एक सच्ची प्रेम कहानी
वह एकदम सीधा-साधा गांव से कोरा लड़का था जो अभी-अभी कक्षा बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी पास करके शहर में आगे की पढ़ाई के लिए आया हुआ था।उन दिनों प्रथम श्रेणी पास करना बहुत मायने रखता था उसको सरसरी निगाह से सर्व समाज देखता था।
जब शहर में आया तो मेरिट के आधार पर एडमिशन होता था सो उसका नाम लिखा गया लेकिन हास्टल नहीं मिल पाया शायद कुछ अधिक मेरिट वाले लड़कों को मिल गया था लिहाजा अब जगह नहीं बची थी तो उसे डेलीगेसी में कमरा लेना पड़ा जिसमें कुछ गांव-जवार के लड़कों ने सहयोग कर दिया तो सब व्यवस्था करके रहने लगा।
अब उसने देखा कि शहर में आने जाने का किराया बहुत लगता है तो वह गांव से अपनी साइकिल को लेकर आया और सारी व्यवस्था तो कर ही चुका था लेकिन सबसे दिक्कत थी खाना बनाने और बर्तन धोने की वह भी धीरे-धीरे सीख ही गया, कुछ मित्र भी आस पास में बन ही गये तो वह डेली सुबह, किसी दूकान पर जाता जलेबी-दही नास्ते में कर लेता,ही तैयार होकर अपनी धन्नो साइकिल पर बैठाकर बड़े ही इत्मीनान से पढ़ने के लिए निकल लेता और सीधे विश्वविद्यालय पहुंच कर क्लास में जाकर लेक्चर सुनता और उसे लिखता फिर अगला फिर अगला... ऐसे ही वापस आकर खाना बनाता, आना-जाना यही दैनिक दिनचर्या थी।
जब विश्वविद्यालय जाना होता तो अपने कालोनी के ही एक साथी के साथ जाने लगा और उससे बहुत ही गाढ़ी मित्रता भी हो गई, दोनों का कमरा लगभग आमने-सामने था बीच में पच्चीस-तीस फुट का रास्ता था तब दोनों शाम को अपने -अपने छतों पर टहलते भी थे और बड़े ही मज़े से पढ़ाई लिखाई चल ही रही थी एक दिन वह मित्र कहीं चला गया था आउट आफ स्टेशन तब एक दो दिन तक इंतजार किया लेकिन कब तक इसका भी मन भी नहीं लग रहा था...तो उस मित्र का प्रेम उसे खींच लाया या पता करने पर विवश कर दिया तो उसके आवास पर जाकर घंटी बजायी फिर गलियारे से एक मधुर आवाज आई कौन है, क्या काम है, किससे काम है......वह संकोची स्वभाव का बालक पहली बार शहर आया था वह खड़ा रहा बाहर, कुछ देर बाद एक बेहद खूबसूरत लगभग 20-21 वर्ष की युवती आकर खड़ी हो गयी तो वह शरमा कर सिर झुकाये पूछा कि नीरज कहां हैं तो लड़की खिलखिलाकर हंसती थोड़ी शरमाती हुई बोली वह शायद बाहर गये हैं एक-दो दिन बाद ही आयें....इतना सुनते वह बालक वापस अपने कमरे पर वापस आ गया।
जब दूसरे दिन साइकिल निकालकर विश्वविद्यालय जाने कि तैयारी में था तो लगा कि कोई सामने खड़ा उसे देख रहा है लेकिन वह पढ़ने हेतु निकल गया और ऐसे ही चलता रहा लेकिन मन ही मन सोचने लगा आखिर क्या बात है वह मुझे क्यों देख रही थी वगैरह वगैरह अब ऐसे ही चलने लगा......
शाम को छत पर टहल रहा था तो ऐसा लगा कुछ सामने आकर गिरा तो अगल-बगल देखा तो एक कागज का टुकड़ा दिखा फिर उसे उठाकर देखा तो एक छोटे से पत्थर में लपेटा हुआ कागज पर लिखा पत्र था लिखा था.....
"आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं" लेकिन देखते क्यों नहीं
मेरा नाम पुष्पा है और शाम को इसी समय टहलती हूं
आप भी आते ही लेकिन अकेले छत पर आना...... पत्र का जबाब जरूर देना।
वह लड़का तो अवाक रह गया और तुरन्त नीचे जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा कि मैं पढ़ने आया हूं अब यह क्या चक्कर है....
अपने मन में कहने लगा....
अरे नहीं नहीं यह सब ठीक नहीं है मुझे पढ़ना है...खैर मैं मजबूत हूं मुझे भटकना नहीं है ....
फिर सुबह निकला तो देखा वो सामने ही अपने गलियारे में खड़ी थी... देखना नहीं चाहता था लेकिन लगा कि एक चांद तो आसमान में रहता है वह भी रात में मगर दिन ये कैसी आभा चमक रही है जरा देखें यह क्या है...... तो वही थी... मुस्कुरा रही थी फिर क्या....
मैं अनदेखा करते हुए चल दिया लेकिन रास्ते में सोचने लगा कि यह सब क्या हो रहा है समझ में नहीं आ रहा है आखिर कैसा मंजर है अब कया करें...
शाम को सोचा छत पर नहीं जाना है लेकिन मन नहीं माना चला ही गया और देखा कि वह इन्तजार में ही खड़ी थी ये सोच ही रहा था कि एक और पत्थर आकर पास गिरा वह समझ गया पत्थर में लिपटा हुआ प्रेम पत्र ही है......
उस पत्र को पाते ही पता नहीं वह कौन सी शक्ति जो स्वस्फूर्त था,आ गई मेरे अन्दर, सैकड़ों बिजलियां दौड़ने लगी और वह ,वह के वश में रहा ही नहीं जाकर नीचे कमरे में अकेला होकर पत्र पढ़कर सीने से लगाकर बैठ गया जबकि सारे मित्र इस सोच में पड़ गए कि ये तो बड़े संत बने फिरते थे लम्बे चौड़े भाषण देते थे अब कहां गया इनका सब बड़बोलापन...
दो चार मित्र आकर पूछे "भइ क्या बात है कुछ बता नहीं रहे, क्या हुआ महात्मा जी......
वह बोला कुछ नहीं फिर भी मन में कह रहा था अरे यार क्यों परेशान करते हो कुछ भी तो नहीं लेकिन चेहरे पर एक अलग किस्म का हावभाव था जो छुपाने पर भी प्रदर्शित हो रहा था...
अब तो आलम यह था कि इधर भी आग सुलग ही गयी क्योंकि जो बालक किताबों के सिवाय कुछ देखता समझता ही नहीं था वह अब तो बगलें झांकने लगा, बार-बार अपना दरवाजा खोलकर देखने लगा कि वह खड़ी तो नहीं... यहां तक कि कोई दूसरी लड़की भी देखता तो उसकी एक नजर पुष्पा को देखने के लिए बेचैन हो उठती।
उसके दोस्त-यार सब आकर पूछने लगे क्या गुल खिलाया है मित्र बड़े भाग्यशाली निकले...जिस लड़की के पीछे पूरे मुहल्ले के लड़के रात-दिन कालोनी में रंग-बिरंगी पहनावा पहन कर एक झलक पाना चाहते थे लेकिन दिखना तो दूर वह देखती तक नहीं थी ...उसके घर वालों से डर भी था उसके जीजा दारोगा जो थे तो बचकर ही रहते थे हालांकि कुछ होशियार छात्रों ने तो दारोगा जी के छोटे से बच्चे को टाफी देकर अपनी तरफ कर लिये थे और उसी के बहाने उसके इर्द-गिर्द मंड़राते रहते थे।
