स्वयं लड़ो, स्त्री का चीरहरण क्यों???

स्वयं लड़ो,स्त्री का चीरहरण क्यों???
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पहले एक ही महाभारत हुआ था
आज तो हर रोज ही महाभारत है।

पहले तो एक ही धृतराष्ट्र हुए थे
आज तो हर जगह धृतराष्ट्र खड़ा है।

महाभारत में एक ही शकुनी थे
आज शकुनी की बड़ी संख्या है।

धृष्ट दुर्योधन भी तो एक ही था
आज के तो सारा दुर्योधन धृष्ट है।

महाभारत में जयद्रथ ही एक था
आज जयद्रथों  की  पूरी फौज है।

भीष्म  का  काल एक शिखंडी था
आज तो  शिखंडियों  की लिस्ट है।

महाभारत  में दु:शासन एक ही था
आज तो  दु:शासनों की भरमार है।

उन दिनों चीरहरण  किया गया था
चीर की रक्षा  करने  वाले कृष्ण हैं‌

आज तो  ऐसा  लगता है क्या कहें
कृष्ण की जगह  सब  दु:शासन है।

एक नहीं  दो नहीं  बहुत  हो रहा है
लगता नहीं  कोई भी अब कृष्ण है।

प्रश्न  सीधा  है..झगड़ा  कोई भी हो
भुगतती  क्यों  सिर्फ एक स्त्री ही है।

चाहे धर्म, जाति ,बिरादरी हेतु लड़ो
निर्वस्त्र  होती  हर  जगह स्त्री ही है।

शर्म करो  पुरुषों ,यही  मर्दानगी है
स्त्री,बच्चे, बूढ़े,पर ज़ुल्म मनाही है।

फिर चाहे  किसी भी जगह क्यों है
ऐसा कृत्य  पुरुष,स्त्री पर करता है।

जिस मर्यादा की  मूर्ति से जन्मे हो
उसी की  अस्मत लूटता,लुटाता है।

हे पुरुष! क्या  यही है तेरा पौरूष
स्त्री को जकड़के निर्वस्त्र करता है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति
भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य........

हे नरपिशाचों  क्या ये नयी सदी है
चांद और मंगल पर क्यूं जा रहा है?

क्या हम  स्वतंत्र  जुल्म हेतु  हुए हैं
जो ऐसा  किया है, नाश निश्चित है।

यत्र पूज्यंते नार्यस्तु रमंते तत्र देवता
क्या यही शौर्य व पौरूष रह गया है।

खींचकर भींड़  में निर्वस्त्र करते हो
अपनी  इज्जत नीलाम कर रहा है‌

शर्म आती है ऐसे कायर मृत पुरुष!!
लड़-मर स्त्रीपे क्यूं जोर दिखाता है।

बताओ तेरा क्या रह जाता है मनुज
क्या यही मां ने तुमको  सिखाया है।
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रचना स्वरचित एवं शुभकामनाएं
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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