मैं भी हूं तेरे होने में- राम बहादुर राय कवि एवं लेखक भरौली बलिया उत्तरप्रदेश

मैं भी हूं तेरे होने में
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न जाने क्या जादू है
उसकी आंखों में।

आग सुलग उठती है
दिल की राहों में।

मन के दरवाजे थे
बन्द पड़े कई सालों से

मिथ्या अभिमान थे
दूर किया निगाहों ने।

तुम्हारी निगाहों ने
किया अभिशप्त मुझे।

दबी ढ़की राखों में
रूकी थमी सांसों में।

आंधी सी कौंध गयी
दिल की राहों में।

मन के हर कोने में
झंकृत असर हुआ।

जैसा होता होगा
जादू और टोने में।

भूधर संकल्पों के
पत्ते जैसे डोल गये।

रोम रोम पुलकित
हुए हर कोने में।

तुम धन्य हो प्रिये!
मैं भी हूं तेरे होने में!!

तेरा होना मेरे लिए
नहीं है मुझे होने में।

तूं अगर नहीं है तो
तूं है मेरे हर कोने में।

जाने क्या जादू है
कजरारी आंखों में।

देखूं तो मर जाऊं
न देखूं तो पागल सा.....

फिरता रहूं यायावर
मैं तो तेरी आहों में।
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राम बहादुर राय
भरौली ,बलिया उत्तरप्रदेश



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