गांव के थाती -श्रृंखला

गांव के थाती -श्रृंखला नं-१३
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बियाह होखत में सबेर गो गईल तब सभकर लेन-देन ओरियावत सूरज भगवान के पूरा दर्शन हो गईल फिर पंच भी पूरा नाश्ता सोहटि के खींचल आ ढ़ेकारत धीरे-धीरे समियाना के तरफ बढत कहे लगलन कि आखिर अब घाम हो गईल अब का देरी बा भाई बारात में चले के चाहीं बेमतलब के देरी करता लोग अभी जाये में नव नतीजा होई तबले एग जना लउकलन जवन बरतिहा के पट्टीदार रहलन...रुका हो फलाना ढ़ेकाना अरे जाके बरातिया के जल्दी अब गांवे भेजे के इंतजाम करवा द...तब उ कहताड़न काहें हम कहीं हमरा से कबो पूछेलन का... फिर हम कहब त कहिहन लोग कि देयाद हवुए एकरा नीक नईखे लागत.. त अब हमसे ना कहाई तूहंई ई कुल कहेला.... कुछ देर बाद सब निपटिये गईल तब तक खबर मिलल कि टेकटर आगे ले चलेकेबा काहें कि दहेज के सामान बहुत ढ़ेर बाटे आ कुछ लोग चले नीमन से रखवावे खातिर ।अब सामान लदाये लागल एहर काना-फूसी होखे लागल कि ए भाई ई त बहुत सामान देत बाड़न सब एतना सामान त अभी तक गांव में केहू के ना मिलल रहल हवुए आखिर बात का बाटे.. लागता कि कुछ दाल में काला बा..... केहू कहता कि पूरा दलिये काला बा हो भईया ... नाहीं त इनहीं केहें बियाह करितेसन तब तक एगो दूसर कहता कि कुछवू होखे खानदानी रईस हवुवन सब त एतना त रहबे करी।।खैर सामान ढ़ोवइला के ओरि ना रहल ना त लरि टूटे वोतने कुछ लोगन के करेजा पर सांप लोटे लेकिन करबो लोग का करे अब कुछवू वश में नइखे।
  अब विदाई होखे लागल त घर से रोवला के कारुणिक आवाज आवे लागल ----

आरे माई हो माई अब कइसे जियब हो माउ 
बाबूजी हो बाबूजी हम कइसे रहबि.....

