हमार गंवुआ स्वर्ग लागे!!!
हमार गंवुआ स्वर्ग लागे
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मोरे गंवुआ के पिपरा के छांव
ए गोरी बड़ा नीक लागे!
जहां नदिया किनारे छलके पांव
भीजे बदनवा नीक लागे!
जहां पनघट पर नवहन के दांव
कनखी ताकल नीक लागे!
जहंवा ना कवनो रुम ,बाथरूम
माई के अंचरा नीक लागे!
जहां होखेला आरती,मंगल गान
समझा हमार उहे गांव लागे!
जहंवा पेंड के गोरिया धागे बान्हे
घरवट के पूजल नीक लागे!
मोरे गंवुआ में भाई-बहन के प्यार
नेह-छोह,दुलार नीक लागे!
जहंवा कउवा उचेरलन ओरियान
बहुरिया के उहो शुभ लागे!
जहंवा गौरैया आंगन चले उतान
उनके चांव-चांव नीक लागे!
मैनी गइया पर बइठेला नन्हका
सिंहिया झोरल नीक लागे!
घूघ निकाल के झांकसु कनिया
घुंघट में मुंहवा चान लागे!
मोरे गंवुआ छम छम करत पांव
छैगल के धुन नीक लागे!
झांकेली बहुरानी जइसे चकोर
भरि आंगना अंजोर लागे!
जहंवा मुर्गा बोले त होखे बिहान
कोयल के तान नीक लागे!
जहां सब पहिरे पूरहर परिधान
धरती के चादर धानी लागे!
मोरे गंवुआ के सब ताल पोखर
भरल सगरे पानी पानी लागे!
जहां छान्हीं पर नेनुआ के डाढ़
लटकत लउकी नीक लागे!
होखे बरसात त भरल रहे मड़ई
सबकर हंसल चानी लागे!
मोरे गंवुआ के संस्कृति संस्कार
मनसायन छान्ही लागे!
जहां के गोरी गावसु मंगल गान
हमार गंवुआ स्वर्ग लागे!
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रचना स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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