गाँव के थाती श्रृंखला-25
गाँव के थाती-श्रृंखला-25
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हमरा गांवे चाहे ढ़ेर गांवन में खेत पटवन के एगही साधन रहल जवन कि सरकारी टिबुल कहात रहल..आजुवो कहाला आ अभी बटलहूं बाटे। बहुत दूर-दूर तक समझल जाव कि एक से दूई कोस में एगही सरकारी टिबुल होखे..ओही से सबकरे खेत पटावल जात रहल काहें कि आज वाला इतजाम त रहल ना..खेत के पटवन नहर से होत रहल जइसे सब मिलि के अपन पारी बान्हि लेबे कि कब केकर खेत पाटी...जेकर नम्बर आवे उ टिबुले पर जाके लाइन के इंतजार में जगरम करे आ उनकर पाटे से पहिलहीं सब हरबा हथियार के संगे दूई गो अउरी लाइन में लागल रहल।
ओह समय सरकारी टिबुल भी हहहहऽ पानी देत रहल काहें से कि अउरी कवनो पानी निकाले वाला चीझ रहबे ना कइल आ रहे त इनार...हई चापाकल भी ना रहल नाहीं कवनो डीजल वाला पंपिंग सेट। अब का होखे कि गोल-गोलइती, गोहार भी खूब होखे एहघरी लेखा मुंह धइले रहऽ आ गर्दन काटत रहऽ इ सब ना रहल एकदम सीधे लड़ाई कइल जात रहल। अब गाँव के लठइत बरियारा होखस त भला उ नम्बर के इंतजार कइसे करिहन,जब उनकर मन करे पांच गो सवांग ले जाके नहर के पानी काटि के अपना खेत में गिरा देत रहसु अब बोली के......
#समरथ को नहीं दोष गोसाईं#
गोस्वामी जी के लिखल चरितार्थ होखे हालांकि आज त लोकतंत्र बाटे लेकिन बुझाता कि कुछ हद तक अजुवो बटलहीं बा।कबो-कबो त पटवन खातिर महाभारत नियन युद्ध के मैदान हो जात रहे लागे लाठी-लठवुवल होखे केहू के कपार फाटे त केहू के कवनो अंग टूटे-फूटे। आ सबसे बड़ बात ई रहे कि दूनो गोल के तरफ से लड़े वाला भी दूसरे-दूसर रहे।तब पंचाइत होखे...कुछ दिन बाद सब फिर से संगहीं बइठे-उठे लागे।
# जिसकी लाठी उसकी भैंस#
# Might is Right #
जब सब खेत के अनाज पाकि जात रहल तब कटनी खातिर सभकर बनिहार भी अपन-अपन रहलन..उहे लोग पहिले खरिहान के पूरा इंतजाम भी करत रहलन तब कटनी के काम लागत रहल...एक हप्ता पहिलहीं से सब लोगन के घरे जाके चलावा दियात रहे कि ए सुनजा हो तनी तोहन लोग खेत ओर कबो मोका मिली त देखि लिहऽ जा कि कहिया काटे लायक रही...तब उ सब जाके खेत में देखत रहे आ दू चार अदिमी से सवाचि लेत रहलन फिर एगो निर्णय कइल जाव कि फलाना दिन कटाई। जहिया समय रहे ओह दिन तीन-चार बजे भोरे में सब सामान लेइके खेते झुंड में चलि जाव फिर देवी देवता के गोहराई के सब आपन एगो पाहि छेकि लेत रहे आ कुछ फसल त अपना हाथहीं कटा जाव कुछ खातिर हंसुवा के काम परत रहे। पूरा खेत के कटनी के बाद पलिहर फसल के अनुसार एक-दू दिन पल्हार छोड़ल जाव ओकरे बाद में बोझा बान्हल जात रहे फिर सब काटे वाला लोग अपन बनि,अंटिया, बिछवना अलगे रखिके बोझा एक जगह गांजल जाव चाहे खेत से माथ पर लेके खरिहानी में रखाव। अब बनिहार लोगन के बनि निबारे के काम होखे तब निबारि के बोझा एक जगह टाल लगा दिहल जाव। जब पूरा मउजा के खेतन के कटनी होखला के बाद सब खरिहान में आ जाव तब एक- एक जगह मसूरी,लतरी,चना,जव,गहूं, सरसों, तीसी, बर्रे, मटर के बोझा के टाल लगा दियाव..
