सन्त कबीर दास जी
सन्त कबीर दास जी
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बाबा कबीरदास जी एक बेर आवा तूं
इहवां आके फिर से कुछ बता द तूं।
सब केहू कर रहल बा आपन-आपन
आके फिर से सबकरा समझावा तूं।
जाति-धर्म भाषा के ही बात ना हवुए
सब केहू अपने के बड़ समझत बाटे।
पढ़े लिखे वाला असली कवि के पूछे
इहवां बड़ बड़ लोगन के बुझल जाता।
समन्वय के बात करेवाला अब के बा
सब केहू त कुछ न कुछ से ग्रसित बा।
साखी, सबद, रमैनी अब के पढत बा
भोजपुरी के मिठास गंदगी लिलत बा।
हे सन्त कबीर दास जी एकबेर आवा
सबकरा के मिलकर रहेके सिखावा तूं।
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राम बहादुर राय
भरौली नरहीं बलिया उत्तरप्रदेश
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