राजनीति के इस भंवर में
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राजनीति के इस भंवर में
नंगे नाच रहे हैं

संविधान के तंत्र और मंत्र
अनपढ़ पढ़ के बांच रहे हैं

हवा पूछे अब तो पेड़ों की
टहनी से मन की बात

कैसी  लगती है  धूप तुम्हें
बिना पानी के बरसात

हंस हुए उदास और दुखी बगुले
सारस  कुलांच रहे हैं

धर्मग्रंथों से सच की कहानी
बौने अब जांच रहे हैं

लोगों ने अपने अपने हिस्से
की सुविधाएं बांट ली हैं

कब तक सुधरेगी व्यवस्था
आजकल सभी सवाच रहे हैं

अच्छा  भी  करते हैं लोग
वो समझे राजनीति का मेला

फिर क्या कर सकेगा कोई 
राजनीति में बहुत है झमेला

राम बहादुर राय 
भरौली ,बलिया, उत्तर प्रदेश,

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