गांव के थाती -श्रृंखला नं-१४
गांव के थाती -श्रृंखला नं-१४
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जब बहुत छोट रहनींजा तब के बात कुछ अउरी रहल सब कुछ अलग अउर खरा पक्का त रहबे कइल खेला में भी एगो अलगे मजा आवत रहल जवन कि आज सब गायब हो रहल बा कुछ खतम भी हो चलल बाटे। हमनी के सबेरहीं उठि के गली में निकलि जाईं आ ओहरो से छिप -छिपा के दूसरका गोल सब निकलले रहे तब कांच के छोटे छोटे गोल-गोल रंग-बिरंगा गोली कीनि के सब रखले रहे...गली में एगो गोला पारिके तीन -चार गो भीतरो एह डड़ारी से ओह डड़ारी तक लाइन पारिके जहां -जहां दूगो लाइन के मिलान होखे ओहिजुगे गोली रखाव ओकरे बाद कुछ दूर से चले के रहे मतलब गोली फेंकल जाव कि ओह गोलाई में मति फंसो जेकर फंसि जाव उ आउट मनात रहे फिर अगल-बगल से हाथ के अंगुरी के अन्तिम पोर पर रखिके टीसे के रहे जे टीसि देबे उ ओह गोली के मालिक हो जात रहल अइसहीं ई खेल चलत रहे जल्दी खतम ना होखत रहे।
अब गोली के कंचा भी कहल जात रहल काहें से कि कांच के बनल रहे तब दूसरका खेल रहे गुरची पियन्ता जेवना में एगो छोटी-चुकी गड़हा खोदल रहल दू-तीन गो गोली जमा करे भर आ दूर से हाथ से गोली अइसे डगरावे के रहे कि गोली ओही गुरची चाहे गुची भी कहात रहल ओकरे में ढुकि जाव चाहे पी जाव....जेकर सबसे ढ़ेर गुरची में पियत रहे उहे जीतत रहल।
अब दूसरका खेला लट्टू के रहल तब एक जगह सब बटोरा के लट्टू नचावे केहू लत्ती लपेट के हाथे पर नचावे त केहू लट्टूफार खेले...एहू में जीत हार के खेला रहल करे लेकिन कबो-कबो नचवला में केहू के गोड़ में धसियो जात रहे तब मार-पीट भी हो जात रहल घर -परिवार में..फिरू लड़िका त लड़िका होखस उनका में कल-छपट त रहे ना... चाहे जानि-बूझि के त केहू के केहू मारे ना तब सबेरहीं एके संगे फिर खेल शुरू हो जात रहल तब घर-परिवार के झगड़ा -रगड़ा भी खतमे हो जात रहल आज नियन ना रहे कि बैठि के पजवत बाटे लोग कि मोका मिलते साफ करि देईब।
फिर एगो लुडो-छक्का खेले के बेमारी रहल जवन आज भी कहीं -कहीं खेलल जाता।ओहघरी खूब खाई-पी के पंच पलस्थी मारि के बैठि जासु जेवना में का बूढ का जवान चाहे लड़िका कवनो भेदभाव ना रहे सांपवा त सबके काटत रहल केतनो केहू सीढ़ी पर चढ़ि के उपर होखल चाहत रहल उनकरा के ओतने डंसि के नीचे पहुंचाइये त देत रहे... दिन-दिन भर अपन काम के अकाज करके सब खेले में जमल रहे आ हारला पर त अइसन लागे कि कवनो खेत-बारी बेचा गईल होखे आ जीते वाला अपना के होमी जहांगीर भाभा बूझे लागे।
एगो पाटी के पासे गुली-डंडा होखे किरकेट अइसन ओकरा के लेगे लड़िका पाटी बगइचा में हेठिया जात रहल अपना-अपना घर के लोगन से बच-बचाके....खूब जमके गुल्ली डंडा के खेल होखे केहू हटत ना रहे फिर एगो गिदिलची से भी खेल होखे...आ चीका-कबडडी , ऊंची कूद, लम्बी कूद,बोड़ा दवुड़,जिलेबी पकड़ तमाम तरह के खेल होत रहल।
