क्या लेकर आए हो

क्या लेकर आए हो
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हम तो अदब से
सिर झुकाए हुए थे।

वो समझते थे कि
हम डर खाये हुए हैं।

हमारी फितरत है
कि हम बनते नहीं हैं।

मेरे पास क्या कुछ है
हम कहते भी नहीं हैं।

क्या लेकर आये हो
कुछ ले भी जाओगे?

जिस बात पर इतराते
सबके पास पाओगे।

जमीं पे आके देखो
सब भूल जाओगे।

दरिया भी नहीं हो
समंदर समझ पाओगे??

इन्सान को समझो
नहीं तो पछताओगे।

क्या लेकर आये हो
कुछ लेकर जाओगे??
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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