गांव के थाती -श्रृंखला नं-१५
गांव के थाती -श्रृंखला -१५
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पहिले गांव में बहुत नेह-छोह प्यार-दुलार भरल रहत रहे एक दूसरा खातिर सब कुछ लगभग मिलिये के सब कोई करत रहे जइसे सबकर घर माटी के बनल रहे कुछ लोग अइसनो रहलन इक्का-दुक्का जेकर घर पक्का रहे कुछ लोगन के देवाल पक्का के रहे बाकिर छावल-छोपल त खपड़े-नरिया से रहल करे..अइसन घर बनावहूं में बहुत मेहनत लागत रहे..ओह समय गांवन में गड़ही बहुत रहे जवना में मछरी पालन भी होखे आ जलस्तर बराबर बनल रहे,कुंआ-इनार,तालाब,पोखर के त भरमार रहे जेकरा कारन से गांव के जलस्तर बराबर बनल रहे..जब बरसात बीति जात रहे मई-जून के अगियाबैताल गरमी जब परे लागे तब तक सबकर खेती-बारी, शादी -बियाह मतलब सब खाली हो गइल रहे तब खांची-कुदारी उठा के कपार पर बड़का पगरी बान्हि के गड़ही में चले फिर एक आदमी माटी कोड़े दूसरका खांची में उठावे.. जेकर जेतना बेंवत रहे ओही हिसाब से खांची-डाली चाहे दवुरी में माटी लेके मचकत चले आ घर-दुवार पर ले जाके कुरय देत रहे... अइसहीं रोज सुबह-शाम माटी ढ़ोई के गल्ला होत रहल फिर जेकर माटी वाली देवाल मरम्मत करे के होखे चाहे जेकरा नया घर के नेंव बनावे के होखे चाहे घर फेरे के होखे तब माटी के बड़ा प्यार से आंटा लेखा सानल जात रहे फिर बड़े-बड़े गोल-मटोल लोना बनावल जात रहल....
१-घर फेरे के होखे तब बांस के सीढ़ी लगाके खपड़ा वाला घर पर चढ़े के रहे लेकिन इहो डर रहे कि नीचे डगरा के मति चलि आवे काहें से कि दूनो ओर तरसिवाय रहे बीच में ऊंचा रहे... काहें से कि माटी के देवाल पर धरन रहे ओकरा से जुड़ल बीच में उपर एगही बरियार बड़ेंरा होखे आ धरन-बड़ेंरा के जोड़े खातिर बांस के सैकड़ कोरो खंसात रहल ओकरे उपर बांस के फराठी के एगो परत रहे अउरी बहुत चीज रहे ओकरे उपर पटरी जेकरा के थपुआ भी कहल जाला...दूई थपुअन के बीच में उठलका भाग के नरिया लगाके बान्हल जात रहे तब घर के पूरा छप्पन तैय्यार होखे.. अब छप्पनों कोट के बरखा होखे तबो कवनो बरखा के प्रभाव ना परत रहे जबकि ओह समय लगातार भगवान् बरसते रहसु कई-कई दिन तक।।
कबो आन्हीं-पानी कबो खपरैल पर बानर,सियार,हुंड़ार नेवुर बमबिलार मने नाना परकार के जिया-जन्तु के ओहपर उल्ला,लड़ला से कुछ खपड़ा-नरिया फूटि जात रहे चाहे खसकि जात रहे तब बुझाय ना लेकिन पानी जब परे तब घर चुवे लागे...नीचे से एक अदिमी पातर डंडा छेद में लगावे तब उपर बइठल घर छावे वाला के पता चले तब ओहिजा ओकाचि के फिर से भेंवल माटी जवन सानल रहे आ गोल लोना बनाके नीचे से ऊपर फेंकला पर रोकि के अपना लगे रखल रहे फिर ओही जगह पर ठीक-ठाक करि के आगे बढ़े.. अइसहीं हर साल बरसात के पहिले सब लोग ई काम जरुर कर लेत रहे।
२-केहू के माटी के देवाल ओनहि जात रहल चाहे पानी परला से सलसला जात रहल तब उनकरा के ओकाचि के फिर से रद्दा देके धीरे-धीरे बनावल जात रहल,कुछ देवालन के लेवरक भी मोटे लगावल जात रहल।