पूरा दृश्य एकदम करुणा से भरि गईल गांव के हर आदमी -औरत सबकर आंख नम हो गईल ओहर लड़की के माई-बाबू सबलोग गिरल बा कि अब का होई एक लोटा पानी के दिही... घर के लक्षिमी रहलि ह हमार बेटी अब केतरह हमनी के रहबि जा...माई त डहकि के रोवताड़ी... बाबूजी के आंख के लोर सूखि गईल बा आ भाई के त रोवले वन के पत्ता डोल लागल....अब अंसवारी में बइठि के गांव के धिया चलि दिहली एगो नया जिनिगी जिये जहंवा केहू से कवनो परिचय ना होखेला....अब सब अगुवा के घेरले बाटे कि तनी देखिहा भाई ई लइकनी के कवनो तकलीफ ना होखे बहुत सीधवा बाड़ी मुंह ना खोलेली आ सबके धियान रखनेवाली बाड़ी तब अगुवा महाराज कहतानीं एकदम निफिकिर रहिंजा रवुंआ सब लड़की एकदम सुखी घरे जात बाड़ी....सब उनकरा घरे एकदम गाई लेखा बा लोग... हमरो बेटी हई ई दूध के कुल्ला करिहन।।
               अब दुलहिन लेके बारात वापस चल दिहलस आ पाछे-पाछे गांव के लोग बहुत दूर तक अइलन आ तब तक खड़ा रहलन जब तक हमनी अन्ह ना हो गईनींजा। अब हंसी-मजाक करत सब अपना गांवे-घरे दू-तीन घंटा में पहुंचल तब ओहिजो पहिलहीं से लोगवा जुटल रहलन ई देखे खातिर कि कनिया केइसन बाड़ी आ का-का मिलल बा,केतना खातिर -बातिर भईल हवुए...आ एहर लड़िका के बहिन,फुआ,बहनोई,फूफा एगो अलगे तेवर में खूब तरमस-तरमस लेफराइट करता लोग... दुलहिन के उतारि के सब जोग-क्षेम जोगा के जवन टोटरम होखेला पूरा करके घरे पहुंचली त जेकर जवन नेग-जोग होखेला उ करके सब घर के लोग उनकरा खातिर लागि गईल....तब तक सामान लदले गाड़ी भी आ गईल तब सब लोग देखि के बहुत फेर में पड़ल कि ए भाई पलंगवा ई एगो अलगे किसिम के बा,सोफा सेट, ड्रेसिंग,पंखा,कूलर, फ्रीज....नाना परकार के सामान बहुत त अइसनो बा कि हमनी के जानतो नइखीं जा कि का कहावेला...कुछ लोगन के त बुझाइल कि अब डगडर केहें ले जाके पानी चढ़वावे के परी तबले पता चलता कि एगो पट्टीदार के पानी चढ़हीं त लागल---खैर दिन भर में सब ठीक हो गईल।
               अब बबुआ के अग्नि परीक्षा शुरू हो गईल...बियाह का भईल कि नेग़ मांगनेवाला लोगन के संख्या में गुलरी के फूल परि गईल बा...आ हालत ई बा कि एगो कहावुत कहल जाला.....
कमाई न धमाई धियावा उठि........
केकर -केकर मनवा राखीं अकेले जियरा...
कहीं फूफा, कहीं फुआ फूह-फाह करता लोग कि हमनी के कवनो भेलुवे नईखे तब हमनी के अब अइबे ना करब जा....चला हो चलल जाव आ नाहीं त तूं एहिजे रहिहा हम जातानी... बहिन अलगे भांजताड़ी...सास जी के त पूछहीं के ना रहेला कि उ का करिहन।
          अब घर में नया कनिया बाड़ी त चहल-पहल मचल बा जे केहू आंगन में आवतबा तब अइसन भांजता कि कनियावा के सुनाव...उहो जानसु कि बड़का चलंसार हवुवन..विशेष रूप से लड़िका पर अइसे अपन अधिकार जमावत बाटे लोग जइसे माई-बाप ना इहे कुल संम्भरले होखसु। कुछ दिन बीतल तब टोला-परोसा के लोगन से बचि गईलहन लोग लेकिन अपनहीं घरे कुछ-कुछ जरला के गंध आवे लागल जब दुलहिन के हांड़ी छुवा दिहल लोग एके -सवा महीना में कि अब ई खाना-पीना सबके बनावसु खैर दिनचर्या चले लागल।।
               सबका से बचि गईल कनियावा लेकिन अब ननद से कहंवा बचि के जइहन..एह लोग के नजर कनिया के जवन सामान नीमन लउकि जाई ओही पर आंखि धसल रहेला..सब 
अकसा-बकसा दिन भर टोवल कहां का बा टाही में रहल उपर से कवनो गलती खोजल आ कवनो गलती ना मिलल त गलती ठहरियावल इहे दिन-रात के काम रहेला अब मरदाना केतना देर तक घर में रही तब सबकर कान भरल एहलोग के काम ह़ोखेला हालांकि कुछ लोग सहयोगी भी होखेली लेकिन नांव-मातरा खातिर।अब दुलहिन जवन पहिरिहन उहे ई लोग के नीमन लागी चाही लोग हमहीं लिहीं ई कुछवू नीमन ना पहिरसु ई लोग केइसनो रही अपना के सुंदरी समझेलिजा भले मुंह ठोंगा नियन होखे... दुलहिन केतनो सुघर बाड़ी लेकिन इनका तरहीं रहिहन अब एगो उदाहरण देखल जाव......
कुछवू गलत-सलत नवकी कनिया के कहता लोग त उ बेचारी नया जगह पर आइल बाड़ी अब का बोलसु तब चूपे रहेला लोग कि कुछ गलती बोला जाई त हमार माई-बाप के नाम पर बट्टा लागी लेकिन ई लोग मुंह में अंगुरी डालि के बोलवावे लगिहन तब बोलाइये जाला कुछवू तब का लोग कहेला अपना माई...मतलब कनियावा के सासु मां से.....

कनिया के ना बोलला पर
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अरे माई ई त नागिन बिया रे कुछवू नइखे बोलति एके हाली नगिनियन अस डंसे वाली बिया ई त बड़ खतरनाक बाड़ी ए माई सजगे रहिहे इनकरा से !!

अब कनिया कुछवू जे बोलि दिहली तब
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अरे माई बियाह त ठगि नू दिहले सन एकर मुंह त सटर-सटर चलता ई बड़ा लड़ाक बिया तोहार बड़ा गति करी....अभी त हमनी के बानीजा तब एकर जबान कैंची नियन चलता...जब ना रहबिजा तब का करबी रे माई तोर भागि बड़ा खराब बुझाता बड़ हरीफा से हमनी के भाई के बियाह हो गईल अब त भाईयो के जिनिगी नरके बना दिही।

अब एहितरे के बात से सगरो घर पाट दिहली लेकिन कनियावा के कुछ पते नइखे....इहे दशा बाटे .......
शेष अगिला अंक में
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

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