आजा रे बदरिया अबो ले बरिस जा

आजा रे बदरिया अबो बरिस जा
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केहू धाने के खेती कइले बा
केहू मकई बोवले बा।
केहू अगहनिया रहर बोवले बा
केहू मूंग उरद बोवले बा।
केहू के घरे में नोकरी वाला बा
केहू कर्जा लिहले बा।
केहूके घरे के खेत - खरिहान बा
केहू पोतवू लिहले बा।
केहू खेतिये के बल पर जियतबा
केहूके इहे जियका बा।
आवा अबहूं बरिस जा बदरिया
सब आसरा धइले बा।
जइसे खेतके फसलिया सूखता
वइसे करेजा कुंहुंकतबा।
धरती माई में खूब दरार फाटता
वोहितरे करेजा टूटतबा।
सब केहू उपर असमानवे ताकता
लुकु लुकु करजा झांकतबा।
सब किसनवन के अरजी सुनिके
बदरी के बचनी भेजि दा।
अब त गोड़वा में बेवाइ फाटतबा
सब केहूवे माथा पिटतबा।
केहू हड़परवुरी गावे केहू अर्घा भरता
केहू सोमारिये भूखतबा।
हमनी के हंईजा खांटी भोजपुरिया
खेतिये से काम चलतबा।
अबहियों ले सुनिला अरजी बदरिया
सब केहू तोहरे के देखतबा।
नाहीं त सुनिला मति जड़ होखा तूंहू
शिव के अर्घा सब भरतबा।
फाटताटे खेतवन में बड़ -बड़ दरार
बदरी के राह सब देखतबा।
का बैर साधेलू नइखू मानत बतिया
मुंहें में लावा सबके फूटतबा।
ना नोकरी चाकरी ना कवनो धंधा ह
हंई किसान इहे आसरा बा।
केहूके घरे बिटिया बियहे के बाड़ी
केहू करजवे से बिकातबा।
बइठि हमहूं सोचीं घरवा में धनिया
ए बदरी तोरा कुछ बुझातबा।
काहो तनिको मोह माया तोरे नइखे
कवना बात के तोरे ज़िद बा।
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रचना स्वरचित,मौलिक अउरी अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश

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