एहघरी से त पुरनके नीक रहल;-------
एहघरी से त पुरनके नीक रहल;-------
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माथवा के मउरवा नाहीं लउकेला केनियो
बुढ़वन के एह घरी लड़िकवे कुछवू ना बूझे।
पीपर,पाकड़ ,महुवा दुलुम बा केहू न लगाइ
कोहा,गमला में सब पेड़वा गइलन समेटाई।
जेकरे जंघिया पर बइठि बढ़लन पढ़कुआ
ओकरो के टांगी से जरिये से देले कटवाई
कबूतर के दरबा में रहे लगलन लोगवा
त पीपर के शुद्ध हवुआ उनके कहंवा भेंटाई।
खूबे पइसा कवुड़ी कमइले बाड़े आजकल
खोजला प एगो अदिमियो उनके ना भेंटाई।
बुढ़वा पुरनिया बरगद नियर पेड़वा लगावे
हर घरी सब अदिमी ओकरे नीचवा बटोराई।
केहूवो अथेघा परि जात रहले ओह समय में
सब केहू मिलि -जुलि के ओकरा निपटाई।
आजुवो कहीं -कहीं बुजुरुग चबूतरा नियन
बिछल बाड़न जा हमनिये खातिर हो भाई ।
अब त केहू केहू केहें खड़ो होखेहूं के जगहा
फलैट में शायद संजोग नहिंये ही मिलि पाई ।
महानगरन के छोटकन लड़िकवन अइसन
नाहीं देखले हवुवन ना चिनहूं अब उ पाई ।
गांव ह त गढ़ ह सबकरा समझहीं के चाहीं
नाही सबकर संस्कृति पहचान मिटियो जाई।
हमनी के अगुवन के जिनिगी में माजा रहे जो
सोफा,पलंग,गाड़ी छेकड़ा में कबो नाहीं भेंटाई।
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रचना स्वरचित मौलिक अउर अप्रकाशित बा
@सर्वाधिकार भी सुरक्षित रही।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश।
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