शहर की दास्तां सुनो!!!
शहर की दास्तां सुनो!!
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सुनो दास्ताने शहर सुनो !
ऐ पत्थरों के मकां
सुनो !!
तेरे शहर में कोई शख्स अगर
आता है!!
तूं मौन खड़ा हर पल क्या है
करता!!
तूं पनाह दे देगा तो तेरा
क्या जाता है!
तुझे किस बात का हमेशा
गुमां रहता है
तेरे पास तो मुफलिसी है
क्यूं इतराता है।
किसी इन्सां को देखकर
दुबक क्यूं जाता है ।
ये पिज्जा बर्गर चाउ माउ
तेरा खाना है।
घर में तेरे कौन रहता है
किसने जाना है।
हर ज़ख्म नासूर बनाते हो
ये तेरा पैमाना है।
गलियों में सिसकती ज़िन्दगी
अक्स तेरा पुराना है।
जगह की कमी तो बस यूं
तेरा बहाना है।
रिश्ते नाते तूं क्या जानते हो
इसे निगल जाना है।
आखिर तेरे पास क्या है ???
सिर्फ़ कैदखाना है!!
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रचना स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश
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