एकबेर आजमा के तूं देखा
एकबेर आजमा के तूं देखा
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एकबेर कुछ कहि के त देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
मनवे में तूं याद करिके देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
सपनवे में सोचि के तूं देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
झूठहियों आजमा के तूं देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
एकबेर नजरिए उठा के देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
एकबेर रिसियाइ के तूं देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
एकबेर कनखिये से तूं देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
एकबेर पलटिये के तूं देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
कवनो शिवाला जाइके देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
कबो मुस्कियाइ के भी देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
कबो अथेघा परिहा त देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
कबो खूख-पइया होके देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
जब सब तोहके छोड़ि दिही
तब ना आइब तब कहिहा।
एक ना सातो जनम तूं देखा
ना दुख हरब तब कहिहा।
जमाना खिलाफ करके देखा
ना आ जाइब तब कहिहा।
एक बेर जह़र भी देके देखा
ना पी जाईब तब कहिहा।
कबो सत्यवान बनिके देखा
सावित्री ना बनीं त कहिहा।
कुछ करे से पहिले तूं देखा
साथ ना देहब तब कहिहा।
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रचना स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया, उत्तरप्रदेश
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