एक दिन की बात है वह सुबह तैयार होकर पढ़ने बैठा क्योंकि विश्वविद्यालय में छुट्टी थी तो अपनी फिजिक्स की पुस्तक पढ़ना चाहा.. लेकिन ये क्या वह जिस पन्ने को पलटता उस पन्ने पर पुष्पा का चेहरा ही दिखाई देता था और यह प्रक्रिया बार बार होने लगी तो वह सोचा शायद कठिन विषय है इसीलिए ऐसा लग रहा हो तब गणित की पुस्तक पढ़ना शुरू किया.... फिर वही हाल.... फिर केमिस्ट्री.....जिस पन्ने को पलटे वही हंसता-खिलखिलाता चांद सा मुखड़ा नजर आने लग जाता अब करे तो क्या करे बारम्बार अपना मुंह भी साबुन से धोता आंखें मलता....पर कोई असर नहीं वह चेहरा सामने ही आता रहता।
"अपने मन में कह रहा है कि कोई बीमारी है क्या आखिर पढ़ने में भी मन नहीं लग रहा है अब तो अगल-बगल के लोग भी समझ गये कि यह बच्चा तो गया काम से।"
एक दिन वह बाहर टहल रहा था तब तक वह भी कहीं बाहर से बाजार करके अपने जीजा और दीदी के साथे उनके दुधमुंहे बच्चे को गोदी में लिये आ रही थी तो बरबस नजर पड़ गई तो उसे देखकर अपना दाहिना हाथ उपर करते हुए एक हवाई फूंक मार दी हालांकि उसने भी वैसा ही कर दिया तब पता चला यह तो हवाई चुम्बन था जो हवाओं को चीरते हुए उसके होंठों तक आ पहुंचा।
एक दिन तो हद ही हो गई सुबह सुबह मेरा दरवाजा कोई खटखटाया तो सोचा पेपर वाला होगा पैसा देना है तो आया होगा फिर मैंने हाफ पैंट संभालते हुए दरवाजा खोला तो अवाक रह गया ये तो पुष्पा ही है फिर अपनी चिकोटी काटी तो पता चला सही है.. वह मधुर स्वर में बोल पड़ी अन्दर नहीं बुलायेंगे क्या... तो क्या करता हामी भरकर अन्दर लाया फिर वह कुर्सी पर बैठ गई और बोली
"अब तो मेरा हाथ पकड़िये मिस्टर हैंडसम"
"उसने झट से उसका हाथ पकड़ लिया और बोला कहिये क्या करना है "
"वह बोल पड़ी ऐसे नहीं जीवन भर के लिए हाथ पकड़ना है लेकिन यह भी जान लीजिए आप से दो साल बड़ी हूं "
अब तो पैरों तले जमीन जैसे खिसक गई हो सोचा अब क्या होगा वह सोचने लगा अब क्या करे तब तक फिर वह बोली क्या हुआ क्या सोच रहे हैं
"अब मुझे यहां से जाना होगा क्योंकि हमारे जीजा जी ने एक बदमाश का इनकाउंटर कर दिया है तो सरकार उनका अन्य जगह स्थानान्तरण कर दी है क्योंकि जान-माल का खतरा बढ़ गया है उस बादमाश का गिरोह बड़ा है यहां पर तो मैं चाहती हूं आप मेरे दारोगा जीजा जी से बात करें मेरे पास वक्त बहुत कम है बच-बचाके आयी हूं।"
अब वह बालक घनचक्कर में फंसने जैसा महसूस करने लगा कि अब क्या होगा फिर अपने माता-पिता के बारे में सोचा तो लगा कि पढ़ने के लिए बड़े ही मिन्नतों से भेजा है उन्होंने तो मैं अब यही करने आया हूं।।
अगले सुबह दारोगा जी ने उसे अपने आवास पर बुलवाया तो जाना पड़ा....जाते ही जबरदस्त तरीके से मान सम्मान किया गया और बैठने का नाश्ते वगैरह का गजब का प्रबंध था शायद अपने जीवन में ऐसा इंतजाम पहली बार देखा था सो वह बैठ गया लेकिन अन्दर ही अन्दर डर भी लग रहा था कि कहीं दारोगा जी किसी केस में फंसायेंगे तो नहीं.... मुझे बुलाने का मकसद क्या होगा.....
