काहें चलत हवुवा उतान हो
काहें चलत हवुवा उतान हो
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काहें चलत हवुवा तूंहूं उतान हो
सुल्तान केहू दूसर बा।
कुछ लोग तोहके जानि गईले
आसमन में उड़त बा।
देखले पर तूंहूंव देखत नईखा
केंचुल से मातल बा।
दूसर केहू जिनगी में रेंगते रही
ओकर दियानत बा।
काहें बनत बाड़ा तू सुल्तान हो
सुल्तान केहू दूसर बा
सबके बनवले बाड़ें भगवान हो
काहें ऐंइठ के चलत बा।
लागता कि तूहंई महान हवुआ
सबके त जायहीं के बा।
याद करि ला पहिले के दिनवा
सब तोहसे निमने बा।
जवन पइसा के जोम में रहेला
उहे लेके तूं जइबा का।
पइसा जरुरी बा जिये खातिर
आदमी होखल जरुरी बा।
बहुत लोग देखल गईल बाटे
संगे रहल व्यवहारे बा।
हलुक चिजवा उड़त चलेला
भारी चुप बइठले बा।
आवेला एगो अइसन आन्हीं
उताने वाला टूटल बा।
का करबा केहू से ना बोलिके
घमंड सबके टूटले बा।
हम त एगो तिनका हंई साहब
जे हरदम ही उड़ले बा।
जेकर गोड़वा जमीने पर रहेला
कबो उ कहां गिरल बा।
भगवान के घर देर जरूर होई
पर अन्धेर त नहिंये बा।
केहू के केतनो तूं नीच देखबा
तोहरे वश में कुछवू बा ??
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रचना स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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