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Showing posts from February, 2022

हमारी पहचान

पहचान हमारी ------------------- हमारी यह पहचान समझिये आंसूओं को मुस्कान समझिये                 टीस,चीख, और ज़ख्मी मंजर                 शहर को श्मशान ही समझिये मुश्किल से मिलती रोटी उनको ये है ग़रीबी की दास्तान समझिये                  करते काम तो मिलती मजदूरी                  इसको मत एहसास समझिये जो अक्सर ही हंसते रहते हैं उनके दिल सुनसान समझिये                   चुभेंगे ही रोज़ कांटे भी दिल में                    फूलों से भी नुकसान समझिये राम बहादुर राय "अकेला " भरौली, नरहीं, बलिया ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड:२७७५०१ स्वरचित एवं मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

परिचय एक नज़र में:-

नाम:-राम बहादुर राय पिता:-श्री रामायण राय माता:-श्रीमती मालती देवी पत्नी:-श्रीमती आराधना राय (मनोविज्ञान में शोधार्थी) जन्म:-मजदूर दिवस 01 मई। कार्य-स्वतंत्र पत्रकारिता, कविता, कहानी, निबन्ध लेखन भूतपूर्व मानवाधिकार कार्यकर्ता (डिप्युटी चीफ़ सेक्रेटरी बलिया-एजुकेशन-अन्तर राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन),                                शिक्षक शिक्षा-दीक्षा :- शिक्षा तो नाममात्र की है पढ़ नहीं पाया अभावग्रस्त था फिर भी कुछ है --- एम.ए.:- हिन्दी साहित्य, इतिहास                          और पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मानवाधिकार और कर्तव्य,(PGDHR& Duties) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन,(PGDJMC)                         बी.एड.(B.Ed.) पता:-ग्राम व पोस्ट -भरौली,थाना-नरहीं जनपद-बलिया, उत्तर प्रदेश, पिन कोड-277501 सीमांत कृषक पिताजी का खेती में हाथ बंटाने का कार्य शुरूवात में करता रहा लेकिन अभावग्रस्त और किसी का किसी तरह का सहयोग नहीं मिलने की वजह से मेरे रिश्ते में बड़े पिता डॉ श्री विवेकी राय जी को देखकर मन में ललक जगी कुछ कर जाने की तो मेरे घर के नजदीक ही मेरे परम मित्र

भूमिका के दो शब्द

सर्वभाषा ट्रस्ट नई दिल्ली की लोकप्रिय काव्य श्रृंखला से मैं भी जुड़ गया हूं।इस उपक्रम से अपने प्रिय पाठकों को नये तरीके से अपने उपजीव्य गांवों,शहरों, आधुनिकता के दिन प्रतिदिन बदलते आयामों को लाकर रखा हूं। यद्यपि कि ऐसा लग रहा है कि अब पूरा का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है मानो गांव, गरीब, किसान, मजदूर सब निष्प्राण हो गये हैं और सारे देवस्थलों पर किसी का कब्जा हो गया है। चूंकि मैं शुद्ध रूप से एक दलित किसान मजदूर का गंवई कवि हृदय व्यक्ति हूं मुझे गांव अति प्रिय है। अन्दर से लगता है,सम्भावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं अभी भी देखा जाए तो बड़े बड़े चकाचौंध वाले नगरों, महानगरों को भी संवारने का काम हमारी गंवई प्रतिभाओं ने ही किया है।यह पूर्णतया सत्य भी है कि गांव, गरीब, किसान, मजदूर ही मुख्य उर्जा है इस पवित्र देश की ,सच कहें तो यही राष्ट्र की आत्मा हैं। मेरी सामाजिक पृष्ठभूमि भी पूर्व  उत्तरप्रदेश के दो प्रमुख जिलों गाजीपुर, बलिया और उसमें भी मेरा गांव भरौली जहां महर्षि विश्वामित्र जी की पावन भूमि बक्सर का त्रिकोण है । यहां की माटी में विविध रंग भरा पड़ा है ।मेरी लिखी कविताएं ज्यादा तो अनुभव की ग

आम आदमी

आज आदमी कितना उलझा है सिर्फ अपने लिए वो सुलझा है अपनी गलती दिखती नहीं उसे दूसरे का सही भी ग़लत लगता है अपने गलत करके सही कहता है हर आरोप निर्दोष पर मढ़ता है एक"अकेला"सच के लिए लड़ता है पूरा जमाना उसके पीछे पड़ता है साथ साथ बड़े ही प्रेम से रहते हैं पर वो पीछे चाकू लेकर रहते हैं एक तरफ शान्ति की बात होती है दूसरी तरफ घुसपैठ की जाती है घोषणा पत्र में जो भी बात होती है चुनाव बीता तो बीती बात होती है हर रोज उनसे मुलाकात होती है मुद्दे पर तो नहीं कभी बात होती है क्या सच है क्या ग़लत नहीं पता है क्योंकि हम स्वयं में ही उलझे हुए हैं हमें जो अच्छा है उसको वह लेते हैं दूसरे के लिए उसे बुरा हम बताते हैं ग़ज़ब की सियासतदान है आदमी  साथ रहकर ही सबको लड़ाते हैं अमन चैन कायम कर लेती जनता लेकिन सियासत आड़े आ जाती है                   ----------------- राम बहादुर राय "अकेला" अध्यक्ष भोजपुरी विकास मंच बलिया उत्तरप्रदेश