मुझे ऐसे न देखा करो

मुझे ऐसे न देखा करो...
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मुझे तुम ऐसे न देखा करो
तेरी नज़रों से नज़रें मिलतीं

हर लम्हा स्वर्ग हो जाता है
भूल जाता हूं कहां जाना है

धूप-छांव एक हो जाता है
पांव भी तो ठिठक जाता है

जैसे लगता है मिथक था
अंधेरा भी रौशन हो जाता है

चाहे आसमां से शोले बरसे
वह भी चांद नजर आता है

जैसे ही नजरें हट जाती हैं
भौंहें निष्ठुर खड़ी हो जाती हैं

मगर इस दिल का क्या करें
लाचार कहां समझ पाता है

प्यार की बात समझता है
देखके ही जुगनू हो जाता है

तुम्हें लगता है तेरी नजर है
खुशी से उदास हो जाता है

पलक भी कहां झपकती है
सब अपलक सा हो जाता है

अगर सच्चा प्यार हमसे है
पलकों में रख बचा लेना है
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रचना स्वरचित एवं मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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