लोगों की कैसी भावनाएं
लोगों की भावनाएं
जीवित दिखती हैं
पर सत्य यह नहीं है
मैं अक्सर देखता हूं
किसी घायल को देख
लोग निकल लेते हैं
आगंतुक दिख गया
कोन्टाईन हो जाते हैं
चुप से हो जाते हैं तो
मुझे लगता है कि मैं
मृत हूं इनके लिए
लेकिन मैं जिंदा हूं
किसी मरे को देखूं
मुझे लगने लगता है
कि अभी मैं जिंदा हूं
सिर्फ़ स्वयं पर ही मैं
स्वयं ही शर्मिन्दा हूं
फिर भी मैं जिंदा हूं
जो लोग घृणा करते
मैं तो प्रेम करता हूं
उनकी सेवा करता हूं
ज़माने के दिये जख्मों
को मैं कुरेदता नहीं हूं
स्वयं दर्द पी जाता हूं
लोगों के दर्द कम कर
उनका दर्द ले लेता हूं
फिर से मैं जी उठता हूं
बेसहारा जब रोता है
मैं जीवित हो जाता हूं
उसके साथ हो लेता हूं
मृत सा रहकर भी मैं
कभी कभी जी लेता हूं
सब-कुछ देखा करता हूं
जुबां को मैं सी लेता हूं
अपने लिए सब ज़िन्दा मैं
गैरों के लिए भी जी लेता हूं
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----------राम बहादुर राय----------
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश
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