बाद में अरहर के कटनी होखे....उ गंड़ासी से काटल जात रहल काहें से कि ओह समय के आ आज के अरहर के फसल में भी भारी अन्तर बाटे, अब अरहर के पौधा पहिले नियन नइखे लउकत..पहिले के जहां तक हमरा मन परता बाबूजी-बाबा लोग कहे कि अरहर चाहे रहर भी कहाला हमनी केहें...खेत खांखर बोवे के चाहीं तबे खूब फइल लेके फइली
अब अंटिया रहे कि रोज-रोज के कटनी खातिर रहे कि जेतना दिन काम होखे ओकरे अनुसार अंटिया बान्हे लोग...बिछवना के मतलब रहे कि छोट बच्चा के नाव पर दियात रहल...अब बनि निबारल जात रहल मतलब कि सोरहिया रहे...एगो बनिहार सोरह बोझा काटे-बान्हे तब एगो बोझा उनकर होखे लेकिन उ बोझा विशेष रहे ओकरा में अनाज दू-तीन बोझा के बराबर गिरे...मालिक जे रहे ओकरा पता होखे लेकिन कहे कि बहुत मेहनत करेला लोग त उनके चाहबे करी काहें से कि बहुत इमानदार भी बाड़न लोग...तनिको लालच ना करे लोग तब आपन फरज बा कि हमनियों के धियान दिहल जाव..कबो-कबो ओहल लोग के कवनो चीज घटि जाव चाहे बेटी-बहिन के बियाह परे तब आपन मानिके हर तरह से सहयोग करे खातिर एगो गोड़ पर खड़ा रहत रहे।
एगो अउरी समय आवे जवना में खेतन में अगहनिया,बाजड़ा, मकई, मूंग, उरदी....ई सब के कटनी होखे लेकिन रहर भी संगही बोवला के बावजूद भी ओकर कटनी मसूरिये, लतरी के समय होखत रहल। तब अगहनिया, बाजरा मकई धान आगे-पाछे पाकत रहेला अब खरिहान के घास,खर-पतई के झारि-बहारि के गोबर से लिपल जाव एकरा खातिर दस-बीस गो अदिमी के जरूरत पड़त रहल जवना में मरद-मेहरारु,बूढ़ से लेके जवान तक ले सब कोई रहत रहे।अब बाजरा, अगहनिया, मकई के काटे से पहिलहीं मूंग-उरदी उखरा जात रहल कुछ घरे चलि जाव जेवन बंचल रहे ओकरा के खरिहान में एकगरी अलगे-अलगा धरात रहे अब लकड़ी के फल कहीं चाहे लकड़ी के अनाज कहीं...हेठार के मुख्य फसल रहे ओकर ढ़ाठा नवाई के बालि निकिया के देखल जाव कि काटे लायक भइल बा कि नाहीं...जब बुझा जाव कि अब पाकि गइल बा तब बाजरा काटि के खेतन में ढ़ाहि दिहल जाव कहीं चाहे गिरा दिहल जाव कहीं...फिर जब पूरा डांठ बालि समेत सूखि जाव तब फिर बनिहार लोगन के चलावा दियाव....तब खेत में बालि हंसुवा से काटल जाव आ जगह-जगह कुरवल जाव...जब पूरा खेत के बालि टुंगा जाव तब ओकरा के बोरिया-बोरिया कसि के बैलगाड़ी पर लादि के खरिहान में धराव, अइसहीं अगहनिया, मकई वगैरह-वगैरह के भी कटनी के इंतजाम रहल लेकिन अगहनिया के संगे रहर आ पटुवा भी रहे तब अगहनिया ठाढ़े छोड़ा जात रहे बालि टुंगा के खरिहाने आवत रहे आ बाद में माल-मवेशिन खातिर रोजे-रोज एक-एक बोझा हरियर ढ़ाठा काटि के कपारे ढ़ोई के ले आवल जाव फिर ओकरा के चारा काटे वाली मशीन में एक अदिमी मोरी मुंहे धरावे दूसरका गोल-गोल घुमा के काटे....भारी होखे तब दूई आदमी के मिलि के कल खिंचे के परे...ई रोजे के काम रहे आ जब कुछ दिन बीत जाव त खेत में काटि के सुखवा के कहीं बगइचा में फेंड़ के चारो ओर गोलाई में एक बराबर गल्ला होखे आ जब जरूरत पड़े तब काट के छपटी कुछ हरियर मिला के चवुवन के खियावल जात रहे....सबसे मजिगर बात त ई रहे कि जवन सूखल ढ़ाठा गल्ला कइल जात रहल ओकरे में लड़िका सब छुपम-छुपाई, चोर-सिपाही के खेला खेलत रहलेसन लगभग-लगभग सब फेंड़न केहें ढ़ाठा सरियावल रहल करे। अब रहर अकेलहीं खेत में खूब मोटा जात रहे आ बहुत झंगाठ हो जाव..बाद में पटुवा भी उखरा जात रहल।
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आलेख स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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