हमार रेल के यातरा
हमार एगो यात्रा:(लौहपथगामिनी से):-
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अइसे त हम कबो घूमे नहिये जाइला
मजबूरी में कबो जायेके परिये जाला।
एगो सपाट जगह पर रेलिया रूकली
बेलकुल निपट ठेठ देहात उहंवा रहे।
लड़िकवो हौज के पाइप काटत रहले
रेलिया के दूनो ओर झुरमुट के मेला रहे।
सांझ झाड़ियन से सटिके जवान होत रहे
मझोला पौधा अउरी बहकल से दूब रहे।
झिंग झिंग झिंगुरन के समवेत झीं. झीं.....
दादुर लमहर चुप्पी सधले रहलन त फिर।
एकही सुर में चक्रवृद्धि टर्र-टीं-टर्र के धुन
सुने में अउरी देखे में कई कई तह में रहे।
बाते बात में रेलिया से उतर गईले एकजने
अन्हार के फैदा,खुला में हलुक होखे लगले।
बाकिर उ ना जनले चाहे उनकरा पते ना रहे
जुगनुवन के संवसे झुंड पीछा परल बाटे।
उनकर इज्जतिये के अंजोर कर दिहलेसन।
सबकेहू बाइस्कोप जइसन कनखी पर देखे.....
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया, उत्तर प्रदेश
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