मेरी मंजिल तो कहीं और है
मेरी मंजिल तो कहीं और है
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न तो ईर्ष्या है नहीं कोई होड़ है
मंजिल मेरी तो कहीं और है
बहाना मिल गया है ये ठिकाना
पर अफसाना तो कोई और है
शमा पर जलते दिखते परवाने
मगर निशाना तो कोई और है
अच्छी थीं शमशीरें दिखती थीं
अब तो ईर्ष्या भी रहती मौन है
नहीं पता चलता अपना कौन है
मुझे न ईर्ष्या है न कोई होड़ है
अभी चुपचाप काम में लगा हूं
मेरी तो मंजिल कहीं और है
मत परेशान हो कुछ समय ठहर
अभी मेरी मुफलिसी का दौर है
आयेगा मेरा भी वक़्त एक दिन
सोचोगे तुम कि ये कोई और है
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स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
राम बहादुर राय
भरौली ,बलिया, उत्तर प्रदेश
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