अब गंवुओ शहर भईले
गंवुओ शहर भईले-
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गंवुआ अब गांव नइखे
उहो त शहर होइ गईले।
हावा - पानी गंवुओ के
मन के लुभावे अब नाहीं।
नाहीं बाटे बाग - बगइचा
पिपरा के छांव कहां गईले।
नाहीं लउकेला चारागाह
चवुवा अब बेठेकान भईले।
चवपाल खरिहान सूना
सूना रे गंवुआ जवार भईले।
ना सुनाला कज़री बिरहा
मंगल गान भी दुलुम भईले।
सूखि गइले संगी साथी
धोखा पट्टी अब बढ़ि गईले।
सब केहुवे पढ़िके पढाई
शहरी चालाक होई गईले।
शहरन के गली सुनसान
गंवुओ अब बदलिये गईले।
गांव के थाती सोगहग रहे
शहर के नजर लागि गईले।
गंवुआ सुहावन लागत रहे
शहरी कवन टोना कईले।
नीमन चीज़वा शहर गईले
गंवुआ में सब दुलुम भईले।
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रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश
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