आम आदमी

आज आदमी कितना उलझा है
सिर्फ अपने लिए वो सुलझा है

अपनी गलती दिखती नहीं उसे
दूसरे का सही भी ग़लत लगता है

अपने गलत करके सही कहता है
हर आरोप निर्दोष पर मढ़ता है

एक"अकेला"सच के लिए लड़ता है
पूरा जमाना उसके पीछे पड़ता है

साथ साथ बड़े ही प्रेम से रहते हैं
पर वो पीछे चाकू लेकर रहते हैं

एक तरफ शान्ति की बात होती है
दूसरी तरफ घुसपैठ की जाती है

घोषणा पत्र में जो भी बात होती है
चुनाव बीता तो बीती बात होती है

हर रोज उनसे मुलाकात होती है
मुद्दे पर तो नहीं कभी बात होती है

क्या सच है क्या ग़लत नहीं पता है
क्योंकि हम स्वयं में ही उलझे हुए हैं

हमें जो अच्छा है उसको वह लेते हैं
दूसरे के लिए उसे बुरा हम बताते हैं

ग़ज़ब की सियासतदान है आदमी 
साथ रहकर ही सबको लड़ाते हैं

अमन चैन कायम कर लेती जनता
लेकिन सियासत आड़े आ जाती है
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राम बहादुर राय "अकेला"
अध्यक्ष भोजपुरी विकास मंच बलिया उत्तरप्रदेश

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