गांव के थाती -श्रृंखला नं-१६
गांव के थाती -श्रृंखला नं-१६
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पहिले सबकरा घरे लवना/जरावना अउरी तरकारी उपरवांती रहल करे चाहे ई मानिये के चलल जात रहल कि घरे त होखबे करी..जइसे आज के समय लेखा तरकारी के विशेष खेती ना होखत रहे खाद-पानी आ डंकल बिया,बाजार में बेचे खातिर... तरकारी के खेती घरगइया रहे। केहूवे के घरे जाके देखला पर खपरैल के चाहे मड़ई-टाटी पर लउकी-लउका ,कोहंड़ा,चिचिढ़ा
भतुआ,सतपुतिया,खतरोई खूबे लटकि-लटकि के ढ़ेर संख्या में झूलूहा झूलत लउकत रहल अउरी त अउरी कहीं नीम के, बबूल के पेंड़ पर त लपटि-झपटि के खूब ललकरले रहत रहल आ बिना खाद-पानी के भगवान के किरिपा से एकदम चौचक शुद्ध होखे।अगर केहू के घरे तरकारी बने त सब केहू बूझि जात रहे कि फलाना चीजु के सब्जी बनत बाटे।अब बैगन त भर आंगन करिया,सफेद,गोल, लमहर एतना फरल रहे कि देखलो में बड़ा सुघर लागत रहल... केहू केनियो से आवे तब कहीं तूरि के ले जात रहल केतने नेनुआ,सतपुतिया... जलियाइयो जात रहल।
जवन खेत गंगा जी के कछार पर होखे ओहिजा त पूछहीं के ना रहल एकदम सोने रहल, धूसी पर खूब मोटे-मोटे अरहर के पौधा, शकरकंद मतलब कन,करियवा गाजर जेकरा के घोड़गजरा भी कहात रहे उ मोटे-मोटे जमीन के नीचे बइठत रहल कि कुदारी से कोड़ला में भी बहुत नीक लागे कि धरती मईया के नीचे भी ऐतना फल-फूल होखत बा... एक-एक हाथ के कन उ मोटका गाजर-मूरई कि दू-तीन किलो के एक एकक गो होखे,कन के संगे सूथनी शलजम, चुकंदर खूबे होखे... ओकरा निचले हिस्सा वाला खेत में जवन बालू-पानी होखे ओकरा में खीरा-ककड़ी, तरबूज,खरबूज अनघा फरल रहल करे।अब उ समय में केहू खेते पहुंचल तब उनकर खरमेटांव एगो बड़का तरबूजा से होखे जवन कम से कम पांच किलो के होखे जब ओकरे में चिप्पी मराव तब एकदम टेस लाल दलित रहे...खइला पर एगो अलगे मिठास रहे आ ओकरा में जवन रस बचि जाव उ बाद में पियला पर करेजा तर कर देत रहल।खरबूजा त दूरे से ग़म -गम गमकहीं लागे कांकर-फूट लेखा एकदम मीठ लागे। कहीं बाजार में बेचाये के त रहे ना एहिसे सबकरा घर में दुनिया भर के डगरावल रहल करे आ जब जेकरा मन करत रहे खूबे खाव आ दूसरो के खियावे रहल अउरी त अउरी घर के पशु-चौवा भी खाइके अघा जात रहलन।
जब ई सबकर फूल फुलात रहे त लागे कि धरती मईया केतना सुघर चादर ओढ़ि के बइठल बाड़ी।।
बहुत जगह त अइसन रहल कि टाटी-मड़ई खांखर हो जात रहल तब ओकरा के छावे-छुपे के काम करत रहल जेतना लता वाला तरकारी के पवधा रहलन...एगो हरेठा चाहे तिसवट,झरल खरहर के सहारा देके चढ़ावल जात रहल.. फिर उपर जाके एगो छत लेखा घेरा मारके खूब फूलत-फरत रहल... कबो-कबो त खपड़ा पर चढ़े लोग तरकारी तोरे खातिर तब ढ़मिलाइयो जात रहल लेकिन बांस के सीढ़ी जान बचा देत रहे।।
सबका घरे लवना /जरावना के भी कवनो कमी ना रहल करे काहें से कि खेती खूब जमके होखे तब पशु-पक्षी भी घर-घर भरल रहत रहे तब ओकरा के चारा खातिर भी व्यवस्था बान्हल जात रहल जवना में अगहनिया-बाजड़ा के डांठ,अरहर के हरेठा, सरसों-तीसी के सरसवट-तिसवट,तिसवट से त माटी-खपड़ा के घर भी फेरल जात रहे गाय माता केहें धुंआ-धुकुन भी करत रहे सब लोग कि गाय माता के चमड़ा बहुत मोलायम होखेला तब धुंआ से सब माछी-मछड़ भागि जइहन।
लोगन के घरे जब खाना बनत रहल तब बहुत ढ़ेर बनावे के होखे काहें से कि आज अइसन मतलबी समाज ना रहल सब एक संगे रहल...मतलब संयुक्त परिवार हिन्दी में कहल जा सकेला...पशुवन के गोबर के पथवावल जात रहे जब पूरा सूखि जाव तब धीरे धीरे एगो बड़हन गोहरवुर बनत रहल जवना के गोंइठे से तोपल जाव कि एगो बरखा से भी भींजत ना रहे...खाना बनावे में गोंइठा बहुत जरुरी रहे फिर अरहर के हरेठा के त कवनो जोड़े ना रहे फिर तिसवट अउरी सरसवट कुछ बचल काम पूरा कर देत रहल।
खाये खातिर सांवां-टांगून लागे ओखरि में कूटाये सबकी घरे तब सब जानि जात रहल कि का हो रहल बाटे फिर अगहनिया-बाजड़ा के लिट्टी ओकरे संगे आखर तरकारी.. लिट्टी में एक पाव घीव चभोरि के मोटकी लिट्टी.. तरकारी आ गुड़ संगे खायेके एगो अलगे मजा आवत रहल।
फिर सांवां-टांगून के भात,अगहनिया के त भात कमे बने लेकिन बाजड़ा के भात त घरे-घरे बनत रहल ओहि भात में गरम दूध संगे एक पवुआ गुड़ डालिके सड़सड़ सब लोग खूब भर सीकम खींचत रहल तब नू पहलवान लेखा सब लोग लउकत रहलन...सजाव दही संगे भी खात रहलन लोग कवनो चीज के कमी ना रहल।।
अब उ दिन कहां लवटी ओहघरी घरे घरे अमृत रहे केहू के कवनो बेमारी ना रहल वजह आम,महुवा, जामुन महुआ के लिटा,लपसी,मकई के रोटी,भूजना, सांवां-टांगून के दाना, बर्रे- सोयाबीन के तेल से बनल पूड़ी-पकवान सरसों के तेल के दीपक,रेड़ीं के तेल कपार पर अउरी चमवुधा जूता रेड़ीं के तेल में चभोरि के जूता पहिरला पर उहे तेल दिमाग में जाव तब केहू के कपार में कबो दरद ना होखे,उखि के सिरिका,जामुन के सिरिका पेट खातिर रामबाण औषधि के काम करत रहे उपर से कन-सूथनी,बंडा,गाजर, दानेदार लाल-लाल टमाटर.... केतना नाम लिहल जाव अब सब कुछ लागता कि सपना हो गईल।।
शेष अगिला अंक में
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश
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