जब हम छोटे थे तभी अच्छे थे
जब हम छोटे थे तभी अच्छे थे
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जब मैं बहुत छोटा सा था तब
बड़ा होने की बड़ी चाहत थी।
कुछ अपने पास था या नहीं
लेकिन अपनी बादशाहत थी।
दिन पर दिन अब बीतते गए
आखिरकार हम बड़े हो गये।
बड़े हुए तो एक जाति में फंसे
एक खुश होता तो दूसरा हंसे।
कुछ भी कर लेने की इच्छा थी
अब तो कुछ कर लें इसमें फंसे।
मैं शोध के विद्यार्थी जैसा ही हूं
जाति-पांति,धर्म से गाइड मिले।
दिन को अगर रात कहे तो कहो
वर्ना Ph.D की डिग्री नहीं मिले।
बात-बात पे किसी से बात होती
तो अपने सच का पक्ष कौन धरे।
अबला नारी की ब्यथा सब कहे
पर हम तो अपनों में ही उलझे।
अब मन यही करता है बारम्बार
फिर से छोटा बनकर ही रह लें।
बड़ा होकर छोटा नहीं बन पाया
तो सबकी आंखों में चुभने लगे।
दूसरा तो हमें मालदार ही समझे
हम क्या हैं ये तो हमीं समझते
दूसरों से कोई उम्मीद क्यों रखें
जब अपने ही दूसरी ओर खड़े।
अब मन में ये अल्फाज़ रह गये
काश हम न आते, बड़े न होते।
बचपन में जाति,अमीर गरीब,बड़े...
इन कटु स्वर-व्यंजनों से बचे रहते। 🙏🙏🙏
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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