दोहरा चरित्र ना जिहिले
दोहरा चरित्र ना जिहिले
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दोहरा चरित्र ना जिहिले
एहिसे " अकेले " रहिले।।
मोलम्मा चढ़ावे ना जानिले
सबका नज़रिया में गड़िले।
पइसा के पाछे ना भागिले
मनइ के मोल बस जानिले।
जेकरा संगवा हम रहिले
धोखा-पट्टी कबो ना करिले।
बाबू- माई के बात मानिले
जवन कहब ओतना करिले।
सचकी बात सोझा कहिले
एहूसे हम " अकेले" रहिले।।
केतनो चोट हम खाइले
तबो ना हम खिसियाइले।
जब खूब दिक्कत में रहिले
तब प्रभु के शरन में जाइले।
चाहियो के भी दोहरा चरित्र
कइसहूं ना झेलि हम पाइले।
नफ़ा -नुकसान ना जानिला
अकेला कतनो कइल जाइले।
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रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश
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