब आ उ लोग हमरा खातिर सहयोग करबो ना करिहन जा हम खूब जानतानी....तब केहू के ओरियानी केहू के डंगे आपन लड़िका के ना लगाइब चाहे गुदे-गूद उड़ि जाइब हम।
जब हमार पूरा उत्तर सुनलन जा तब त होशे उड़ि गइल अब बोली आ गोली,तीर कमान से छूटि गइल निकलि गइल तब वापस त आई ना फिर अपन बात से गोल-मटोल घुमावे लागल लोग कि आहि दादा ई त हमनी से कवनो फायदा खातिर ना आइल बा हमनी के गलत बोलि दिहनीं जा फिर तमाम परकार के झूठिया दिलासा दिहल लोग जवन एगो अदना आदमी भी समझ सकेला. ..हम कुछ देर बा बिना कुछ खइले पियले चलि अइनीं अपना कमरा पर।
जब पूरा चिठ्ठी के बात हम पढ़ि के सुना दिहनी तब कहलन कि.....# मतलब कि तोहके नोकरी चाहीं...ठीक बा नोकरी त सभे खोजता कुछ फारम ओरम भरल करऽ. ...अरे अभी न खोजे शुरू कइलऽ हवुए केतने जना के जिनिगी लागि जाता नोकरी कहां मिलता आ परवेट कहऽ त कहीं रखवा दिहीं....अच्छा तूं घरे चलि जा ना त अन्तिम बसवा छूटि जाई तब कइसे जइबा. ..आ हम बाद में सूचना भेजवाइब तब अइहऽ.....केतना बरिस बीति गइल आभी तक सूचना भेजते रहि गइलन आ उहो अब.........
हमरा सबसे दुख पंहुचल कि उ आदमी हमरा बाबूजी के चाहे परिवार खातिर दू शब्द सहानुभूति के बोल ना बोललन जेकर पिता उनकरा खातिर पूरा जीवने लगा दिहले रहल आ उहो उनकर सब काम करते रहि गइल पढ़बो ना कइलस...अब हम चिठ्ठी लिहनी अपना घरे अइनी अब महादेव जी के आसरा पर चले लगनी..सब उनहीं के किरिपा से ठीक-ठाक चलिये रहल बाटे।
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आलेख स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय 
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

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