ओहू में कुछ बहुत गजब के खेल रहल जवन आज सम्भव ना हो सकेला जइसे ओल्हा-पाती...ई खेल फेंड़ पर चढ़िके होखे त ओहघरी एक फेंड़ आज के जवन कलमी गांछ होतबाड़ीसन एहलोग सैकड़ में होई तबो बराबर ना कर सकेले..फेंड़न के डहांग एकदम जमीन पर नय जात रहल तब कूदि के भागत रहे सब आ जे छूवत रहे उ दूसर डाढ़ि पर चढ़ि के डाढ़े-डाढ़े खोजत रहे छूवे खातिर जे छुवात रहे अब उ सबके छूवे खातिर एह फेंड़ से ओह फेंड़ पर चढ़त उतरत रहल खैर ओही बहने फेड़ पर झूलूहा झूलत रहल सब केहू जबकि सावन में झूलूहा बगइचा में लगभग सबका लागल रहे।
एगो चोर -सिपाही के खेल होखे दूसरका आइस-पाइस खेलल जात रहल जवन पहिले अगहनिया-बाजड़ा के डांठ एगो फेंड़ के चौतरफा रखल जात रहल तब ओहिमें जगह बनाके लुका छिपी के खेल होत रहे जवन आजकल संभवे ना हो सकेला काहें से कि ना त ओइसन फेंड़ बंचल बा नाहीं अब केहूके खरिहान धराता सबकर खेतवे में मशीन से तुरंते कटवा दिहल जात बा..ना त अब ओइसन खेती -गृहस्थी रहि गईल बाटे....
"अब अली रही गुलाब की गई सो बीति बहार"
खरिहाने-खरिहाने भी लुकवुवल होत रहल सब डांटतो रहल कि ए भाई ई मनिहें स कि ना हो तब सब भागत रहे आ फिर कुछ देर बाद उहे खेला शुरू हो जात रहल।एक दूसरा के घरे छिपा-छिपी के खेल कोना-अंतरा में सब खेलत रहे।
सब संगहीं गंगा जी नहाये जात रहल तब ओहिजो पानी में डूबि के छुवन्ता खेल घंटन होखत रहे आ तैराकी मतलब पंवरल में भी खूब खेला होखत रहे पानी एकदम झकझक साफ रहे ओहघरी खूब मजा कूटत रहल सब गोल -गेंग अब त ई सपने समझेकेबा ना बाटे ना त अब पहिले अइसन होखी। कबो-कबो त हमनी के लड़िकिन संगे एगो टांग पर तिती-तिती भी खेलत रहिंजा, रस्सी फांनल.... तमाम खेला रहल जवना के कवनो जोड़ा आज नइखे आ सब खेलले रहल एहिसे सबकर काया एकदम फिट होखे आ केहू के कवनो परकार के रोग-ओग ना रहल सब केहू एकदम संवसे गो मरद होखे उहो टनाटन।घरे मेहरारू लोग खातिर जांता,ओखर-मूसर,ढेंका,ढेंकुली,चाकी,कूटल-पीसल सब करे के परे जवन अब नइखे आ मेहरारू लोग बेमरिहा हो जातबा लोग काम ना करके तब एहघरी डागडर उहे कमवा करे कहतबाड़न तब लोग झूठहीं देवाल पर छपटी काटता लोग...काहें से कि केहू के दुवार पर एगो गाय-गरु के पोंछ त हइये नइखे आ एको छटाक कुछवू खेत में बोवल बाटे तब करबो का करे लोग...बस एगो रेलगाड़ी अस खड़ा होके मुंह ठोंगा -चोंगा अस बनाके फटो खिंचवा के एगो स्टेटस चलल बा ओहिपर डालि के देखावल जात बाटे।
शेष अगिला अंक में
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
@राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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