३-कुछ लोग केहें मड़ईये रहे तब ओकरा खातिर बांस, घांस-फूस,पतलो,ऊखी के पतई ,राढ़ी से जमीन पर रखि के छावल जात रहल फिर पलानी तैय्यार हो जात रहल तब बांस,बबूर चाहे कवनो पेंड़ के डहांग के थुन्हीं लगावल जात रहल.. पलानी उठाके उपर रखे खातिर पचासन अदिमी एगो बोलारी पर निकसि जात रहलन --हाथे-पाथे लागि के केहू रामा से केहू खुरुपी से जेकरे जवन बुझात रहे उहे काम में भिड़ि के अपन घर के काम अइसन निपटावत रहल।
जहंवा गाय-गरु के बान्हे के जगह रहे ओके बैला कहात रहे ओकरो के भी लगले ठीक -ठाक कइल जात रहल।
ओहघरी भी पहिने-ओढ़े के सवख कवनो कम ना रहे पुरुष लोग कान में लोरकी,गला में सोना-चांनी के सिकरी, अंगूठी,नाको में केहू-केहू कुछवू पहिरत रहल,कपड़ा में धोती-कुर्ता,पायजामा के चलन तो ओहूघरी रहल।। महिला लोगन में त पूछहीं के ना रहल साड़ी-साया-बलाउज त चलते रहे -घूंघट परथा बहुत जबरदस्त रहे कवनो मेहरारू अपना सिर पर पल्लू जरूर डलले रहे लोग ।गहना गुरिया खूब पहिरल जात रहल....कंठा-हार, बाजूबंद,गोड़हरी,अंगूठी,सिकरी,गलाबंद,मंगटीका,नथिया,हार, मंगलसूत्र,हलका,हंसुली,सीताहार,उतरना,करधनी,झबिया ,कृष्णचूड़,बृजबाली,सूरुजबाली,छंद बहुत गहना रहलन जेकर सब नाम लिहल सम्भव नइखे।
ओहघरी सब लोग मिलि के गली-सड़क चाकर बनवावत रहल अगर केहू कवनो अधिका करत रहल तब केहू भी टोका-टाकी करत रहें आ सब लोग जुटि के उनके समझावत रहल फिर उनका मानहूं के परत रहल।सबका दुआर पर बइठकी लागत रहे आ पूरा गांव के खोपिया आके समाचार देत रहसु... चाय-काफी से त कवनो दूर-दूर तक कवनो सम्बन्धे केहू के ना रहल लेकिन मौसम के अनुसार सब इन्तजाम दुवारे सब केहू राखे अगर केहू कहीं से आवे त सबसे पहिले उनकरा के पानी पियावला के बाद पूछाव कि कहां घर हवुए आ कवनो काम बा त बताईं...गरमी के समय में बड़का बतासा रखल रहे आ सुराही के पानी,लोटा-बल्टी,डोर,गिलास, मिट्टी के बर्तन, गुड़..शरबत त खूबे बनाके पियल-पियावल जात रहल ओइसे त चिरई-चुरूंग के भी पानी के इन्तजाम रहते रहल ओहिमें अदिमियों के भी रहे।
एअर कंडीशन,पंखा, कूलर, फ्रीज प्लास्टिक, बॉटल,चाऊं-माऊं,मैकरोनी फ़ास्ट फ़ूड के त नंवुए ना रहल सब केहू सीकम भर बिना खाद-पानी वाला खाना खाव आ लोटा में भरि के पानी पिये खूब मोट-मेंहीं काम करे तबे स्वस्थ रहे.... केहू के कवनो तरक्की होखे तब दूहरके ओकरा खुशी में खूब लड़ुवा-टिकरी खिया देत रहे चाहे लबालब दही से भरल रस पियावत रहल जवन लड़िकिन के माड़ो छवात रहे त पियावल जात रहल चाहे बारात भी आवत रहे त लगभग-लगभग रसे घोरि के पियावल जाव...कबो अइसनो होखे कि गांव के बहुत बड़हन अदिमी रहसु तब चुल्हिया नेवार भोजन के इंतजाम होखे चाहे रस पियावे खातिर इनारे में चीनी घोरा जात रहे अब केहू केतनो पियत रहे त ओराये मान के ना रहे... फिर सिरिफल के रस त घरगइया रहे....सब खुश रहे सब आनन्द में रहे काहें से कि सबकरा मन में संतोष रहे।।
शेष अगिला अंक में।
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित।।
@राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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