चाह नहीं मुझे अमीर बन जाने की
चाह नहीं मुझे अमीर बन जाने की
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चाह नहीं है मुझे भी अमीर बन जाने की
बस एक ललक थी खुद को ही पाने की।
बैठे बैठे सोच रहा था कुछ कर जाने की
बड़े आराम से था न फ़िक्र थी जमाने की।
अपनों के बीच चिंता हो रही बच पाने की
वो घात लगाए बैठे थे अपने के आने की।
उन्हें नहीं थी फिक्र अपने घर लुट जाने की
बड़ी शिद्दत से तलाश रहे थे उन्हें पाने की।
मैं खुद किताब हूं फुर्सत नहीं पढ़ पाने की
मुझे आदत है परवानों जैसे जल जाने की।
कुछ नहीं कर सकते प्रभु ने ठानी बचाने की
अब भी अच्छा करो अगला जन्म बचाने की।
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राम बहादुर राय
भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश
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