अब दारोगा जी एवं उनकी पत्नी सोफे पर मेरे सामने बैठे फिर दरोगाईन उसके बगल में आकर बैठ गई जो बहुत सुंदर और सुशील थी.... मेरे बारे में पूछताछ हुई फिर घर-परिवार लेकिन आकर मामला बिरादरी पर फंस गया क्योंकि दोनों की जाति -बिरादरी अलग-अलग थी.... फिर अभी शादी कर लेगा तो क्या पढ़ेगा क्या खिलायेगा इसी उधेड़बुन में पड़ा था तब तक एक घर की घंटी बजी और एक सिपाही एक कागज दारोगा जी को पकड़ा दिया तब दाऱगा जी उसे खोलकर पढ़ने लगे और उनका चेहरा का आकार प्रकार बदलने लगा.... फिर बोले बाबू हम आपसे बाद में मिलते हैं हमलोगों को आज ही लखनऊ जाकर आमद कराना है लेकिन सोच लीजिएगा मुझे कोई एतराज़ नहीं है।
"अब वह घर से निकल रहा था तो पुष्पा ने हाथ पकड़ लिया क्या हुआ जाति-पाति से हमें क्या लेना है मुझे आप पसंद हैं और जीजा जी, दीदी सबको आपकी आदतें आपके रहने का ढंग, शालीनता बहुत भा गई है हां कर दीजिए न!"
अब वह बाहर आ गया फिर कमरे पर ज्यों ही आया सब मित्र जो बीसों की संख्या में थे मुझे चिढ़ाते हुए व्यंग्य मारने लगे क्यों भाई कर लो शादी अब क्या चाहिए वह किसी को घास तक नहीं डालती लेकिन तुम तो छुपे रुस्तम निकले मित्र.....ये किस स्कूल से पढ़े हो जरा हमें भी तो बता दो वगैरह वगैरह।
अब शाम होने को थी तो एकबार फिर वह कमरे में दौड़ी चली आयी तो देखा हाथ में कुछ था... उसने उसको कसकर जकड़ते हुए अपना कुछ फोटो उसके हाथ पर रख दी और बोली सब कुछ तैयार है अब जाना होगा...आप लखनऊ आ जाना यह पता है जरूर आना इन्तजार करूंगी.....वह चली गई और वह बालक निष्प्राण सा हो गया।
अब उस बालक का मन नहीं लग रहा था लेकिन करे तो क्या माता-पिता पर ही निर्भर था और पढ़कर कुछ बनने की उत्कट अभिलाषा भी थी लेकिन सारी चीजें एकसाथ तो नहीं हो सकती फिर वह मन को बहलाने और अपने गार्जियन की राय को टोह लेने घर गया....
घर पहुंचते ही पिता जी एकदम फायर, उसने जैसे ही चरण स्पर्श किया तो वे भभक उठे "क्या यही करने इलाहाबाद भेजा था कि जाकर आवारागर्दी करना वह भी गैर बिरादरी में..अब तुम घर आ जाओ मेरे पास पैसा नहीं है ये तो कर्ज लेकर सोचा पढ़ा दूं मेरा और घर परिवार का नाम बढ़ेगा लेकिन तुम तो इज्जत आबरू के साथ खेलने लगे "
उसके पिता जी को किसी छात्र ने पूरी बात बता दी थी तो लगा कि हार्ट फेल हो जायेगा उनका हालांकि जाति -बिरादरी से कोई बात नहीं थी सवाल कैरियर का था तो अब क्या करें....
कलेजे पर पत्थर रखकर अब उस अध्याय को बंद करना पड़ा हालांकि बहुत दिनों तक बड़ा मुश्किल रहा अपने को संभालना पर सच्चा प्रेम था कोई स्वार्थ वाला नहीं था.... अभी भी दोनों के बीच बातचीत होती रहती है जबकि दोनों की शादी भी हो चुकी है और एक दूसरे से दोनों परिवार वाकिफ भी हैं.. मिलते हैं जैसे अपने घर के हों....
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया,उत्तरप्रदेश
आलेख स्वरचित एवं मौलिक
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