भूमिका के दो शब्द
सर्वभाषा ट्रस्ट नई दिल्ली की लोकप्रिय काव्य श्रृंखला से मैं भी जुड़ गया हूं।इस उपक्रम से अपने प्रिय पाठकों को नये तरीके से अपने उपजीव्य गांवों,शहरों, आधुनिकता के दिन प्रतिदिन बदलते आयामों को लाकर रखा हूं। यद्यपि कि ऐसा लग रहा है कि अब पूरा का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है मानो गांव, गरीब, किसान, मजदूर सब निष्प्राण हो गये हैं और सारे देवस्थलों पर किसी का कब्जा हो गया है। चूंकि मैं शुद्ध रूप से एक दलित किसान मजदूर का गंवई कवि हृदय व्यक्ति हूं मुझे गांव अति प्रिय है। अन्दर से लगता है,सम्भावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं अभी भी देखा जाए तो बड़े बड़े चकाचौंध वाले नगरों, महानगरों को भी संवारने का काम हमारी गंवई प्रतिभाओं ने ही किया है।यह पूर्णतया सत्य भी है कि गांव, गरीब, किसान, मजदूर ही मुख्य उर्जा है इस पवित्र देश की ,सच कहें तो यही राष्ट्र की आत्मा हैं। मेरी सामाजिक पृष्ठभूमि भी पूर्व
उत्तरप्रदेश के दो प्रमुख जिलों गाजीपुर, बलिया और उसमें भी मेरा गांव भरौली जहां महर्षि विश्वामित्र जी की पावन भूमि बक्सर का त्रिकोण है । यहां की माटी में विविध रंग भरा पड़ा है ।मेरी लिखी कविताएं ज्यादा तो अनुभव की गई स्वयं: स्फूर्त हैं अतः इन कविताओं के माध्यम से मैं आत्म उर्जा के इर्दगिर्द वाली स्याह -सफेद स्थितियों,विकट,विषम परिस्थितियों वाली संवेदनाओं को हृदय तल पर पठनीय चित्र में उतारने के लिए संकल्पित हैं।
हमें लगता है कि यहीं से संभावनाओं की खोज आरम्भ हो सकती है।एक और मर्म स्पर्शी शिल्प के सहारे इस कलाकक्ष में प्रवेश कर पाठक कुछ संवेदित और उत्प्रेरित हो सकें:इसी कामना के साथ हिंदी संसार की अपनी ये यथार्थ कविताएं जो स्वयं उसमें रहकर लिखी गई हैं उसे सौंप रहा हूं।
---राम बहादुर राय
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